ये धन संपत्ति ना…अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती है। – चंचल जैन : Moral Stories in Hindi

रीमा जी और सरला जी दोनों सखियां कहीं भी जाती साथ ही जाती। चाहे घुमने जाना हो, चाहे देवदर्शन करने। 

दोनों महाकुंभ मेले में जाना चाहती थी। अपने-अपने सारे ग्रुप पर दोनों ने मैसेज डाल दिया। दोनों अकेली जाना नहीं चाहती थी। साथ में अपने हो तो साथ-साथ आने-जाने में सुविधा रहती है।

15-20 मेंबर हो गये थे। बस बुक करनी थी। वहां रहने का बंदोबस्त,  सारा नियोजन करना था। पता चला, सब जगह बुकिग फुल्ल है। लाखों लोग दर्शन करने आ रहे हैं। फिर भी किसी तरह व्यवस्था हो गयी। जय श्री राम, जय हो गंगा मैया, हर हर गंगा का जयकारा करते-करते वे प्रयागराज पहुंचे। सब चाहते हैं,

संगम में ही डुबकी लगाये, आसपास नहीं। आखिर भगदड़ मच गयी। चाकबंद व्यवस्था के होते हुए भी अव्यवस्था हो गयी। लोगों ने बैरीकोड तोड दिए। उम्रदराज लोग, बच्चें न जाने कौन-कौन भीड के हत्थे चढ गया।

सरला जी की बहन विमला जी साथ में आयी थी। सरल, शांत, मृदुल स्वभाव। धीरे से बोलती।  बहुत ही संयमित व्यवहार था उनका। दया, करुणा की साक्षात् मूरत। धनवान तो थी ही, दयालू भी बहुत  थी। जगह-जगह उनके परिवार ने प्याऊ बनवाये थे। हीन-दीन को सहायता करना, गरीब बच्चों को पढने के लिए सहायता करना, मुफ्त दवा, ईलाज करवाना, मानवता की सच्चे मन से सेवा करते।

सब कुछ था, पर कुछ दिन पहले ही भयंकर दुर्घटना में उनके पति और इकलौते बेटे की मौत हो गयी थी। वे इतना बडा आघात सह न पायी। वे बिमार रहने लगी। सरला जी साथ में थी, इसलिए वे महाकुंभ में दर्शन  करने आयी थी।

नियती ने उनकी आस पूरी की, लेकिन भगदड में वे ऐसे फंसी कि उठ ही न पायी। वही उनकी मृत्यु हो गयी।

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अत्यंत शोकाकुल सरला जी, रीमा जी और सब घर आये। विमला जी की मृत्यु की खबर मिलते ही सरला जी के फोन आजकल कुछ ज्यादा ही घनघनाने लगे। विमला जी के बारे में दुख जताकर, संवेदना प्रकट की जाती। उनसे नजदीकी रिश्ता होने की दावेदारी जता, लोग-बाग उनसे संपर्क  करना चाहते थे।

” ये धन-संपत्ति भी ना…

अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती हैं।” सरला जी स्वार्थी  रिश्तेदारों के बारे में सोच रही थी। मुश्किल घडी में तो कोई  नहीं आया था, वे जानती थी। बस दोनों वहनें ही एक दुसरे के सुख-दुख की भागीदार थी। सोच-विचार कर

सरला जी ने खुद ही निर्णय  लिया। विमला जी शिक्षा के प्रति समर्पित थी। उन्होंने उनकी सारी जायदाद विभिन्न प्रशालाओं में बांट दी।

हवेलीनुमा घर में छोटासा वृध्दाश्रम और पालनाघर खोल दिया। सभी धन लालची रिश्तेदारों को सेवा के लिए  आव्हान किया।

चार दिन हो गये, कोई नहीं आया। उनके वफादार नौकर चमेली, राजू और लखन के सिवा।

 

स्वरचित मौलिक कहानी

चंचल जैन

मुंबई,  महाराष्ट्र

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