अन्तिम इच्छा  – माता प्रसाद दुबे

“डाक्टर साहब!क्या अब मै अपनी माता जी को घर ले जा सकता हूं?” विनायक ने नर्सिंग होम मे भर्ती अपनी मां का इलाज कर रहे डॉक्टर से पूछा।”जी हा,आप अब अपनी माता जी को घर ले जा सकते है,मगर इनका ध्यान रखियेगा,ये ज्यादा सोचे नही,इन्हे खुश रखने की जरूरत है?”डाक्टर ने विनायक से कहा।”जी मै पूरी कोशिश करूंगा?”कहकर विनायक वार्ड की तरफ बढ़ गया।

एक नम्बर पलंग पर उम्र के ७५ बसंत पार कर चुकी शान्ती देवी भर्ती थी। विनायक की पत्नी और शान्ती देवी की बड़ी बहू सुनीता उसके पास बैठी मोबाइल पर व्यस्त थी। “अम्मा! कैसी हो,अब तबीयत ठीक है?” विनायक शान्ती देवी के पास बैठते हुए बोला। “ठीक है बेटा! शान्ती देवी विनायक का हाथ पकड़ कर बोली। विनायक शान्ती देवी को सहारा देकर उठाते हुए बोला।”चलो अम्मा! आज घर चलना है?” “मुझे गांव वाले घर ले चलो बेटा!चार साल से वहा ताला लगा हुआ है?”शान्ती देवी विनायक की ओर देखते हुए बोली। “ले चलुंगा अम्मा! पहले तुम घर चलो?” विनायक सुनीता की ओर देखते हुए बोला। सुनीता समान बैग मे रखते हुए शान्ती देवी की ओर ऐसे देख रही थी। जैसे कि उन्होने गांव जाने का नाम लेकर कोई अपराध कर दिया था।

चार साल पहले शान्ती देवी अपने बड़े बेटे विनायक के पास अपना इलाज कराने लखनऊ आई थी।छोटा बेटा वरूण दिल्ली मे अपने परिवार के साथ रहता था।वह भी पांच साल पहले अपनी मां शान्ती देवी का साथ छोड़ चुका था। सबसे छोटी बेटी शालिनी अपने ससुराल मे थी। गांव के घर मे सिर्फ शान्ती देवी ने अपने पुर्वजों और पति की निशानियों को संजोए रखा था। पति सरकारी कर्मचारी थे।दो दशक पहले उनकी असमय मृत्यु हो जाने पर शान्ती देवी ने उनकी जगह अनुकंपा के आधार पर नौकरी करते हुए जीवन की अनगिनत कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए अपने बच्चों को उचित शिक्षा एवं जीवन की सभी सुख सुविधाएं देते हुए उन्हें उचित स्थान पर पहुंचाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था।




एक महीना बीत चुका था। शान्ती देवी का मन अपने गांव की मिट्टी और खेतों की हरियाली देखने के लिए बेचैन था। “विनायक बेटा! मेरा मन यहा बिल्कुल नहीं लग रहा है,कब गांव वाले घर चलोगे बेटा?” शान्ती देवी उदास होते हुए विनायक से बोली। “जल्दी चलूंगा अम्मा!तुम परेशान मत हो?”विनायक हड़बड़ाते हुए बोला। ” बेटा! मेरी अन्तिम इच्छा है,गांव मे अपने खेत वाले मन्दिर पर सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने की,क्या तुम अपनी बूढ़ी मां की अन्तिम इच्छा पूरी नही करोगे?” शान्ती देवी आशा भरी नजरो से विनायक को देखते हुए बोली। “क्या कहा अम्मा! खेत वाले मन्दिर पर कथा सुननी है?” विनायक घबराए हुए लहजे मे बोला। उसके माथे से पसीना टपकने लगा। वह चुपचाप एक अपराधी की तरह अपनी मां के सामने खड़ा हुआ था। ” ओह ये मैने क्या किया?” वह खुद को कोस रहा था। जब सुनीता और वरूण के कहने पर उसने अपनी मां शान्ती देवी को बिना बताए मन्दिर वाले अपने खेत को बीस लाख रुपए मे बेच दिया था। और दस  लाख रुपए वरूण को दे दिया था।

विनायक रात भर जागता रहा उसकी आंखो से नींद गायब हो चुकी थी।जिस मां ने जीवन भर संघर्ष किया सिर्फ उनकी खुशी के लिए,उसकी अपनी कोई चाहत ही नहीं थी, उसने उस मां के साथ धोखा किया था।उसका मन उसे धित्कार रहा था। अपनी पत्नी और भाई के साथ मिलकर जैसे उसने अपनी बूढ़ी मां का सब कुछ लूट लिया था।वह अपनी मां के पैरों मे गिरकर उससे माफ़ी मागना चाहता था। वह उसे जरूर माफ़ कर देगी क्योंकि वह तो मां है। मां अपने बच्चो के गुनाहो को माफ कर देती है।

सुबह होते ही विनायक के कदम शान्ती देवी के कमरे की तरफ बढ गये,वह अपनी मां से सब कुछ सच बोलकर माफी मांगना चाहता था। ” अम्मा! अम्मा!” विनायक बोला। शान्ती देवी खामोश थी। उसके शरीर मे कोई हलचल नही थी। वह अपनी अन्तिम इच्छा अधूरी छोड़कर इस दुनिया से दूर जा चुकी थी। विनायक की आंखों से आंसू टपक रहे थे। वह चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।उसे खुद से नफरत हो रही थी। उसके हाथ पैर कांप रहें थे।”मुझे माफ कर दो अम्मा! विनायक हाथ जोड़कर शान्ती देवी के मृत शरीर को देखते हुए गिड़गिड़ा रहा था।

जिस मां ने अपने बच्चों के जीवन के लिए अपनी इच्छाओं को दफन करके अपने बच्चों की इच्छा पूर्ति के लिए सर्वत्र लूटा दिया था।उस मां की अन्तिम इच्छा को भी वह पूरा नही कर पाया उसे तो उसकी मां ने प्रायश्चित करने का भी मौका नही दिया था। वह एक अपराधी की तरह अपनी मां से लिपटकर फूट-फूट कर रो रहा था।

 माता प्रसाद दुबे,

मौलिक एवं स्वरचित,अप्रकाशित,

  लखनऊ,

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