जीवन का संघर्ष – सुभद्रा प्रसाद

 “मैं पूछती हूँ माँ जी, यह बुआ जी कबतक हमारे घर में रहेंगी ? सारा दिन खांसती रहती है  |आप इन्हें इनके घर भेजती क्यों नहीं? रमा की छोटी बहू रचना ने पूछा |

            ” अरे ये अब कहीं नहीं जायेगी| यहीँ मरेगी, तभी पिंड छूटेगा हमारा इनसे |” बडी बहू राखी ने कहा |

          “अरे, तो जल्दी मरे ना |खुद के बेटे -बहू ने तो घर से निकाल दिया, चली आई हमारी छाती पर मूंग दलने |” रचना गुस्से से बोली |

          “खुद नहीं आई है, हमारी प्यारी सासु माँ ने लाया है इन्हें अपने साथ | ” राखी भी गुस्से में थी |

          “अरे, तो मैंने क्या उसका जीवन भर का ठेका ले रखा है | मेरी बताई मेरी सहेली की बेटी से शादी नहीं किया था उसने अपने बेटे का |उसी का बदला लेना चाहती थी | बहुत गुणगान करती रहती थी ना अपनी बहू का | उसे अहसास कराना चाहती थी कि उसका निर्णय गलत था |उसकी बहू बहुत खराब है | उसके मन में उसकी बहू के लिए नफरत भरना चाहती थी |इसीलिए तो उसे सिखा पढाकर, बेटे -बहू से लडवाकर यहाँ ले आई |सोचा था महिने भर रखकर, वापस भेज दूंगी |अब तो चार महीने हो गये, यह बीमार भी पड गई |अब तो कोई न कोई तरकीब लगाकर इसे वापस भेजना ही पड़ेगा |” सास रमा ने  धीरे से कहा -“तबतक तुम लोग शांत रहो |मैं भी अब इससे ऊब गई हूँ |इसे भगाने का उपाय करती हूँ | नहीं तो यह जाने वाली नहीं |”

             ममता ने अपने कमरे में लेटे- लेटे  सब सुना और उस मनहूस घड़ी को कोसने लगी, जब वह अपनी भाभी की बातों में आकर, अपने बेटे-बहू से लड़ झगड कर यहाँ आ गई थी | उसका मन अतीत की गलियों में भटकने लगा |




            चार बहन, एक भाई में, ममता तीसरे नंबर की बहन थी |भाई सबसे छोटा था | पिताजी एक सुखी संपन्न किसान थे |खेती बारी अच्छी थी |फसल अच्छी होती थी और  बेची भी जाती थी | घर में खाने पीने की कमी न थी, पर दादी की नजरों में पोतियों को अच्छा खाना खाने की जरूरत न थी |अच्छा खाना, अच्छे कपड़े, अच्छी पढाई, शौक मौज सारी अच्छी चीजों पर सिर्फ पोते का हक था | पोतियां तो बस किसी तरह पल जाये, यही काफी था |

      20 वर्ष की होते ही उसकी शादी  एक खाते पीते घर में कर दी गई |पति एक साधारण सी नौकरी करते थे |थोड़ी खेती भी थी |ससुर की कपड़े की एक दुकान थी | सास – ससुर,दो देवर, दो ननद थे ससुराल में | पति के साथ जीवन के संघर्ष में लगी रही |जिम्मेवारियों का बोझ उठाती रही |समय सरकता रहा | सास ससुर चल बसे |देवर, ननदों की शादी हो गई | एक बेटे दीपक की माँ बनी |सीमित आय, कम साधन में छोटी- छोटी जरूरतों के लिए संघर्ष करती रही, पर दीपक की शिक्षा में कमी नहीं की |हर कदम पर, हर संघर्ष में पति का पूरा- पूरा साथ दिया | दीपक एक योग्य संतान बना |

          अपनी पढाई पूरी कर दीपक एक अच्छी नौकरी पा गया और उन्होंने उसकी शादी एक सुंदर, सुशील लड़की से कर दी | एक पोते का जन्म हुआ | अच्छे दिन आये ही थे कि पति चल बसे |वह अकेली हो गई | दीपक की शादी, पोते के जन्म,उसकी पति की मृत्यु इत्यादि अनेक अवसरों पर उसकी भाभी भी आती रही |वह दीपक की शादी अपनी सहेली की बेटी से करवाना चाहती थी, पर ममता ने दीपक की शादी अपने पडोस में रहने वाली नीलम से  करवा दी, जो सुंदर होने के साथ- साथ, सुशील और व्यवहार कुशल भी थी |उसकी  भाभी रमा को यह बात एकदम पसंद नहीं आई |वह जब भी आती, नीलम में कमियाँ निकाल कर ममता को भड़काती रहती |दीपक की शादी की पांचवीं सालगिरह पर वह आई और ममता के कहने पर पंद्रह दिनों के लिए रूक गई |




            रमा शुरू से ही नीलम को नापसंद करती थी और ममता को उसके विरूद्ध भडकाती रहती थी |ममता को नीलम से ज्यादा शिकायतें नहीं थी, पर रमा के बार-बार कहने पर ममता को भी नीलम के प्रत्येक काम में गलती नजर आने लगी थी |बात-बात पर झगड़े होने लगे |एक दिन झगड़ा इतना बढ़ा कि ममता बेटे-बहू के बार-बार कहने पर भी नहीं रूकी और कभी न आने की बात कह अपनी भाभी रमा के साथ अपने मायके आ गई |

            ममता का मायका, उसके घर के मुकाबले ज्यादा सुखी-संपन्न था | घर रमा के नाम था और सारे पुश्तैनी गहने, पैसे भी रमा के पास ही थे, इसीलिए घर में उसकी चलती थी | शुरू- शुरू में ममता की खूब आवभगत हुई और सबने हाथों हाथ लिया |दीपक  लेने भी आया, पर मां नहीं गई |धीरे- धीरे हालात बदलते गये और घर में ममता का महत्व कम होता गया |उसकी उपेक्षा होने लगी और ममता को अपना घर याद आने लगा |उसे यह भी पता चल गया कि जो बहुएँ रमा के सामने अच्छी होने का दिखावा करती है, वे पीठ पीछे रमा का मजाक उड़ाती रहती है और भला-बुरा कहती रहती है | उसने खुद अपनी कानों से सुना था उन्हें बातें करते हुए |उसे अपनी बहू नीलम की याद आती और उसकी अच्छाईयां भी समझ में आने लगी थी | वह बीमार पड़ गई और सबने उससे दूरियाँ बना ली | न कोई उसका हाल पूछता, न हीं समय से, उचित खाना, दवा मिल रहा था |वह अपने घर जाना चाहती थी, पर कैसे जाये ? उसे अपने बेटे, बहू, पोते, अपने घर  की बहुत याद आने लगी | वह सोचती खुद ही तो आई थी और दीपक लेने आया तो भी नहीं गई |अब कैसे जाये, क्या करे, कैसे दूर  होगी उसकी परेशानी ? कब खत्म होगा उसका संघर्ष? सारा जीवन तो संघर्ष  करते ही बीता | क्या बुढ़ापे में भी चैन नहीं लिखा  ?सोचते हुए ममता रोने लगी |

         “मम्मी, कैसी  तबियत है तुम्हारी” कहते हुए दीपक कमरे में आया |

          “तुम ” ममता आश्चर्यचकित हो गई |




        “हाँ, मम्मी जी, हम  आये हैं, आपको लेने |अपने घर चलिए मम्मी जी  |” नीलम ने ममता के पैर छूते हुए कहा-“मुझसे जो जो गलतियां हुई है, मैं सबके लिए आपसे माफी मांगती हूँ |मुझे माफ कर दिजिए और घर चलिए |”

         ममता ने पूछा-“पर मेरे बीमार होने की बात तुम्हें कैसे पता चला? “

          “मैं प्रति दिन फोन करके तुम्हारा हाल जान लेता था |तुम्हारा बेटा हूँ, तुम्हारी खबर तो लूंगा ही |तुम ठीक थी तो कोई बात नहीं,पर अब बीमार हो, अब तो अपने घर चलो | ” दीपक माँ के पैर पकड़ कर बोला |

            “हाँ, मम्मी जी, आप जैसा चाहेंगी, हम वैसा ही करेंगे |आप के बिना घर सूना लगता है |” नीलम रोने लगी |”आपका पोता भी आपको बहुत याद करता है |”

         “ना रो मेरी बच्ची | मैं तुमलोगों के साथ अपने घर जरूर चलूंगी | मुझे समझ आ गया कि सारी गलतियां तुमलोगों की ही नहीं है, कुछ गलतियां मुझसे भी हुई है | मैं भी अपनी गलतियां सुधारूंगी और हम सब मिलकर रहेंगे ं | ” कहते हुए ममता ने नीलम को गले लगा लिया | सब हंसने लगे |

           ममता अपने बेटे-बहू और पोते के साथ खुशी- खुशी अपने घर को चल दी  |उसके जीवन का संघर्ष खत्म हो गया था |

    #संघर्ष

   स्वरचित और अप्रकाशित

   सुभद्रा प्रसाद, 

   पलामू, झारखंड  |

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