खिलखिलाती जिंदगी – भगवती सक्सेना गौड़

आज पार्क में शाम को अपनी सखी मालिनी को देखकर मन प्रसन्न हुआ। सोसाइटी में वो है पांच वर्षों से, पर छह महीने यहां पर और आधे वर्ष छोटे बेटे के घर मे रहती है।

मुझे अंदाज़ था आज तो सब सखियों की मस्त महफ़िल जमेगी, कोई कोई शख्स अपने साथ अपने चारों ओर पॉजिटिव औरा लेकर आते हैं, उसमे से एक मालिनी थी।

एक अनजान सी बच्ची वहां थोड़ी दूर पर अकेली बैठी थी, मालिनी पहुँच गयी और बोली, “हाई, बेबी, तुम कितनी क्यूट हो, नाम क्या है तुम्हारा?”

वो खिलखिला पड़ी, “आंटी, मैं रानू, आप भी बहुत अच्छे हो, और उसकी आँखों मे इंद्रधनुषी रंग बिखर गए।”

फिर हमारी महफ़िल जमी, राउंड टेबल कांफ्रेंस में सीनियर सिटीजन महिलाओं की गप शप शुरू हुई। कभी गाने, कभी कविताये, कभी लोकगीत जिसको जो भाया, वो भी शुरू हो गया।

बातो बातो में मालिनी सब का हाल लेने लगी।

रीना से पूछा, “और सिलाई कैसी चल रही है, इलेक्ट्रॉनिक मशीन से काम बढ़िया चल रहा होगा।”

और सच मे रीना की आंखों में एक सुखद अहसास जगा, “हां, सही में दीदी, आपका आईडिया बहुत काम आया, कोरोना के समय मैं घबरा ही गयी थी। धन्यवाद बोलूं क्या?


“नही रे, तुम सबकी हंसी देखकर ही, मेरा मन खिल जाता है।”

फिर मोबाइल में फेसबुक खोलकर बैठ गयी, सबसे बात करते हुए, फेसबुक में भी अपनी सब सखियों की पोस्ट पर लाइक्स और कमैंट्स की बरसात करने लगी।

दूर से आती एक आंटी को देख कूद कर भागी, “नमस्ते, आंटी, अरे वाह, आपने तो बहुत वेट लॉस किया है, बिल्कुल स्लिम हो गए, बताओ न मुझे भी।”

और वो आंटी जोर से खिलखिलाई, सुनोगी तुम्हारे कारण कई दिनों बाद मैं हंसी हूँ, सारे लोग मुझे पुरानी फिल्मों की कुमकुम से तुलना करने लगे थे, तुम कितनी अच्छी हो, कहीं मत जाया करो।

अंधेरा होने पर मालिनी और मैं चल दिये अपने फ्लैट की ओर, तभी देखा एक डॉग एक बुर्जुग को काटने को दौड़ रहा, और वो घबरा रहे। उन्हें पीछे करके मालिनी ने एक प्यारे से ढंग से कैसी आवाज़ निकाली, कि वो बला आसानी से टल गयी।

अब ये बुजुर्ग भी उससे बोले, धन्यवाद बेटा, आप नही आती, तो पता नही क्या होता।”

“कुछ नहीं होता, अंकल, जोर से हंसते हुए मुझे आशीर्वाद दीजिए।”

हम दोनों लिफ्ट में दो फ्लोर आगे ही पहुँचे, तो धम्म से लिफ्ट रुक गयी, पता चला, लाइट ऑफ हुई, पांच मिनट लिफ्ट रुकी रही, मुझे तो पसीने आने लगे।

तभी मालिनी ने एक गाना शुरू किया, जो डर गया वो मर गया।

तभी लिफ्ट चल पड़ी, हम जोर से खिलखिला पड़े।


जैसे ही लिफ्ट से बाहर निकले, उसका बेटा खड़ा था,  “अरे मम्मी जल्दी आओ, डॉक्टर का अपॉइंटमेंट है, कीमोथेरेपी का ।”

मैंने आश्चर्य से पूछा , “किसका।”

“अरे मत घबड़ाओ, मेरा ही है।”

और मैं उस मालिनी का चेहरा देखती ही रह गयी।

घर पहुँची तो श्रीमान जी बोल पड़े, “कहाँ रहती हो, इतनी देर लगा दी, चाय भी नही मिली।”

बहू आकर सात वर्षीय मानू को पकड़ा गयी, मेरी मीटिंग है, सम्हालिये।


जल्दी से किचन में जाकर चाय चढ़ाई। मन की दुनिया मालिनी के अहसासों में खोई थी, कितना सुकून मिलता होगा, सबको हंसाती रहती है, अपनी पीड़ा, कष्ट, बीमारी, कलह सब भूलकर हम सब उसमे खो जाते हैं।

तभी लगा चाय बहुत उबल चुकी है, ध्यान आया, जितना पकेगी उतनी ही स्वादिष्ट बनेगी, वैसे ही जिंदगी में खिलखिलाना भी बहुत जरूरी है।

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

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