हमारी सासु माँ – मीनाक्षी सौरभ : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सासु माँ! ये शब्द सुनते ही क्या आया दिमाग़ में? एक ऐसी हंटर वाली जिसने न सिर्फ़ बहू पर बल्कि पूरे घर पर अपना क़ब्ज़ा करके रखा है। यही ना…।

हम काव्या…! हमारी शादी होने वाली है जल्द ही। हमारी सासु माँ जाने कैसी होगी। सारे घर वालों ने, नाते रिश्तेदारों ने एक ही बात बोल बोल के हमें बड़ा चिढ़ाया हुआ है कि सास तो जाते ही बोलती बंद कर देती हैं। तुम जो सर्वगुण सम्पन्न का भ्रम पाल के बैठी हो ना वो सब काफ़ूर होने वाला है। सास ऐसे करेगी, वैसे करेगी। ये करेगी, वो करेगी। ये सब सुन सुनकर हमारे दिमाग का दही, रायता, पनीर सब बन गया था।

पर माँ ने बोला, “बेटा..! मैं तेरी जन्म की माँ हूँ और वो तेरी धर्म की माँ होगी। तेरा भला बुरा, अपना पराया सब कुछ जैसे मैं देखती हूँ वैसे ही वो भी देखेंगी तो उनसे डरना मत। अपने मन तन की सारी बातें जैसे मेरे साथ शेयर करती है उनके साथ भी करना वो भी तुझे मेरे जैसा प्यार करेंगी।”

अब हम बेचारे माँ और बाक़ियों की बातों में त्रिशंकु की तरह अटक गए। किस का भरोसा करें?

मॉं हमको डराना नहीं चाहती थी इसलिए शायद झूठ बोला हो। पर बाक़ी लोग…. इतने सारे लोग झूठ नहीं बोल सकते। कुल मिलाकर कन्फ्यूजिया गए थे पूरे।

फ़ाइनली हमने तय किया कि हम ना तो माँ की मानेंगे और ना ही बाकियों की। पहले परखेंगे, जानेंगे कि ये सासु माँ आख़िर चीज़ क्या है…!!!

पूरी शादी के दौरान हमारी निगाहें सासु माँ की ही तरफ़ थी। मुझे तो वो आम इंसान जैसी ही लगी। अपने बेटे की शादी में ख़ुश होती मॉं जैसी, बहू की बलैयाँ लेती एक आम सासु माँ …!!!

पर सँभलो काव्या…! ये सब दिखावा भी हो सकता है, छलावा भी, मृगतृष्णा जैसा….

तो भई! आ गए हम सासुमाँ के अधिकार क्षेत्र में यानी कि उनके साम्राज्य में। बहुत बड़ी प्रजा नहीं थी उनकी। कुल मिलाकर पॉंच लोग घर में। राजा-रानी, दो राजकुमार और एक राजकुमारी यानि कि हम काव्या चतुर्वेदी।

बाकियों के यहाँ तो सास बहू को परखती है पर हमारे केस में उल्टा हो रहा था। हमें तो अपने पति महोदय से ज़्यादा इंटरेस्ट अपनी सासु माँ को जानने में था।

मुँह दिखाई चल रही थी हमारी। हम बैठे थे सबके बीच अपनी नापतोल करवाने। घूँघट के अंदर से हम देख रहे थे कि हमारी सासु माँ कितने सलीक़े से सारा काम संभाल रही थी। हम नज़रों से सासु माँ को तोल ही रहे थे कि एक आंटी बीच में बोल पड़ी, “कुछ भी कहो कविता,होगी तुम्हारी बहू बहुत पढ़ी लिखी पर रंग तो थोड़ा दबा हुआ है।ऐसी बहू पर हल्के रंग तो फीके लगते हैं और गाढ़े रंग चटख। अब मेरी स्नेहा को ही देखो सारे रंग खिलते हैं उस पर।”

मन तो किया कि अभी उन आंटी जी को जवाब दूँ कि आपको हमारे बारे में बोलने का हक़ किसने दिया। लेकिन उनको जवाब हमसे नहीं, हमारी सासु माँ से मिला।



“सही कह रही है सुलोचना जी, आपकी बहू पर सारे रंग जँचते हैं ,बस ससुराल का ही रंग न जाने क्यों नहीं चढ़ा। वैसे रंग क्या देख रही हैं आप, नैन नक़्श देखिए बिलकुल ‘बणी ठणी’ पेंटिंग जैसे हैं। बहू का रंग रूप तो बस मुँह दिखाई तक ही रहता है बाद में तो काम आते हैं उसके गुण और मुझे अपनी काव्या पर पूरा भरोसा है कि वो गुणों की भी धनी होगी।” मीठी पर धारदार छुरी सी मुस्कान देती हमारी सासु मॉं ने ज़ुबान बंद कर दी सभी की।

हमारी परीक्षा में सासु माँ पास हो गईं और वो भी पूरे डिस्टिंक्शन के साथ । माँ को गले लगाने का मन हुआ कि माँ के अलावा और माँ से बेहतर कौन सोच सकता है बेटी के बारे में। मॉं का कहा सच हुआ।

सासु माँ तो बस हर बात पर चौके छक्के जड़े जा रही थी।हमेशा हमारे लिए ढाल बनकर खड़ी रहतीं। हमारी नज़र में रोल मॉडल सी बन गई थीं वो। बड़ा प्यार हो गया था उनसे। मन में ना कोई चिंता, न कोई फ़िक्र, ना कोई डर, ना कोई भय। कुल मिलाकर गोल्डन डेज़ चल रहे थे हमारे।

सर्दियों की बात थी। सासु माँ ने ऊनी कपड़े धूप में रखने को बोला, हम अनसुना करके ऑफ़िस चले गए।

एक दोपहर घर से फ़ोन आया कि बेटा आते समय ये सामान ले आना। पर हमें तो याद ही नहीं रहा।

कभी हम रसोई का कुछ भूल जाते, कभी बाहर हमसे कुछ ग़लतियाँ हो जातीं, कभी हम वाशिंग मशीन में कपड़े डालकर भूल जाते तो कभी गैस पर दूध या तेल रखकर।

कभी हम जानबूझकर ग़लतियाँ करते तो कभी अंजाने में। पर हॉं…हमसे गलतियाँ बहुत होने लगी थीं।

पर हमारी शहद की डली, हमारी प्यारी मधुमक्खी…. सॉरी सॉरी…. सासु माँ ज़हरीली बर्र कभी नहीं बनीं।

ख़ैर..! एक दिन हम अपने बाथरूम का गीजर ऑन करना भूल गए तो सासु माँ के बाथरूम में नहाने को गए और हमेशा की तरह बाथरूम को वाइप करना भूल गए। थोड़ी देर बाद ससुरजी बाथरूम में गए और फर्श पर बिखरे पानी में फिसलकर गिर गए।

बस अब शहद फट पड़ा था। हमारी प्यारी शहद सी मीठी सासु माँ नीम जैसी कड़वी हो गई। बड़ी डांट पड़ी हमें उस दिन। मॉं पर बहुत ग़ुस्सा आया और बाक़ी लोगों पर बड़ा भरोसा हुआ। तो ये हैं हमारी सासु माँ का असली चेहरा।



उस दिन उन्होंने पिछले छह महीने की हमारी सारी ग़लतियाँ स्टेप बाय स्टेप हमें गिनवाईं और ये भी बोला कि हमारी ये लापरवाही उनके ही लाड़ प्यार का नतीजा है। हमारा प्यार भरा दिल टूट चुका था। हमें लगा कि हमारे सामने ममतामयी निरुपा रॉय की जगह चालबाज़ ललिता पवार खड़ी हैं।

हम तो ये मान रहे थे कि पापा जी सिर्फ़ फिसले थे, उनको चोट नहीं आई तो फिर इतना नाराज़ होने की क्या बात है। हमारी आँखों से जो आँसू निकले उसमें ग़लती का पछतावा नहीं बल्कि अपने अपमान का दुख था। हमने सॉरी बोला लेकिन बेमन से। शहद की वो सुंदर सी डली हमारी नज़र में अब कड़वा नीम बन चुकी थी।

रात को जब हम चुपचाप तकिये पर सर टिकाए सोच रहे थे कि सासु माँ के कितने रूप हैं तो अनजाने में ही हमें अपना भी एक अलग ही रूप दिखाई दिया… लापरवाह, बदतमीज़ और ज़िम्मेदारियों से भागने वाली लड़की का।

क्या यह सचमुच में हम थे?  नहीं, हम ऐसे तो न थे…..पर अफसोस ये हम ही थे जो शहद की चाशनी में लिपटकर मीठी रबड़ी बनने के बजाए डायबिटीज़ की बीमारी बन रहे थे।

हमें ये अहसास हुआ कि अगर आज हमें ये डांट नहीं पड़ती तो हमारे क़दम और भी बेपरवाही की तरफ़ बढ़ते। माँ ये ही तो करती हैं…. अच्छी बातों पर प्यार, ग़लती पर डाँट। औरों के सामने वो अटूट ढ़ाल जिसे कोई भी भेद ना पाए लेकिन अकेले में सच का आईना दिखाने वाली। तो सासु माँ ने भी तो ऐसा ही किया। वास्तविकता तो ये थी कि सच में शहद की अधिकता की वजह से हम बेपरवाह और थोड़े बदतमीज़ भी हो गए थे।

उफ़्फ़..! कितनी बड़ी ग़लती कर दी थी हमने। जिस रिश्ते को सहेजने की ज़िम्मेदारी हम दोनों की थी, उसका सारा दारोमदार हमने अपनी प्यारी सासुमॉं पर डाल दिया। हम जल्दी से उठकर जाने लगे।

पति देव ने पूछा, “आधी रात को कहाँ जा रही हो?”

“अपनी प्यारी सी, मीठी सी मधुमक्खी को आई लव यू बोलने।”

मीनाक्षी सौरभ

 

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