ये गंवार औरत हमारी मां है। – सविता गोयल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : ” सुनिए जी,.. .. वो मेरे बाऊजी अपनी वर्षा  के लिए कोई लड़का बता रहे थे। सकुचाते – सकुचाते सुभद्रा जी अपने पति कैलाशनाथ जी से बोलीं ।

” तुम तो रहने ही दो… जैसे तुम्हारे माँ- बाप ने तुम जैसी गंवार औरत मेरे पल्ले बांध दी वैसा ही कोई रिश्ता मेरे बेटी के लिए भी बताया होगा। तुम लोग मेरे और मेरे बच्चों के मामले में ना पड़ो यही ठीक रहेगा.. अपने बच्चों का भविष्य मैं खुद तय कर लूंगा। ज्यादा बक- बक की तो तुझे भी तेरे बाप के घर  भेज दूंगा। ,,  अकड़ते हुए कैलाशनाथ जी ने एक पल में अपनी पत्नी का मुंह बंद कर दिया…।

सुभद्रा जी अपनी बेइज्जती तो रोज हीं सहती थीं लेकिन अपने माता- पिता पर कसा गया तंज उनकी आंखों को भिगो गया । फिर भी वो चुप हीं थी क्योंकि आज तक चुप हीं तो रही थी। बच्चों को पैदा करके पाला – पोसा जरूर था लेकिन हक जताकर उन्हें अपने बच्चे कहते भी डरती थी।   हां एक बात की संतुष्टि जरूर थी कि उसे भले ही सम्मान नहीं मिला लेकिन उसके बच्चों को पिता का प्यार और सहयोग जरूर मिल रहा था..।

सुभद्रा जी एक सीधी- सादी सी अनपढ़ महिला जो थी जिसे किस्मत से पढ़ा लिखा अच्छा कमाने वाला पति मिल गया था। अब ये सुभद्रा की किस्मत थी या बदकिस्मती ये तो सिर्फ सुभद्रा जी ही जानती थी ।

कैलाशनाथ जी की बड़ी बेटी वर्षा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी.. जल्द ही उसकी नौकरी भी लगने वाली थी जिसके लिए वो कड़ी मेहनत कर रही थी।कैलाशनाथ जी को अपनी बेटी पर बड़ा गर्व था। आखिर माँ के अनपढ़ होने के बावजूद बेटी आज इस मुकाम पर पहुँच गई थी जिसका पुरा श्रेय वो खुद को ही देते थे।    जब भी कैलाशनाथ जी उससे शादी की बात करते वो टाल देती..  हमेशा कहती पहले मुझे  आत्मनिर्भर बनना है ।

एक बहुत हीं अच्छा रिश्ता आया तो कैलाशनाथ जी इस बार फिर वर्षा से बात करने से खुद को रोक नहीं सके ,” बेटा, बहुत अच्छा रिश्ता आया है तेरे लिए। उन्हें तुम्हारे पढ़ने और नौकरी करने से भी कोई दिक्कत नहीं है ।  तुम बस हां कर दो । ,,



वर्षा चुपचाप बैठी रही जैसे उसने कुछ सुना हीं नहीं  …

सुभद्रा जी दरवाजे की ओट में खड़ी देख रही थी तो उनसे रहा नहीं गया, ” वर्षा, तेरे पिता जी कुछ पूछ रहे हैं… जवाब दे बेटा।   ,,

कैलाशनाथ जी फिर चिल्लाए, ” तुझसे कहा ना तूं चुप रहा कर.. मैं बात कर रहा हूँ ना …..। ,,

सुभद्रा जी को फिर चुप कराकर कैलाशनाथ जी अपनी बेटी वर्षा से बोले,” बता बेटा,क्या बात है आखिर क्यों तूं हर बार शादी करने से मना कर देती है  । ,,

” पापा, मुझे अभी शादी नहीं करनी, पहले मैं खुद का घर बनाऊंगी। ,, वर्षा बोली।

” खुद का घर!!! अरे बेटा तुझे किस चीज की कमी है?? तुझे तो मैं ऐसे घर में दूंगा जहाँ तूं रानी बनकर रहेगी । ,, कैलाशनाथ जी बोले।

” पापा, नाना जी ने भी तो माँ को अच्छा घर और वर देखकर हीं उनकी शादी आपसे की थी ना….. लेकिन क्या माँ को कभी इस घर में सम्मान मिला?? मैं पहले अपना घर बनाऊंगी ताकि कोई मुझे ये ना कह सके कि तुझे तेरे बाप के घर भेज दूंगा । वर्षा ने नजरें मिलाते हुए अपने पिता से कहा ।

वर्षा की बात सुनकर अचकचाते हुए कैलाशनाथ जी बोले, ” तुम अपनी बराबरी इस जाहिल,गंवार औरत से कर रही हो!! जिसे ना बोलने का पता है ना उठने- बैठने का!!!  ,,

“पापा, जिसे आप गंवार औरत कहते हैं ना.. वो हमारी मां है  … ।  उसी ने हमें पाल पोस कर इस लायक बनाया है । सच बताईये पापा, मुझमें और माँ में क्या अंतर है ??? .. यही ना कि वो अनपढ़ हैं और मैं पढ़ी लिखी .. शादी के बाद जाऊंगी तो मैं भी पति के घर ही ना।  … यदि कभी मेरे पति को ऐसा लगने लगा कि मैं उसके लायक नहीं हूँ तो वो भी मुझे बात- बात पर बाप के घर भेजने की धमकी देकर मेरे आत्मसम्मान को छलनी करेगा।   ……. नहीं पापा, मैं ये नहीं होने दूंगी ।  मैं माँ जैसी नहीं बनना चाहती  ….  ।,, आज वर्षा की आवाज में अलग हीं रोष था जिसने कैलाशनाथ जी का मुंह बंद कर दिया था। 

सुमित्रा जी की आंखें डबडबा आई थीं लेकिन उनके अंदर का आत्मविश्वास आज जाग चुका था। बेटी के रूप में आज उन्हें अपनी खोई हुई आवाज मिल गई थी जो एक पत्नी, एक माँ सम्मान के लिए उठी थी।

सविता गोयल 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!