“वो  लड़का उसके घर क्यों आता है ?” – दीपा साहू “प्रकृति”

मैंने तो कभी नहीं सोचा कि उस लड़की ने उस लड़के का हाथ क्यों पकड़ा है? अरे वो एक आदमी उसके घर रोज क्यों आता है?वो तो अकेली है उसका न पति है न पिता न भाई ।पर आस-पास की औरते बस ऐसे ही निंदा रस में मग्न रहती है। क्यों ? 

कभी समझ ही नहीं आया।समझने की उम्र मेरी भी है पर मैंने इन बातों पर कभी विचार ही नहीं किया।किसी की निजी जिंदगी को अपनी निंदा रस के लिए उपयोग करके क्या मिलता है लोगो को?

 

औरतों में गजब हुनर होता है साहब,

ज़रा सी बात का पहाड़ बना लेती हैं।

और दूजो का घर आग में फूंक देती हैं।

सोचती ही नहीं इसका परिणाम क्या होगा?

……..रिहाना बस कुछ कदम की दूरी पर उसका घर है,जब से यहां रहने आई हूँ और उसे जितना जानती हूँ बड़ी ही प्यारी है वो पर अकेली है पति को छोड़ आई है।अकेली ही रहती है। बहुत पढ़ी लिखी तहज़ीब वाली हैं वो।कुछ दिनों से मेरा उससे मिलना जुलना ज्यादा ही बढ़ गया है।उसका साथ मुझे बेहद अच्छा लगता है।पर आस पास के लोग मेरा उससे ज्यादा मेल मिलाप देखकर बोली कि-“तुम उससे न मिला करो वो……………..तुम समझ रही हो न” ये कहकर रुक गयी।इस “वो”का मतलब मुझे समझ न आया।पर हावभाव से लगा कुछ ऐसी वैसी बात बोलने वाली हैं।”हाँ  किसी के हावभाव से उसके मन में किस तरह के विचार हैं समझ आ ही जाते हैं।”ख़ैर ऐसा कह वो चली गई।


……..कुछ दिनों से रिहाना के घर एक लड़का आता जाता रहता है।चूंकि मेरे घर से उसका घर स्पष्ट दिखाई देता है, वो आता है उससे हँस कर बातें करता है,कुछ कागजी फ़ाइल पर चर्चा से हावभाव दिखे और आँगन से ही लौट जाता है।मैनें उसे कभी दहलीज के अंदर जाते नहीं देखा।और हावभाव से भी कभी कुछ ऐसा नहीं लगा कि कुछ गलत हो,और क्या गलत,हम कौन होते हैं गलत और सही का फैसला करने वाले।

मैंने उन औरतों की निंदा रस में डूबी बातें सुनी।कहती है -इस रिहाना ने  यहां का माहौल खराब कर रखा है।हमारी भी बेटियाँ है।उन पर क्या असर पड़ेगा।जाने वो लड़का यहां आके क्या क्या करता होगा?उफ़्फ़फ़ छी-छी उनकी इस तरह की बातों से मेरा मन

उफ़्फ़फ़ तौबा!

मतलब बिना जाने बिना सोचे लोग अपनी ही  धारणा बना लेते हैं।और साथ में अपने अपने घर के आदमियों के मन मे भी यही बातें डाल देते हैं।एक अच्छा भला इंसान यूँ ही बदनाम हो जाता है।

“वाह गज़ब तेरी माया निंदा रस में कितना मज़ा आया।”

मैंने किसी की बात नहीं सुनी मैंने रिहाना से दोस्ती नहीं तोड़ी।मैं पहले जैसे ही आती जाती रही। और पड़ोसियों की बातें भी सुनती रही।दोनों की बातों में कोई तालमेल न था।

……..आज मैं रिहाना के घर बैठी ही थी,कि उस लड़के का आना हुआ,तो मैंने रिहाना से कहा-“ठीक है तुम बैठो मैं चलती हूँ”।रिहाना ने कहा-“अरे कहां जा रही हो बैठो न इनसे मिलो ये अनिरुद हैं मेरे आफिस में साथ काम करते हैं मेरे अच्छे दोस्त भी हैं।”सब साथ चाय पीते हैं।उसने ज़िद की मैं भी रुक गई।वो चाय बनाने रसोई में चली गई।तब तक अनिरुद से थोड़ा परिचय की शब्दावली में बातें होने लगी।अनिरुद ने पूछा आप रिहाना की सहेली हैं ?उत्तर -जी यहीं पास में रहती हूँ।अनिरुद ने कहा-अच्छा।मैंने पूछा- और आप कहां रहते हैं?उत्तर-“जी आफिस से मिले कमरे में ही गुजारा हो जाता है।परिवार कोई नहीं अनाथ हूँ।बस रिहाना से दोस्ती हैं और कुछ आफिस के दोस्त बस इतनी ही दुनियाँ।रिहाना के साथ दुख सुख बाँट लेता हूँ ।”एक प्रोजेक्ट वर्क पर हम दोनों काम कर रहे हैं बस उसी के पीछे दोनों जी तोड़ मेहनत पर लगे हैं”।मैनें कहा -“अच्छा”

इतने में रिहाना चाय लेकर आ गई।हम आँगन में ही बैठे थे।आस-पास की औरतो को जैसे कोई काम ही नहीं था बस सबकी नजर किसी न किसी  बहाने इधर ही टिकी रहती।कुछ देर बाद अनिरुद भी चले गए मैं भी घर आ गई।

…….अब मेरी पड़ोसन नीरू आई और शुरू हो गई-“इस रिहाना को तो लाज शर्म है ही नहीं हर दो चार दिन में वो लड़का आ धमकता है।और इनकी खी-खी शुरू हो जाती है।”हमारी बेटियाँ भी सब देखती हैं वो भी यही सब सीखेगी। मैं कुछ न बोली बस मन ही मन ……..उसकी बातों पर उफ़्फ़फ़ करती रही।कुछ देर में कुछ और औरते आई पूछने लगी तुम तो वहां गई थी न देखा उसे कौन है क्यों आता है पता चला?तौबा मैं आश्चर्य में थी।इतनी चिंता अगर ये अपने पति और बच्चों की करती तो यहां आकर इतना कहने का इनके पास समय ही न होता।खाली दिमाक बहुत अच्छी खिचड़ी पकाता है।कहने लगी-अरे इसको इतनी ही मस्ती चढ़ी है तो सबके सामने क्यो करती है अपने घर के अंदर करे सबको क्यों दिखाती है?बेशर्म ज़रा सी भी शर्म हया नहीं ।कोई कहे उससे शादी कर ले और रहे।फ़िर  किसने रोका है।मैं उनकी बातें सुनती रही।

मुझें इर्रिटेशन होने लगी ।आज तक उसने उसे छुआ तक नहीं उसके पास बैठा नहीं फिर भी ।फिर आखिरकार उनकी बातों ने मुझपर असर कर ही दिया।

मैं भी सोचने लगी लड़का अच्छा तो है क्यों 

न रिहाना उससे शादी कर ले क्या बुराई है इसमें? लोगो का मुह भी बंद हो जाएगा मैं रिहाना से बात करूँगी इस बारे में यही सोचते सोचते मेरी रात कट गई।

दुसरे दिन मैं रिहाना से मिली।क्या कर रही हो यारआज खाली खाली ?उसने कहा-“याद नहीं क्या आज रविवार हैं।”मैनें अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा-हां आज तो ।अच्छा चल कहीं घूमने चलते हैं।उसने खुश होकर कहा चल मैं और अनिरुद जा ही रहे हैं तुम भी साथ चलो।मुझे संकोच हुआ मैनें कहा- अरे तुम दोनों जा रहे हो तो मैं कैसे…….

वो मेरे भाव समझ गई बोली-पागल तुम चलोगी तो क्या हुआ ,अनिरुद मेरा कोई लवर नहीं सिर्फ दोस्त है,जैसे तुम मेरी दोस्त हो।जितना तुमको चाहती हूँ बस उतना ही उसको भी तुम भी इन मोहल्ले की औरतो  की तरह सोचने लगी।”नहीं यार ऐसी बात नहीं……….थोड़ा घबराकर मैनें कहा क्यों कि कहीं न कहीं उन्ही की तरह तो सोच ही रही थी।”बस मेरे भाव उसको सपोर्ट में थे अंतर इतना ही था।

उसने मुझें बिठाया और प्यार से समझाया- देख मेरी लाडो-

हम अकेले हैं तो किसी न किसी की मानसिक सहारे की हमें ज़रूरत होती है।हमें कोई न कोई चाहिये होता है बात करने के लिए। दर्द अपनी खुशी बॉटने के लिए। जैसे मैं तुमसे सबकुछ कह लेती हूँ तुमसे भी तो प्यार करती हूँ न ? तुम एक दिन न मिलो तो मुझे अच्छा नहीं लगता।मन तुमसे मिलने को तड़प उठता है।तुमसे सबकुछ बताना होता है।तुम नाराज़ हो जाओ तो मैं खाना पीना छोड़ देती हूँ।तुम जब तक मानती नहीं मैं सो नहीं पाती ये प्यार का एहसास का रिश्ता है कि नहीं तुम कहो?मैं स्तब्ध सी उसकी बातें सुन रही थी।कुछ नहीं बोल पाई।मैं सिर्फ बोली – “हां”

फिर उसने कहा-तो फिर इतने से ही भाव अगर किसी लड़के के साथ जुड़े हैं  तो क्या गुनाह किया मैनें ? क्या इतने भाव किसी लड़के से होने से उससे शादी करनी पड़ती है?क्या किसी लड़के से ऐसे भाव होने से वो दोस्ती नहीं रह जाती ? क्या तेरे  मेरे बीच इतने भाव नहीं है ।तू भी तो मेरे बगैर नहीं रह सकती न मैं तुम्हारे बगैर।जब हम लड़कियों के बीच इसे हम दोस्ती का रिश्ता कहते हैं तो लड़के और लड़की के बीच क्यों नहीं ? इसे आकर्षण या रखैल या इश्क मुहब्बत कहकर क्यों बदनाम कर दिया जाता है।यार प्यार हर रिश्तें का आधार है।

हाँ विपरीत लिंग के बीच आकर्षण होता है प्रकृति का नियम है।पर उसके भी कायदे हैं  यार हर किसी से वो रिश्ता वो आकर्षण नहीं हो जाता।हर आपके साथ आस पास रहने वाले लड़के से आकर्षण नहीं हो जाता ।

“दोस्ती भी कोई चीज़ होती है”पर लोगो को कौन समझाए ? जो दोस्त है उन दोनों के बीच तो कुछ नहीं होता पर लोग बोल बोल के ऐसे हालात गढ़ लेते हैं खुद ही सोच लेते हैं।कि कुछ है।यही नतीजा हैं कि लोग कुछ न होते हुए भी सबकुछ ऐसा प्रतीत होने लगता है। एक लड़के और लड़की के रिश्तें को सामान्य नज़र से देखा ही नहीं जाता।यही हमारी सोच में पैदा किया गया है।और कुछ न होकर भी सबकुछ दिखता है।

हां ये भी सच है कुछ लोग दोस्ती का सहारा अपनी गलतियों को छुपाने में लेते हैं।पर इसकी सजा सबको क्यों मिले। 

 

मैं मौन सुनती रही अवाक,सचमें कितनी घटिया सोच है ये लड़के और लड़की की दोस्ती के लिये हमारी।मैनें साँस भरी।कुछ न बोल पाई।उसने माफी माँगी-सॉरी यार मैं तुम्हारा मन खराब नहीं करना चाहती थी।चल जा तैयार होके आ अनिरुद आते होंगें।

आज कह रहे थे किसी से मिलाना चाहते हैं।

मैं भी जल्दी जल्दी तैयार हो गई।अनिरुद आए हम तीनों चले गए।आज अनिरुद बहुत खुश लग रहे थे।हम नदी के किनारें पहुँचे और इन्तज़ार करने लगे।अचानक रिहाना उदास सी हो गई,मैनें देखा वो अपने आँसू हमसे छिपाने की नामुमकिन कोशिश में थी।मैनें अनिरुद को कहा- “अनिरुद देखो रिहाना,इसे क्या हो गया”क्योंकि अनिरुद  उसे मुझसे कहीं ज्यादा पहले से जानता है।वो समझ गया।हम रिहाना के पास गए।दोनों ने पूछा क्या हुआ पर कुछ नहीं कहकर बात टालने लगी।अनिरुद समझ रहे थे।उसने कहा-“रिहाना क्या हुआ बताव यार प्लीज़।”

सुन इधर आ कहकर उसने उसे गले से लगा लिया।( बिल्कुल जैसे एक मां सहारा देती हो,ऐसे जैसे कोई सहेली एक सहेली को सहारा देती हो बहुत ही प्यारा मोमेंट था )बोल क्या हुआ।वो रो पड़ी जैसे बरसों के दुखों के बंद गठरी को खोल दिया गया हो।आज उसकी शादी की सालगिरह और ये जगह भी वही जहां वो अपने पति के साथ कभी वक़्त बीताया करती थी।बस उसके ज़ख्म हरे हो गए।उसने अपने सीने से लगाकर उसको चुप कराया।तभी सामने से एक लड़की आई ।और आकर अनिरुद के पास बैठ गई।अनिरुद ने कहा-चल चुप कर देख मैं किसी से मिलवाने वाला था न वो आ गई।रिहाना सहज हो गई।अनिरुद ने परिचय करवाया ये मेरी मंगेतर “सारिका”और सारिका ये “रिहाना” और “प्रकृति” रिहाना सारिका का रिश्ता जानकर अनिरुद से थोड़ा दूर हट गई।असहज हो गई सॉरी बोलने लगी।सारिका समझ गई उसने कहा-मैं अनिरुद को जानती हूं और आपके रिश्तें को भी फिक्र न करिए मैं कुछ भी नहीं सोचती।

…………..किसी भी रिश्ते को गलत कहने का  कोई औचित्य नहीं है।जब तक आपने अपने रिश्तें की मर्यादाएं रखी हैं।कभी वो गलत नहीं होता।और आपके इनके गले लग जाने से ये मर्यादायें नहीं टूटती।आपके  मन मे किसी के लिए कैसे विचार और आपके स्पर्श का तरीका बता देता है कि आपके रिश्तें क्या है।आपके विचार जैसे होते हैं आप किसी को उसी भाव से स्पर्श करते है।


और अनिरुद के भाव आपके लिए दिखते हैं।कि आप उनके बहुत ही अच्छे दोस्त हैं।

…..दोस्त लड़का हो या लड़की भाव एक ही होते हैं।वही ज़ज़्बात होते हैं।अपने दोस्त की चिंता उसका इन्तज़ार उसके नाराज़ होने पर परेशान होना ।उससे मुलाकात न होने पर मिलने का इंतज़ार करना।वो हमारे जीवन मे हमेशा हो  ये सोचना ये हर एक दोस्त में होता है।

हां लड़के और लड़की की दोस्ती।में जब इच्छाएं इससे ऊपर होने लगें तब आप कहें कि वो दोस्ती से ऊपर हो गए।पर हर आम दोस्ती को गलत नज़रिए से देखे कहां की अक्कलमंदि है।

किसी लड़के के गले लग जाने से हाँथ पकड़ लेने से,उसके भाव का रिश्ता बना लेने से वो प्रेमी युगल नहीं बन जाते।उन्हें भी पता है कि उनके बीच दोस्ती की एक मर्यादा है जिसे वो पार नहीं करते।अमूमन लोग अपनी सोच से ही उन मर्यादाओं का खंडन कर बैठते हैं जहां कुछ होता ही नहीं है।

हाँ मैनें कहा वो शायद बहुत कम होता हो पर ये भी दुनियाँ का जीता जागता एक सच हैं।जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।दुनियाँ में दोस्ती की भी अपनी जगह है।जिसका लोग गलत इस्तेमाल न करे तो सबसे खूबसूरत रिश्ता जिसे दो अजनबियों के बीच अपनेपन का रिश्ता बन जाता है।

……….अनिरुद ने सारिका से शादी कर ली और फिर सारिका को लेकर वो रिहाना के घर आया और आज पहली बार उसने आँगन से घर की दहलीज पार की।वो जानता था लोग बातें बनांते हैं इसलिए आजतक वो कभी अकेले उसके साथ घर में नहीं गया।आज उसने सारिका की मुदिखाई की रस्म अपने घर में रखी और उन सभी लोगो को बुलाया जो हमेशा उसे ताने मारते रहे।लोग आए।फिर बातें करने लगे।अरे रिहाना ये तेरा भाई है क्या?

……….सारिका ने कहा- आंटी जी कोई ज़रूरी नहीं न हर रिश्तें का नाम  बाप,भाई ,चाचा ,मामा ,ही हो दोस्त हैं आंटी

इंसानियत का ज़ज़्बात का रिश्ता है।बस।

 

कुछ रिश्तों के नाम ज़रूरी तो नहीं

इंसानियत और जज़्बातों ने बांध रखा।

कुछ अजनबी अपने से होकर,

दुख उदासी की घड़ी में एकदुजे को थाम रखा।

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