हमारी नीरू का हमारे घर में बहुत रौब चलता है…..तीन भाइयों की इकलौती बहन….सबकी लाड़ली । पीहर में तो पूरा ठसका है ही, ईश्वर की महती कृपा से ससुराल भी पीहर के टक्कर की मिली है। सबसे मज़ेदार बात या इसे संयोग भी कहा जा सकता है… नीरु दीदी के पति अविनाश बाबू भी तीन बड़ी बहनों के इकलौते भाई हैं। उनकी तो सब तरफ़ बल्ले बल्ले थी।
पीहर और ससुराल ….दोनों जगह एकछत्र साम्राज्य होने से वो थोड़ी अक्खड़ स्वभाव की हो गई हैं। बेबाक कुछ भी बोल देना उनकी आदतों में शुमार है। भाभी लोग उनसे थोड़ी दूरी बना कर ही रहती थी। उनकी बड़ी भाभीजी उन्हें यदा कदा समझाने की कोशिश भी करती थीं, “देख नीरू! इतना बिंदास होना भी ठीक नही है! थोड़ी नम्रता भी होनी चाहिए।”
“क्या भाभी जी! आप तो ऐसे बोल रही हैं, मानो मैं हर समय तलवार निकाले तैयार बैठी रहती हूँ।”
वो कहते हैं ना…खुदा जब हुस्न देता है, नज़ाकत आ ही जाती है… बस यही हाल हमारी नीरू दीदी का हो गया था पर ऐसा भी नही था कि वो किसी को प्यार ना करें।क्या पीहर…क्या ससुराल…. हर समय सबकी मदद को तैयार पर जुबां की तीखी ननद को हम सब लोग पीठ पीछे हरी मिर्च कहते थे। आज तो हद हो गई….
वो लंच के लिए आई हुई थी। सारी भाभियाँ परोसने में लगी थी….उनकी ससुराल से भी लोग आमंत्रित थे। वो खुश होकर खाते खाते बोल पड़ी,
” वाह भाभीजी! कटहल आलू का दम तो बहुत ही स्वादिष्ट बना है और ये कुरकुरी भिन्डी… वाह मज़ा आ गया।”
भोजन वास्तव में लाजवाब था, तभी उनके मुँह से निकल गया,”सब कुछ बहुत अच्छा बना है ,बस तीखा कुछ कम है… ऐसा करो मुझे दो हरी मिर्ची दे दो। बस मज़ा ही आ जाएगा।”
ये सुनते ही छोटी भाभी के मुँह से अनायास ही निकल गया,”बाप रे! आपको हरी मिर्ची की भी जरूरत है?”
सब लोग खिलखिला पड़े, छोटी भाभी वहाँ से भागने को तैयार हो ही रही थी कि ननद रानी भी हँसते हुए बोली,”भाभी, आपने क्या बढ़िया बात बोल दी! अब जल्दी से खीर भी खिला दो।