जिन्दा लाश – स्मिता सिंह चौहान

अरे वाह चन्दा, चाँद सी बेटी को जन्म दिया है तूने तेरा बुढापा तो इसकी कमाई में आराम से चलेगा ।”चंदा बाई ने खुशी से बलैया लेते हुए बोला ।

“नहीं मौसी, अब इसे तो बखश दें ।एक घंटे पहले तो ये इस दुनियाँ में आयी है, इसे खुल के साँस तो लेने दें ।मैं कमा के दूँगी तुझे बुढापे तक ।इसे मैं अपना जैसा नहीं बनने दूँगी ।”मालती ने अपने मातृत्व की दुहाई देते हुए कहा।

पास में खड़ी डाक्टर  श्वेता उनकी बातों से सिथतियो को भापने की कोशिश कर रही थी ।

“ज्यादा बड़ी बड़ी बाते बनाना हम जैसी औरतों को ना सुहाता ।जमीन पर आओ मालती रानी ,ये अपनी तकदीर  तभी  लिखकर आयी है, जब तेरी कोख में आयी ।”तभी चंदा श्वेता की  तरफ मुड़ कर बोली “डाक्टर साहिबा हम मालती को ले जाना चाहते हैं ।बताओं कितना पैसा जमा करना है ।”

“अभी नहीं ले जा सकते ।मालती को अभी देख रेख की जरूरत है, और बच्ची को नर्सरी में शिफ्ट करना पडेगा, उसको सांस लेने में दिक्कत आ रही है ।ऐसे में बच्चे की जान जा सकती है ।नर्स, नर्स…बच्चे को अभी चाइल्ड वार्ड में ले जाओ।”डाक्टर श्वेता भी नफरत से भरी कड़क आवाज में  बोली ।

“अरे ,अब हम इस मालती पर ही पैसा फूके क्या?वो तो इसकी हालत बिगड़ गयी थी ,इसलिए अस्पताल लानी पडीं ।वरना हमारे बाड़े में ही बच्चा जनती है औरते  ।देख मालती ये सारा खर्चा तुझ से ही वसुलूंगी ,ऐसे हर लड्की पर लुटांऊगी तो धंधा ही चौपट हो जायेगा ।ये ड्रामे बन्द कर और दो दिन आराम के बाद अपना जलवा बिखेर तभी तो असपताल के खर्चे की भरपाई कर पायेगी ।”चंदा बेरूखी से बोली ,मालती की आखों से आंसू बहते जा रहे थे ।

“अभी सब जाओ यहाँ से।मुझे मालती को एकजामिन करना है।अभी एक दो घंटे तो रुकना ही पड़ेगा, ले जाना उस के बाद ।असपताल”ड है तुम्हारा बाड़ा नहीं ।” डाक्टर श्वेता ने कड़क आवाज में कहा।

“लेकिन 2घंटे में ले जाऊँगी ।बल्लू तू बाहर बैठ निगरानी रखना ।मुझे वापस जाना है ,आती हूँ इसे लेने ।”चंदा कहते हुए वहां से चली गयी ।



 

डाक्टर श्वेता ने दरवाजा बन्द करते हुए,मालती की तरफ देखते हुए कहा “अपनी जिंदगी नर्क बना लेती हो ,और फिर बच्चे भी पैदा कर लेती हो ।माॅ बनने का शौक पालने से पहले अपने गिरेबा में झांक कर तो देखा होता।बताओं उस बच्ची को भी इसी जिस्मफरोशी के धंधे में डालोगी।शर्म नहीं आती तुम लोगों को अपने आप पर ।”

“नहीं, ऐसा मत कहिये।मैने ये जिंदगी अपनी मर्जी से नहीं चुनी ।मेरी जैसी कई लडकिया बचपन में ही चंदा के दलालों के द्वारा उठा ली जाती है ।मुझे तो ये भी याद नहीं कि मेरे माता-पिता कौन है?चंदा ने मुझे इस धंधे के सारे हुनर सिखाये ।जो मैने अपने बचपन में ही सीखे जब मेरी नथ उतारी गई तब मेरी उम्र 16साल की थी ,मुझसे कहा गया कि मेरी शादी हो रही है, मै भी उस दिन को अपनी शादी ही समझी ,दुल्हन की तरह ही तो सजाया गया था मुझे ।लेकिन बात तब समझ आयी जब हर रात एक नया दूल्हा मेरा बदन नोचने आने लगा ।बहुत घिन आने लगी अपनेआप  से ,कई बार भागने की कोशिश की ,लेकिन चंदा के उस बाड़े की दीवार मेरे इरादों से ज्यादा मजबूत निकली।पकडे जाने पर बहुत घाव मिलते थे।”अपनी कमर पर एक जला हुआ घाव दिखाते हुए मालती बोली।”हमारे धंधे में बच्चे का ठहरना खुशी नहीं सजा होता है ।पेट में बच्चा लेकर भी धंधे में बैठना पड्ता है, कुदरत का मजाक देखो हमारे बच्चे भी ऐसे सख्त जान होते हैं कि इतनें पर भी नही गिरते ।कितना भी संभल कर चलो गलती हो जाती है ।मुझे दवा भी दी गयी ,लेकिन बच्ची नहीं गिरी ,फिर दाई ने चंदा को बोला लडकी है, तो चन्दा मान गयी ।लडकी तो हमारे बुढापे की पेंशन होती है ना “।श्वेता की ऐसे लोगों के प्रति नफरत जैसे पिघल रही थी ,अपनी आखों में रूके हुए आंसूओ को पोछते हुए एक लम्बी सांस भरती है ।

“अगर तुम अपनी बच्ची को लेकर भागना चाहती हो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ ।बताओं ।अब क्या चाहती हो ?चंदा के साथ बच्ची को वापस उस गंदगी में ले जाना ,या भाग जाना ।”श्वेता ने उसे अपने मन में उमड़ रहे विचार को वयक्त किया ।

 

“ये एक ऐसा दलदल है, जो आपका पीछा नहीं छोड़ता ।मैं उसे लेकर  कहीं भी चली जाऊं, मेरे अतीत की परछाई पता नही किस मोड़ पर हमारे सामने आकर खड़ी हो जाये ।आप मेरी मदद कर दीजिये, चंदा को बोलिये की मेरी बच्ची को अभी आप नहीं दे सकते जब तक वो ठीक ना हो ,कोई भी बिमारी बता दीजिए वो आप पर यकीन कर लेगी ।वो मेरी बच्ची पर पैसा खर्च भी नहीं करेगी और बीमार बच्ची है सोचकर लेकर नहीं जायेगी । आप उसे किसी अनाथालय या किसी ऐसे जोड़े को दे दीजिए जो बच्चा चाहता हो ।कम से कम वो मेरी जिंदगी से तो दूर चली जाये ।”मालती अपनी तड़प को शब्दो का जामा पहनाकर जैसे श्वेता के मन को भेदने लगी ।

 

श्वेता कुछ सोचते हुए, घड़ी की तरफ देखती है।”देखो मालती ,मैं कुछ करती हू ।लेकिन अगर  बच्चा दिखाने को कहा तो मैं फंस जाऊँगी ।”श्वेता ने अपनी दुविधा को मालती के सामने रखा ।



 

“मैं उसे जानती हूँ, वो नहीं बोलेंगी ।हमारे धंधे में जिन्दा लाशे चाहिए हमारी तरह ।बीमार और मरो  के लिए जगह नहीं है ।आपका यह अहसान मैं कभी नही भूलूंगी अगर ये बच्ची इस जहन्नुम से दूर हो जाये ।”मालती ने श्वेता की कशमकश को दूर किया ।

 

“ठीक है ।”कहते हुए श्वेता दरवाजे से बाहर निकली जहां बिल्लू की निगाहें उसका दूर तक पीछा करती रही ।

 

श्वेता थोड़ी देर बाद ही बिल्लू से बच्ची के बारे में बताकर चली गयी ।अपने केबिन में उसके हाथ पाँव फूल रहे थे ये सोचकर कि अभी चंदा आकर शायद कुछ बखेड़ा ना खड़ा करदे।बार बार घड़ी देखती लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी उस केबिन से बाहर झाँकने की ।काफी देर हो चुकी थी ,श्वेता हिम्मत जुटा कर मालती के कमरे की तरफ बढीं ,बाहर बिल्लू नहीं था ।कमरे में नर्स बैड शीट चेंज कर रही थी “वो पेशेंट थी ना मालती यहाँ ।”

 

“वो तो एक घंटे पहले ही चली गयी ,पैसा जमाकरके ।बच्ची के नर्सरी का खर्च नहीं उठा सकते यह कहकर बच्ची भी छोड़ गये ।वो लोग तो ठीक नहीं लग रहें थे लेकिन कमाल है माॅ भी कुछ नहीं बोली ।पता ,फोन नंबर सब गलत देकर गये हैं अब शिकायत भी किसकी दर्ज करे।ऐसे ही लोग नवजात बच्चियों के दुश्मन होते हैं ।बेटा होता तो ले जाती ।”नर्स बडबडा रही थी और श्वेता चुप थी ,वह कमरे से रिसेपशन की तरफ बढते हुए सोच रही थी “माँ थी ,इसलिए ही नहीं बोली ।सही कहा था मालती ने हमारे धंधे में जिन्दा लाशे चाहिए ।”श्वेता ने बच्ची को एक N G O की मदद से किसी संतानविहीन दंपति की गोद में दिया ।उसने आज एक बेटी को,बचाया था,एक अंतहीन दलदल में फंसने से।आज भी मालती को याद करके श्वेता सिहर जाती है ।

 

दोस्तो, किसी ने सही कहा है कि किसी की चाल को देखकर हंसने से पहले उसके पैर के तलवे जरूर देखें,  किसी के तलवों पर क्या पता  छाले हो ?किसी के जीवन की दुश्वारियों को जानें बिना राय कायम करना हमें हमेशा एक अपरिपक्व इंसान की श्रेणी में रखता है ।कौन क्या है?इस पर नजर डालने से अच्छा है, कि क्यो ऐसा हैं ये जानने की कोशिश करें ।जब हम बेटी बचाओ, बेटी पढाओं की बात करते है ,तब हमें समाज के उपेक्षित तबके की बेटियों को भी बचाने की बात अवश्य करनी चाहिए, जहां बेटियो को गर्भ में मार डालने का नर्क तो नहीं सहना पड़ता लेकिन उनको दुनिया में लाकर नर्क का अनुभव कराया जाता है।

 

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

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