इज्जत – डाॅ संजु झा

सरोज एक संपन्न परिवार  की खुबसूरत लड़की है।नाम के अनुरूप ही उसका चेहरा सदा खिला-खिला रहता।माता-पिता संपन्न थे,परन्तु गाँव में रहते थे।दसवीं की परीक्षा अच्छे से नंंबरों से उत्तीर्ण होने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए सरोज शहर आ जाती है।काॅलेज के हाॅस्टल में रहती है।गाँव से शहर आने के साथ ही उसके सपने सतरंगी हो उठे।उसे महसूस  होता कि एकाएक वह अलग ही दुनियाँ में आ पहुँची है।बचपन से ही उसे लोग खुबसूरत बोलते थे,परन्तु अपनी खुबसूरती का एहसास उसे काॅलेज आने पर होने लगा।वह जल्द ही आधुनिकता के रंग में रंग गई।काॅलेज में लड़के उसकी बलखाती हिरणी-सी  मदमस्त चाल और रुप-यौवन पर फिदा थे।उनमें आकाश और नमन भी था।

सरोज काॅलेज के  हर प्रोग्राम में हिस्सा लेती।नृत्य एवं गायन के साथ-साथ  नाटकों में भी भाग लेती।चारों  तरफ से उसके अभिनय की प्रशंसा मिलती,जिसके कारण  फिल्मों में हीरोइन बनने का उसका ख्वाब आकार लेने लगा।इन सब गतिविधियों के कारण उसकी पढ़ाई  पीछे छूटने लगी।उसका दोस्त  नमन उसे दिल-ही-दिल में चाहने लगा था,परन्तु वह इन सब पचड़ों में न पड़कर पहले अपने भविष्य पर ध्यान देना चाहता था।यदा-कदा वह सरोज को आगाह करते हुए पढ़ाई पर ध्यान देने को कहता,परन्तु उसके मन में तो हीरोइन बनने का ख्वाब पलने लगा था।काॅलेज में  सौन्दर्य-प्रतियोगिता जीतने के बाद  तो हीरोइन बनने का उसका इरादा एक तरह से पक्का हो चुका।उसका दोस्त आकाश उसके सपनों को उकसाने का प्रयास करता।आकाश भी बिना मेहनत के आसमां की बुलंदियों को छूना चाहता था।आकाश कहता -” सरोज!हमदोनों अपने सपनों को पूरा करने मुंबई चलेंगे।वहाँ मेरी बहुत जान-पहचान है।वहाँ हम अपने ख्वाबों को हकीकत में बदलने में जरुर सफल होंगे।”




उन दोनों के मुंबई जाने की भनक नमन को मिल चुकी थी।उसने समझाते हुए कहा-“सरोज!आकाश  अच्छा लड़का नहीं है।कम-से-कम तुम अपनी ग्रेजुएशन तो पूरी कर लो।”

उस समय तो सरोज की आँखों पर फिल्मी दुनियाँ की चकाचौंध छाई हुई थी।उसे नमन की बातें अच्छी नहीं लगीं।उसने कहा-“नमन!पढ़ाई  पूरी करते-करते तो काफी वक्त निकल जाएगा।कुछ पाने के लिए  कुछ खोना ही पड़ता है।”

सरोज की बातें सुनकर नमन खामोश  हो गया।

कुछ दिनों बाद  सरोज और आकाश  कुछ जमा-पूँजी लेकर चुपचाप  होस्टल से निकालकर मुंबई  पहुँच गए। इधर जब सरोज के घरवालों को इस बात की जानकारी मिली,तो वे नाराज होकर उसे परिवार के लिए मृत मान लेते हैं और  इज्जत  उछलने के डर से पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं करते।

किस्मत के भरोसे दोनों मुंबई आ जाते हैं और एक छोटे से होटल में ठहरते हैं।आकाश  सरोज को रोज स्टूडियो-स्टूडियो घुमाता है,परन्तु यहाँ आकर उन्हें महसूस होता है कि जिस प्रकार ढ़ोल की आवाज दूर से ही कर्णप्रिय होती है,नजदीक आने पर वही आवाज  दिल और दिमाग  पर हथौड़े चलने-सी प्रतीत होती है।उसी प्रकार ये फिल्मी दुनियाँ भी केवल दूर से ही आकर्षक होती है।

मुंबई पहुँचकर सरोज को अन्य लड़कियों की सुन्दरता और स्टाइल देखकर आभास होता है कि वह खुद कितने पानी में है!




अब सरोज हीरोइन बनने के ख्वाब  छोड़कर टेलीविजन में छोटे-मोटे रोल के लिए भी हाथ-पैर मारने लगती है।उसके पास पैसे भी खत्म होने लगते हैं।अब वह घर लौटकर भी नहीं जा सकती है।उसके सामने कुआँ और पीछे खाईवाली स्थिति हो गई। एक दिन खुश होते हुए आकाश ने उससे कहता है-“सरोज!आज शाम में एक प्रोड्यूसर ने तुम्हें काम देने के लिए बुलाया है!”

सरोज काम मिलने की उम्मीद से आकाश के साथ प्रोड्यूसर से मिलने जाती है।आकाश बाहर बैठकर इंतजार करता है।प्रोड्यूसर कमरा बन्द कर काम के बहाने सरोज की इज्जत से खिलवाड़ करता है और सरोज को शांत करते हुए अपने सीरियल में काम देने का वादा करता है।इस तरह उसे सीरियल में छोटे-मोटे काम मिलने लगते हैं,इसके एवज में प्रोड्यूसर  बीच-बीच में उसका शारीरिक-शोषण भी करता है।धीरे-धीरे सरोज काॅल गर्ल बन जाती है।छोटे-मोटे रोल करने की अपेक्षा ज्यादा पैसे उसे अपनी इज्जत बेचकर मिल जाते हैं।

इन सबसे तंग आकर एक दिन सरोज गुस्से से कहती है-“आकाश! मैं ये घिनौना काम नहीं करुँगी।मैं यहाँ अपने सपने पूरे करने आई थी,खुद को बेचने नहीं!”

आकाश बनावटी सहानुभूति दिखाते हुए कहता है-“सरोज!हमारी स्थिति तो साँप-छछूँदरवाली हो गई  है।अब तो तुम्हें भी घरवाले नहीं अपनाऐंगे।मुंबई में रहने के लिए तो पैसे चाहिए ही।”

सरोज खुद को चक्रव्यूह में फँसी हुई महसूस करती है।उसके चारों ओर भँवर बन चुका है।ऐसा भँवर जहाँ उसकी इच्छा का कोई वजूद ही नहीं था।उसके चारों तरफ अंधेरा -ही-अंधेरा था।अब उसे फिल्मी दुनियाँ की काली हकीकत समझ में आने लगी।उसे महसूस होता कि जिस चमक-दमक की दुनियाँ को वह सोना समझ रही थी,वो तो उसके लिए  पीतल क्या बस कीचड़ भरी जिन्दगी ही साबित हो रही है!




आकाश सरोज का दलाल बनकर उसे बड़े-बड़े होटलों में जिस्म -व्यापार के लिए  भेजता और दलाली से खुद भी काफी पैसे कमाता।

सरोज अब अन्दर-ही-अन्दर कुंठित और दुखी रहने लगी,परन्तु जिस्मफरोशी के धंधे में  मन के विपरीत उसे हर पल खुद को सजा-सँवारकर रखना पड़ता था।उसकी मजबूरियों ने उसके हीरोइन बनने के ख्वाब को यथार्थ के धरातल पर ला पटका।अब वह पूर्णरुपेेण काॅल गर्ल बन चुकी थी।इत्तफाक से सरोज एक दिन अपना धंधा पूरा कर होटल के कमरे से निकल रही थी।अचानक  से एक जानी-पहचानी सी आवाज कहीं हृदय की गहराईयों से रास्ता बनाती हुई सतह पर आकर कानों में रस घोल गई। मुड़कर सामने नमन को देखकर उसने कन्नी काटनी चाहिए,परन्तु सामने आकर नमन तपाक से पूछ बैठा -” सरोज!किसी फिल्म के सिलसिले में यहाँ आई हो?”

नमन की बातें सुनकर सरोज की आँखों में आँसू आ जाते हैं।नमन बैंक में एक बड़ा ऑफिसर बन गया है। काम के सिलसिले में वह मुंबई आया है।मायूस जानकर नमन सरोज को अपने कमरे में ले आता है।वह नमन को अपनी दर्द भरी दास्तां सुनाकर फूट-फूटकर रो पड़ती है।मुंबई आने पर जो दर्द की सिसकारी उसके जीवन में शुरु हुई  थी ,नमन को सामने देखकर फिर से फूट पड़ी।उसके होठों से दर्द की करुण सिसकारी फूटी,आँखें सूज गईं,मानो आँखों में किसी ने रेत झोंक दी हो। 

सँभलते हुए  कहा -” नमन!   मेरी  उम्मीदों का महल  एक गलत निर्णय  से भरभराकर गिर चुका है। मैं जिन बड़े सपनों को पूरा करने आई थी,वो पानी के बुलबुले के समान छ्द्म निकला।मेरे अंदर बस एक भांय-भांय करता हुआ अंधा कुआँ ही रह गया है।अंधकार में कैद मेरा जीवन और लुटी हुई इज्जत  ने मेरी हर आकांक्षा,हर उम्मीद का गला घोंट दिया है।मेरा मनोबल और धैर्य समाप्त हो चुका है।प्लीज!मुझे इस दलदल से निकालो,वरना मैं आत्महत्या कर लूँगी।”




नमन सरोज की आपबीती सुनकर  द्रवित हो उठा।उसने सान्त्वनाभरे स्वर में कहा -” सरोज!जिन्दगी बहुत  कीमती होती है।कोई  मुसीबत जिन्दगी से बड़ी नहीं होती है।जो मर जाते हैं,दुनियाँ उन्हें कायर कहती है।आत्महत्या के बारे में सोचना भी गुनाह है।जिन्दगी तो ईश्वर की खुबसूरत नेमत

 है।कोशिश करने से प्रत्येक समस्या का कोई-न-कोई हल जरुर निकलता है।”

सरोज -” नमन!अब मैं क्या कर सकती हूँ।मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी।मैंने तो ग्रेजुएशन भी पूरी नहीं की!”

नमन-सरोज!क्या तुम कोई  छोटा-मोटा बिजनेस कर सकती हो?” 

सरोज -” हाँ नमन!यहाँ रहकर मुझे एक फायदा  तो हुआ कि मुझे फैशन और कपड़ों की अच्छी समझ हो गई है।”

नमन -” सरोज!अपने शहर वापस लौटकर एक छोटा-सा बुटीक खोल लो।”

सरोज -” मेरे पास उतने भी पैसे नहीं हैं।”

नमन -” देखता हूँ,बैंक से कुछ लोन की व्यवस्था करवा दूँगा।वापस जाकर खबर करता हूँ।”

सरोज हसरत भरी निगाहों से नमन से विदा लेती है।

नमन अपने शहर आकर खुबसूरत और होनहार  सरोज की भूल और उसके चारित्रिक पतन से काफी आहत हो जाता है।नमन की पत्नी किरण उसे परेशान देखकर पूछती है-“क्या बात है?कुछ खोए-खोए से लग रहे हो।”




नमन -“अरे नहीं!मुंबई में एक पुरानी दोस्त मिल गई। उसी के बारे में सोच रहा हूँ।”

किरण मुस्कराते हुए  -” कहीं तुम्हें उससे प्यार तो नहीं हो गया?” 

नमन -“किरण!प्यार तो मुझे तुमसे ही है,परन्तु उससे सहानुभूति हो गई है।”

नमन अपनी पत्नी को सरोज के बारे में सारी बातें बताते हुए कहता है-“किरण!अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं सरोज को उस दलदल से निकाल सकता हूँ।” 

किरण सरोज की कहानी सुनकर बहुत भावुक हो जाती है और नमन को वचन देते हुए कहती है -” मैं सरोज की जिन्दगी सँवारना में तुम्हारे साथ हूँ।”

कुछ समय बाद  नमन के बुलाने पर सरोज आकाश को छोड़कर अपने शहर वापस आ जाती है।दो महीने नमन के घर में रहती है।सरोज के उदास होने पर किरण उसे समझाते हुए कहती है -” बहन!जो बीत गया,उसकी कड़वी यादें ढ़लने से कोई  फायदा नहीं है।फिल्मी दुनियाँ में चंद लोग ही किस्मतवाले होते हैं,जिनकी मेहनत और काबिलियत को पहचान मिलती है।इसलिए तुम अतीत को भूलकर वास्तविक दुनियाँ का सामना करने के लिए  तैयार  हो जाओ।”

किरण की बातों से सरोज का मृतप्राय आत्मसम्मान और आत्मविश्वास जीवित हो उठता है।नमन के सहयोग से वह एक छोटा-सा बुटीक खोल  लेती है।धीरे-धीरे अपनी लगन और कर्मठता से अपने काम को आगे बढ़ाती है।नमन बीच-बीच में फोन से उसका हाल-चाल पूछ लेता है।उसका काम अच्छा देखकर  निश्चिन्त हो जाता है।

कुछ समय बाद  नमन बैंक से आकर टेबल पर पड़े आमंत्रण पत्र को देखकर पत्नी से पूछता है-” किरण!-ये कार्ड किसने भेजा है?”किरण मुस्कराते हुए कहती है-” खुद ही देख लो।” 

नमन कार्ड  पढ़कर मुस्करा उठता है।आगामी रविवार को सरोज के बड़े शो रुम का उद्घाटन है।नमन रविवार को पत्नी के साथ शो रुम के उद्घाटन में पहुँचता है।वहाँ सरोज की पिछली जिन्दगी भूलकर बहुत सारे लोग आए हुए हैं।नमन के पीछे से सरोज के माता-पिता और भाई  भी आते हैं,जिन्हें देखकर  वह चौंक जाती है।वह दौड़कर खुशी से उनके गले लग जाती है।नमन  और किरण सरोज को खुश देखकर  मन-ही-मन आनन्दित होते हैं,क्योंकि उन्होंने ही सरोज के परिवार को यहाँ बुलाया है।सरोज का परिवार भी उसे माफ कर देता है।उद्घाटन का फीता कटते ही सभी सम्मिलित स्वर में तालियाँ बजाते हुए सरोज का उत्साहवर्धन  करते हैं।सरोज अपनी खुशियों से भरी आँखों को निर्बाध बहनो देती है।

समाप्त। 

लेखिका -डाॅ संजु झा(स्वरचित)

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