जिद्द बेटा पाने की – मंजू तिवारी

हम दो-चार 10 दिनों में चीन को पीछे छोड़ कर नंबर वन पर आने वाले हैं उद्योग धंधे या विकास को लेकर नहीं जनसंख्या में,,, हम चीन को पछाड़ाने वाले हैं। और हो जाएंगे विश्व के जनसंख्या में सबसे आगे नंबर वन पर,,,,,

कुछ समझदार वर्ग जनसंख्या कम रहे इसके लिए अपने व्यक्तिगत हितों को बलिदान कर रहा है। सिंगल चाइल्ड पॉलिसी को फॉलो करने लगा,,, शहरी क्षेत्रों में लोग कहते मिल जाएंगी इतनी महंगाई है एक को ही अच्छे से कर ले वही मेरे लिए बड़ी बात है।,,,,

इसमें यह बात भी सच है जब बच्चा  अकेला होता है तो उसका सर्वांगीण विकास बहुत अच्छी तरीके से नहीं हो पाता है एकल परिवार रह गये उसका सगा भाई बहन दुनिया में आने के लिए माता-पिता इच्छुक नहीं है। वह सिंगल चाइल्ड पॉलिसी के अंतर्गत  चाहे बेटा हो चाहे बेटी,,,, अपने निजी हाथों को छोड़ रहे हैं।

 अब बारी आती है ऐसे व्यक्तियों की जिनकी एक बेटी है और दूसरी संतान को दुनिया में लाना चाहते हैं सोचते हैं बेटा ही हो इस के लिए तरीका चाहे कोई भी क्यों ना हो ,,चोरी छुपे लिंग परीक्षण करवाते हैं सब कुछ उनके लिए जायज होता है हर कीमत पर बेटा ही चाहिए कभी-कभी सफल भी हो जाते हैं गर्भपात करा करा कर आखिरकार बेटा पैदा ही कर लेते हैं।,,,, परिवार पूरा हो गया,,,

अब उनकी बात भी कर लेते हैं ऐसे बेटे जो अपने माता-पिता के इकलौते हैं। जिनके एक बेटी हो गई दूसरी भी बेटी हो गई लेकिन बेटा ना हुआ अब उनके ऊपर दवा होता है बेटा पैदा ही करें तभी तो वंश आगे बढ़ेगा बिचारे कभी-कभी दबाव में आकर मानसिक रूप से प्रताड़ित होते रहते हैं। ना चाहते हुए परिवार के लिए परिवार आगे बढ़ाना ही पड़ता है।

समाज में ऐसे भी लोग रह रहे हैं जो बेटे को प्राप्त करने के लिए लिंग परीक्षण पूजा झाड़-फूंक  टोटका भी करते हैं। टोटके टमन्नो में बहुत ही ऐसी चीजें शामिल होती हैं जो मन को परेशान करने वाली होती हैं बेटे वाली महिला के साथ अनेक प्रकार के टोटके किए जाते हैं जिससे किसी तरह से बेटियों के बाद उसको बेटा पैदा हो जाए हास्यप्रद बात है लेकिन यह सत्य  है ।होता जरूर है।




पहली बेटी होती है तभी समाज में लोग कहने लगते हैं इसके लिए एक भाई और आ जाए जब भाई ना आकर बहन जाती है तो उस दंपति को बेचारा कह दिया जाता है इसलिए बच्चों में और माता-पिता में हीनता की भावना आ जाती है। लोगों उसे सांत्वना देने लगते हैं।

बेटा तो होना ही चाहिए बुढ़ापे का सहारा होता है। बहन को लाने छोड़ने वाला होना चाहिए यह बात भी सत्य है कि जब परिवार में भाई नहीं होता है तो ससुराल वाले भरपूर फायदा उठाते हैं। ससुराल वालों को दबाने के लिए भाई तो चाहिए ही चाहिए

बहू के भाई होना ही चाहिए नहीं तो मेरा बेटा ससुराल कैसे जाएगा अगर एक बेटे की बिना भाइयों वाली से शादी कर ली तो दूसरे बेटे के लिए साले चाहिए ही चाहिए चलो एक बेटे के तो ससुराल है। जब मां-बाप नहीं रहेंगे तो मेरा बेटा और बहू कहां जाएंगे

जब किसी की एक बेटी होती है। कोई बात नहीं जब दूसरी बेटी है होती है तो लोग सांत्वना देती हैं बेटियां भी किसी से कम नहीं,,, इसी सहानुभूति से बचने के लिए और बेटियां पैदा होती चली जाती है जब तीन बेटियां हो जाती आज के समय में तो समझ लो बेटे के ही लिए आगे परिवार को बढ़ाया है।

अब वही माता-पिता बेटियां किसी से कम नहीं मेरी बेटियां तो बेटों से बहुत अच्छी हैं बेटियो प्रमोट करने वाले स्लोगन देते हैं। लेकिन सच्चाई तो यह भी बेटे को किसी तरह से लाने के लिए जनसंख्या तो आपने भी बढ़ाई ना लेकिन बेटा ना हुआ यह अलग बात है।

दूसरा सबसे बड़ी समस्या भारतीय समाज में यह है।




अगर बेटा होगा तभी तो माता-पिता परलोक में जाएंगे मोक्ष प्राप्ति होगी बिना बेटे के मोक्ष की प्राप्ति असंभव है मुखाग्नि का भी अधिकार सिर्फ पुत्र को होता है। लोगों को अपनी मोक्ष प्राप्त से ज्यादा जिनके बेटे नहीं है उनकी मोक्ष प्राप्त की ज्यादा फिक्र रहती है। इस कारण भी किसी भी कीमत पर पुत्र तो होना ही चाहिए तो लोग कोशिश करते रहते हैं कुछ भी हो जाए पुत्र तो होगा ही इसके लिए हर तरीके के उपाय अपनाए जाते हैं।

दूसरा भारतीय समाज में बेटी को हमेशा पराया धन कहा गया है फिर पराई चीज अपनी कहां होती है इसलिए भी बेटा चाहिए लेकिन बदलते जमाने की सच्चाई यह है ना बेटा साथ रहता है ना बेटी साथ रहती है दोनों ही अपने अपने कैरियर पर फोकस करते हैं और माता-पिता को जरूरत पड़ने पर  साथ दे पाते हैं। अंतर खत्म हो गया लेकिन इस चीज को कोई समझना नहीं चाहता

दो बेटियों के बाद तीसरे बच्चे का अपने आप गर्भपात हो गया यह अक्सर देखने को मिल जाता है। गर्भपात कराया गया है या हो गया है समझा जा सकता है।

बेटों की मां होने पर गर्व की अनुभूति,,, बेटियों की  मां के साथ परिवार में तिरस्कृत व्यवहार,,,,

ससुराल वाले बहू पर एकाधिकार समझते हैं बेटी के अपने माता-पिता के प्रति कुछ फर्ज भी आज के समय में बनते हैं जिन्हें पूरा करने में बाधा उत्पन्न हो जाती है। इसलिए भी बेटा होना बहुत जरूरी समझा जाने लगता है।

अभी हाल में ही कोरोना काल में कई माता-पिता जो हॉस्पिटल में थे और उनका निधन हो गया उनकी संतान उन्हें लेने के लिए भी तैयार ना थे अंतिम संस्कार ऐसे लोगों ने किया जिनसे उनका खून का रिश्ता ना था,,,,

बेचारे बेटे जिन पर पारिवारिक धार्मिक इतनी सारी जिम्मेदारियां डाल दी है। शायद उन्हें इसीलिए पैदा किया जाता है। जबकि बेटियों को बिना जिम्मेदारी के उनको संपत्ति में अधिकार दिया जाता है। संतान हो तो जिम्मेदारी निभाने का हक भी बेटियों को दिया जाना चाहिए




 बेचारी बेटियां अपने माता-पिता को लोगों के हिसाब से मोक्ष की प्राप्ति नहीं करा सकती इसलिए उनको मार दिया जाता है। या बेटे के इंतजार में कई बेटियां घर में हो जाती हैं तब कहीं जाकर बेटा होता है।

कहीं-कहीं बच्चे तो अल्लाह की देन है। की कहावत फलीभूत होती है। चाहे उनके लिए मूलभूत सुविधाएं हो चाहे ना हो,,,,

बेटा कुल का दीपक होता है। इस प्रकार के स्लोगन जनसंख्या वृद्धि में अपनी अहम भूमिका आज भी निभा रहे हैं।

जो संपन्न वर्ग है या धनाढ्य है उनके यहां जनसंख्या नियोजन  देखा जाता है।

जबकि निम्न वर्ग में जितने ज्यादा बच्चे होंगे उतना ज्यादा कमा कर लाएंगे की कहावत चित्रार्थ होती है।

माता-पिता को अपने ही हाड मास खून अपने अंश को पाने की जिद,,, नहीं तो न जाने कितने अनाथालय बच्चों से भरे पड़े हैं उनकी आंखें ऐसे लोगों की तरफ देख रही है एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं आपको बच्चे मिल जाएं उन्हें माता-पिता मिल जाए,,,, पारिवारिक लोगों को भी अच्छा नहीं लगता कि उनकी संपत्ति किसी बाहर वाले बच्चे को जाए,,,,, परिवार वाले कभी भी ऐसे माता-पता के समर्थन में नहीं आते,,, न उस बच्चे को कभी अपनाते हैं।

जबकि सच्चाई यह है यह सब लोगों के बनाए हुए भ्रम है मोछ ना बेटा प्राप्त करवाता है ना बेटी प्राप्त करवाती है व्यक्ति के हमेशा कर्म ही ऐसे होते हैं जो उसके सामने आते हैं और मोछ दिला सकते ,,,

 हमारा कोई भी धार्मिक ग्रंथ कभी भी बेटी को कम नहीं मानता यह सिर्फ लोगों के बनाए हुए अपने मन की भ्रांतियां हैं।




रही बात क्रिया कर्म मुखाग्नि कि यह कोरोना में भली-भांति सामने आ गया जिनके संताने बेटा बेटियां दोनों ही थे ऐसे माता-पता का क्रिया कर्म किसी और ने किया अपने बच्चे पीछे हट गये,,,,

इन्हीं  कारणों से हम बड़े-बड़े आलीशान घरों से छोटे-छोटे घरों रूपी घोषलाओं में रहने को मजबूर होते चले जा रहे हैं। और खेतों के आकार भी बहुत छोटे होते चले जा रहे हैं बांटते बांटते,,,,,,

किसी भी कीमत पर बेटा ही चाहिए की जिद छोड़ कर एक जिम्मेदार नागरिक होने की देश हित में जिम्मेदारी निभाए,,,, वक्त रहते संभल जाइए,,, सीमित संसाधन है स्थितियां विकट होंगी,,,,,, बेटे की जिद में जनसंख्या ना बढ़ाएं,,,,  बेटा और बेटी दोनों ही आपकी परछाई है। जो प्राप्त है उसी में खुशियां मनाएं,,,,,

मंजू तिवारी गुड़गांव

स्व लिखित  मौलिक

प्रतियोगिता हेतु

#जिम्मेदारी

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