बच्चे तोता चिड़िया छोटे पिल्लो के साथ खेलने के लिए इनको पालने के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं।,,,,,,, नन्ही सी तनु ने भी कहीं से सुन रहा था कि तोता हम इंसानों की तरह बात करता है। फिल्मों में तो देखा था लेकिन हकीकत में कभी उसने बात करते हुए तोते को नहीं देखा था,,,,,,
अपनी दादी से पूछती दादी तोता बात कैसे करता है।,,,, तो दादी बताती उसे बोलना सिखाया जाता है जैसे हम बोलते हैं वैसे ही वह बोलना सीख जाता है।,,,,,,,
घर के बाहर नीम के पेड़ पर बिजली के तार पर बहुत सारे झुंड बनाकर तोते बैठे रहते लेकिन वह अपनी ही भाषा में कुछ बोलते उसे अच्छा तो लगता लेकिन वह तो इंसानों की तरह बोलने वाले तोते को देखना चाहती थी,,,,,,
एक बार वह अपनी मम्मी-पापा के साथ बुआ के घर गई तो उन बुआ ने तोते को पिंजरे में पाल रखा था और दूध रोटी उसके पिंजड़े के दरवाजे पर रखती तोता अंदर की तरफ से कटोरी पंजों से खींच लेता और खाने लगता,,,
यह देख कर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था कि तोते बहुत समझदार होते हैं ।मुझे भी यह तोता चाहिए,,,,,,,, बुआ का तोता कैसे मांग सकते हैं। और बुआ देंगी भी नहीं सब चाय नाश्ते में व्यस्त हो जाते बिचारी तनु एक टक उस तोते के पिंजड़े को ही देखती रही,,,,,, अब बस दिमाग में तोता बस गया था,,,,,
मम्मी से तोते के लिए कहती तो मम्मी कहती पहले तुम्हें पाल ले उसके बाद तोता पाल लेंगे,,,,,,,,
पापा से भी कहा पापा ने मना कर दिया,,,,,,
मन में निश्चय कर लिया कुछ भी हो जाए तोता तो मैं पकड़कर पाल के रहूंगी,,, और उससे बात भी करूंगी,,,,,,
कहीं से तोता मिल भी गया अगर उसका पिंजरा ना मिला तो उसको रखूंगी कहां,,,,,?
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तोते का पिंजड़ा दिमाग में घूम रहा था ,,,कि पहले उसको रखने की व्यवस्था की जाए फिर पोते की व्यवस्था कहीं से करती है,,,,,,
घर में तोते का पिंजरा तो कोई लाएगा नहीं उसे अच्छी तरह से पता था,,,,, क्योंकि पापा हमेशा कहते थे पंछियों को आजाद रहने दो,,,, यह तो पक्का था पापा तो लाकर ना देंगे,,,,,,
पिंजड़ा ना मिले तो ना सही कुछ ऐसा मिल जाए जिसमें उसको बंद कर ले बस,,,,,,,,
अब वह घर के सारे सामानों पर नजर दौड़ा दी शायद इसमें से कुछ मिल जाए,,,,,, आखिर वह सफल हो ही गई उसकी नजर मम्मी की बॉक्स नुमा कंडी पर ठहर गई,,,,,,,( प्लास्टिक की कंडी बॉक्स नुमा जिसमें ढक्कन ऊपर से लगता है)
यह भी तो पिंजरा की ही तरह है इसमें भी जाली बनी हुई है बस किसी रस्सी से इसका ऊपर का ढक्कन बांध देंगे,,,,,, मिल गया तोते के लिए पिंजड़ा,,,,,,,,
अब बस तोते की तलाश रह गई,,,,, घर के बाहर नीम के पेड़ पर बहुत सारे तोते बैठते थे नीम के तने में तोते को घुसते हुए उसने देखा था जो खोकला था अंदर से,,,,,,, शायद इसको तना बोलते हैं। अब नीम के पेड़ पर तोते के बच्चे तो थे लेकिन उसके लिए उस पेड़ पर चढ़ना और उनको पकड़ना नामुमकिन सा था क्योंकि उसे पकड़ने में बड़ा डर भी लगता था,,,,,
घर के पास एक रामू भैया रहते थे जो अपने घर की गाय-भैंसों का काम करते थे अब उसने उन रामू भैया के पीछे-पीछे घूमना चालू किया,,,, भैया आपको तोते अच्छे लगते हैं।,,,, मुझे तो बहुत अच्छे लगते हैं।,,,,,,,नीम के पेड़ में तोते के छोटे-छोटे बच्चे होंगे आप मेरे लिए पकड़ दोगे,,,,,,,,,?
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वह अपने काम में लगे रहते वह पीछे-पीछे उनसे बातें करती रहती,,,,, वह कहते बेटा यह काम और खत्म कर लूं उसके बाद तुम्हारे लिए तोते पकड़ दूंगा,,,,,
वह इंतजार करती रहती कि काम खत्म हो तो मेरे लिए तोता तब पकड़े,,,,,, ऐसे कई दिन निकल गए,,,
अब धैर्य ना था भैया पकड़ना हो तो बता दो,,, नहीं पकड़ना तो बता दो,,,,, आखिरकार भैया भी मजबूर हो गए और नीम पर चढ़े और तोते को पकड़ लाए,,,,,
भैया अपने हाथों में तोते को पकड़े थे और उसे बहुत डर लग रहा था,,,,,, भैया रुको मैं अभी कुछ लेकर आती हूं इसके लिए पिंजरा आप उसमें बंद कर देना,,,,,, मम्मी से कंडी देने के लिए कहा तो मम्मी कंडी देने के लिए तैयार नहीं,,, आखिरकार रो धोकर मम्मी से पिंजरे के लिए कंडी मिल ही गई,,,,,,,
भैया से तोता को उस पिंजरा नुमा कंडी में बंद करवा लिया,,,,,,,,
उसको ऐसा लगता कि सारे जहां की खुशी मिल गई अब उसका मनपसंद तोता उसके पास था,,,,
उसको घर ले आई मम्मी बहुत गुस्सा हुई,,,,,
आखिरकार मम्मी थोड़ी देर में शांत हो गई
दोपहर का समय था तोते को कूलर के सामने रख दिया,,,,,
सुना था तोता हरी मिर्च बहुत खाता है,,,,,, और दौड़ के हरी मिर्ची लाती है उसके मुंह के सामने जाली में से खिलाने की कोशिश करती,,,,,, तोता उसको बिल्कुल भी ना छूता,,,, उसका मन बड़ा दुखी हो जाता,,,,,, और भी सब्जियां कुछ और चीजें खिलाने की कोशिश की उसने कुछ भी ना खाया,,,,,,,
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अब शाम हो गई थी पापा घर में आ चुके थे,,,,,,, उसने बड़ी खुश होकर पापा को बताया ,,,देखो पापा मैंने तोता पकड़ लिया है इसको हरी मिर्च भी खिलाई लेकिन इसने खाई नहीं,,,,,, पापा सारी दोपहर मिट्ठू मिट्ठू करके इससे मैंने बहुत सारी बातें की लेकिन यह कुछ भी नहीं बोला,,,,,,,, बोलना भी नहीं सीख रहा है। मैं सोच रही थी यह मुझसे बातें करेगा,,,,,, यह तो गूंगा है।,,,, पापा यह बातें सुनकर बहुत हंसी आ रही थी,,,,,
चलो पापा थोड़े तो मुस्कुराए गुस्सा तो नहीं है।,,,,,,
पापा बाहर आंगन में बैठ गए उसने भी तोते का पिंजड़ा नुमा कंडी बाहर निकाल कर रख ली,,,,, मम्मी चाय बनाने में व्यस्त हो गई,,,,,, पापा उसकी शरारते को देख रहे थे,,,,,,, पापा के सामने उसने हरी मिर्च खिलाई,,,, नहीं खाई तब पापा ने कहा तुमने इसको बंद कर रखा है।,,,, तुम्हारी हरी मिर्च वासी है उसको तो ताजी मिर्च फल खाने की आदत है।,,,,,, और तुमने उसको बंद भी कर रखा है तो उसे कैसा महसूस हो रहा होगा,,,,,, कोई तुम्हें बंद कर दे तो,,,,,,, उसका मन उदास होता जा रहा था,,,,,,, अभी उसने तोते की एक भी आवाज नहीं सुनी थी गुमसुम सा बैठा था उसको बहुत दुखी कर रहा था,,,,
पापा ने कहा तुम्हें अगर तुम्हारे मम्मी पापा से दूर कर दिया जाए तो तुम्हें कैसा लगेगा,,,,,, अब तो सोच में पड़ गई जाहिर सी बात है बुरा ही लगेगा,,,,,,, आंगन के ऊपर से बहुत सारे तोते के झुंड बोलते हुए जा रहे थे,,,, कंडी नुमा पिंजरे में बंद तोता भी उनकी आवाज सुनकर बोलने लगा,,,,,,,
पापा ने कहा अब उसका मन उसकी मम्मी पापा से मिलने का है। सारे तोते आकाश में घूम रहे हैं। तुमने इस को कैद कर रखा है।,,,,,
अब पापा का मन उस तोते को उसकी क़ैद से छुड़ाने का था,,,, मन में सोचती पापा तो पता नहीं कैसी कैसी बातें कर रहे है ।कितनी मेहनत से मैंने तोते को पकड़ पाया,,,,,, पापा की मेहनत लगती तो इनको अंदाजा लगता,,,,,,
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मन बहुत मजबूत कर लिया मैं तो तोते को नहीं छोडूंगी,,,,,,,, पापा एक के बाद एक दांव फेक रहे थे,,,,,, मम्मी भी पापा का साथ दे रही थी,,,,,
इस तोते का मन भी अपने साथियों के साथ खुले आसमान में उड़ने का है।,,,,, तुमने इसके साथ कितना गलत काम किया इसे कैद करके,,,,,,,,,
अब उसे अपराध बोध होने लगा था ,,,,, शायद इस तोते को कैद करके उसने अच्छा काम नहीं किया,,,,,,
पापा धीरे-धीरे आजादी और कैद का मतलब समझाने में कामयाब हो रहे थे,,,,
अब उसका मन बहुत दुखी था वह तोते को आजाद करना चाहती थी,,,,,, पापा तोते को आप इसमें से निकाल कर छोड़ दो,,,,,, पापा ने कंडी का ढक्कन खोल दिया और छोड़ दिया तोता आंगन के ऊपर से निकलने वाले पंछियों में बड़ी तीव्रता से उड़कर शामिल हो गया,,,,,,,
पापा ने उसकी तरफ देखा उसकी आंखों में आंसू थे,,,,, लेकिन होठों पर खुशी थी,,, क्योंकि आज उसे आजादी का मतलब समझ आ गया था,,,,,,
मन में सोच रही थी यह गगन मजबूत पंख शायद इन पंछियों को उड़ान भरने के लिए भगवान ने दिए हैं।
हम इंसानों की तरह ही इन पक्षियों को भी आजाद रहने का पूरा हक है। और हम इंसान इन को कैद करने वाले कौन,,,,,,,
आज भी पापा का पढ़ाया हुआ पाठ उसके संस्कारों में बस गया है।
पंछी तो पसंद है लेकिन उड़ते हुए आजाद,,,,,,
और अपने लिए भी सोचती है।,,,,,
पंख होते तो उड़ जाती रे,,,,,,
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पंछी बनू उड़ती फिरू नील गगन में,,
काश जिंदगी में भी सभी बेरोकटोक पंछियों वाली उड़ान भर सकें,,,,, सपनों की ऊंची उड़ान,,,,,,
मंजू तिवारी गुड़गांव,,,,
प्रतियोगिता हेतु,,,
मेरी द्वितीय कहानी,,
बेटियां जन्मोत्सव
स्वरचित मौलिक,,,,