Moral Stories in Hindi : आज आठ बजने को आए और निलेश अभी तक ऑफ़िस से नहीं आए… फ़ोन भी नहीं उठा रहे… शायद ड्राइव कर रहे है… नीता ने मन में सोचा… पर फिर भी थोड़ी आशंका से दिल घबरा भी रहा था…वह बार-बार ईश्वर से निलेश की रक्षा की प्रार्थना कर रही थी मन ही मन।
हम पत्नियाँ… यदि पति को ऑफ़िस में ज़रा भी देर हुई…. या तो पति के बॉस को या फिर पति ही को मन ही मन गाली देंगे और…. अधिक देर हुई तो…. बुरी आशंकाओं से डर ईश्वर से प्रार्थना करेंगे लेकिन… यह कभी नहीं सोचते कि… कोई आवश्यक काम आ गया होगा या ट्रैफ़िक होगा।
अभी नीता अभी निलेश के फ़्रेंड सचिन को कॉल करने ही वाली थी कि… डोर बेल बजी.. वो जल्दी से दरवाजा ख़ोलने गयी। निलेश ही था… जान में जान आयी नीता के और बोली -“ कहाँ रह गए थे???”
“ अरे यार! पानी-वानी दो पहले कि बस… घर में घुसते ही सवाल???”
“ ओह सॉरी!” कह दो दिया पर मन में सोच रही … यहाँ मेरी जान पर बनी थी और एक ये है … इतना ऐटिटूड…
पानी देकर बोली-“ चाय या सीधे खाना…।”
“खाना ही लगा दो… भूख लगी है।”
वह खाना परोसने के लिए वापस हाँ ही रही थी कि..
“ नीता.. इधर आना ज़रा…”
“ क्या हुआ?? बोलिए…”
“ अरे पास में आना…”
“ खाना गरम करके ला ….रही जल्दी से..”
“आओ नीता.. “
नीता पास में गयी तो.. निलेश ने कहा-“ उधर मुँह करो.. “
“अरे क्या हुआ??? वह पीछे मूड कर अपने कपड़े देखने लगी।
कुछ तो नहीं लगा था कपड़ों में।
“ आँखें बंद करो..”
“ ओह हो अब क्या???”
“ बंद तो करो ना प्लीज़ ..,”
निलेश ने बैग खोल कर एक बॉक्स निकला और उसमें से एक हार निकाल कर… नीता को पहनाया।
“ ये क्या है नि..ले…श.. ।”
“ चुप… एकदम चुप…..
गले में हार पहना कर.. अब आँख खोलो।”
“ अ..र..र .. रे… ये क्या …हार… इतना महँगा … हार लाने की आवश्यकता थी निलेश… ना बर्थडे.. ना मैरिज ऐनिवर्सरी… “ ख़ुशी और आश्चर्य से कहा।
“ क्यू.. नीता.. क्या मैं… तुम्हारे लिए.. बिना कोई पर्व या ऐनिवर्सरी के कुछ नहीं ला सकता..।”
“ लेकिन इतना महँगा… हीरों का हार…।”
“ हाँ.., नीता… बच्चों के हाई-एजुकेशन की फ़ीस के समय तुमने अपने क़रीब सभी ज़ेवर बेच दिए थे…आज ३०% बढ़ी तनख़्वाह का तीन साल का इंक्रिमेंट मिला तो…मैंने यह ख़रीद लिया।”
“ इसकी क्या ज़रूरत थी निलेश… अपने ही बच्चों के भविष्य के लिए ही ना…।”
“ बात ठीक है तुम्हारी.. लेकिन.. तुम्हारे शौक़ और हमारा फ़र्ज़ भी तो है कुछ… नीता.. बच्चों के भविष्य के साथ-साथ.. हमारे भी कुछ शौक़ और ख़्वाब है.. जो कही बोझ तले दब ना जाए नीता…सब चीज़ समय पर ही अच्छी लगती है… तुम पैंतालीस और मैं पचास का होने वाला हूँ… कल क्या हो पता नहीं.. हम थोड़ा ही सही… पर अपने -अपने शौक़ और ख़्वाब को पूरा करने की एक छोटी सी कोशिश कर तो सकते है ना…।”
“ओ…ह .. निलेश.. तुम .. इतने भावुक हो गए…। मुझे लगता था की… तुम अब अपने काम में इतने व्यस्त और शांत रहने लगे.. हो कि.. तुम्हें मेरी कोई फ़िक्र ही नहीं है… और तुम्हारा यह ऐटिटूड… ग़ुस्से से बोलना.. “
“ नहीं नीता… अधिक पैसों के लिए अधिक मेहनत और समय देना पड़ता है…ऑफ़िस को.. सो तुम्हें उतना समय नहीं दे पाता … तो थोड़ी कुंठा और ग़ुस्सा आता है बस..।”
“ पति-पत्नी का रिश्ता..एक विश्वास की नहीं डोर से बंधा होता है निलेश….हम दोनों एक गाड़ी के… दो पहिए जैसे है निलेश… जीवनसाथी है हम, सुख-दुःख में एक साथी है हम.., दिये और बाती की तरह….हमारा रिश्ता.. सात जन्मों का है…हाँ… कभी कभी नाराज़ और मायूस हो जाती हूँ मैं.. तुम्हारे इस ऐटिटूड वाले विहवीयर से… पर फिर सोचती कि… आप भी तो बच्चों के भविष्य के लिए… इतनी मेहनत करते है… हम दोनों का जो कुछ भी है…. वह हमारे दोनों बच्चों का ही तो है…।”
“ नहीं नीता… यह गलती कभी मत करना… हम दोनों में से कौन पहले जाता है.., पता नहीं… लेकिन अपने जीते जी… कभी भी हमारा सब उनका नहीं है….हमारे बाद… सब उनका है॥”
संध्या सिन्हा