वो तुम्हारी बहू है कोई ग़ैर नहीं… रश्मि प्रकाश : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “ क्या बात है बेटा आज फिर तुम सुबह सुबह रसोई में…. बहू की फिर से तबियत ख़राब हो गई क्या?” मनोरमा जी व्यंग्य कसते हुएनिकुंज से पूछी 

“ हाँ माँ उसके पेट में बहुत दर्द हो रहा है…. कह रही उठते ही चक्कर सा आ रहा…. तो मैं ही बोला आराम करो… मैं चाय और नाश्ता देखलूँगा ।” निकुंज चाय छानते हुए बोला

 एक कप चाय माँ को देकर टोस्ट और चाय ले राशि को देने चला गया … जाते जाते बोला चलो माँ बालकनी में बैठ कर पिएँगे मैं बसराशि को चाय देकर आया।

मनोरमा जी बालकनी में जाकर बैठ गई जैसे ही निकुंज आया वो बोलने लगी,“ बेटा ढाई महीने होने को आए मुझे हर महीने बहू कीतबीयत बिगड़ जाती…. ऐसा क्या है हम भी तो औरतें है हमने तो कभी आराम ना किया….

तु ज़्यादा ही सिर चढ़ा कर रखा है…..ऐसे भीमहारानी जी काम ही कितना करती है…. बाई आकर सब कर जाती एक खाना बनाना होता उसमें भी उसे महीने में एक दो दिन आराम हीचाहिए ।”

माँ कीं कड़वाहट भरी बात सुन निकुंज का जी किया माँ को कुछ कह दे पर जानता था माँ हमेशा यहाँ रहने वाली तो है नहीं…. फिरबेकार कह कर मन खट्टा क्यों करना…. वो बस सुन चुप रह गया।

नाश्ता बना वो राशि को दर्द की दवा दे ऑफिस निकल गया…. इस उम्मीद में की शायद माँ राशि का ध्यान रख लेंगी 

निकुंज के जाते मनोरमा जी राशि के कमरे में गई और बोली,“ बहू तुम्हारे ब्याह को सात महीने ही हुए है …. मुझे आए ढाई महीने हो गए… क्या हर महीने ऐसे ही आराम के लिए चाहिए होते तुमको….तुम तो घर में ही रहती हो… फिर भी तुमको आराम की ज़रूरत पड़ती और मेरा बेटा बेचारा काम भी करता और तुम्हारी ख़ातिरदारी भी।”

राशि पेट पर घुटने टिकाए दर्द को सहन करने की कोशिश कर रही थी…. वो थोड़ी ना चाहती है उसे इस तरीक़े का आराम करने कोमिले…जब से उसे पीरियड शुरू हुए दो दिन उसकी जान साँसत में रहती दर्द बर्दाश्त करना ही होता दवाइयाँ भी कोई कितनी खाएगा……

अब सबका शरीर एक जैसा तो होता नहीं…. उसकी माँ और छोटी बहन को कभी कोई दर्द नही होता पर राशि को असहनीय होता था….

मनोरमा जी की बात सुन राशि कर राशि का दिल किया अभी के अभी मायके भाग जाए…. माँ होती तो गर्म पानी का थैला रखने बोलती पास बैठ कर पेट सहलाती प्यार से समझाती… पर यहाँ तो सासु माँ के ताने मिल रहे थे ।



मनोरमा जी सुना कर चल दी खैर अगले दिन से राशि ने अपने काम शुरू कर दिए…

कुछ दिनों बाद दशहरे की छुट्टी में बच्चों के साथ राशि की ननद निशिता आने वाली थी…. बेटी और नाती नातिन के लिए मनोरमा जी राशि से कह कह कर पकवान बनवा रही थी…. राशि पूरी तन्मयता से काम कर रही थी…. पहली बार ननद और बच्चे राशि के यहाँ आरहे थे तो वो भी कोई कमी नहीं रखना चाहती थी ।

अभी निशिता को आए चार दिन भी नहीं हुआ उसे महीने शुरू हो गए…. मनोरमा जी बेटी को बोली,“ तू आराम कर करना ही क्या हैयहाँ…. राशि है ना सब कर लेंगी….।”

शाम को जब निकुंज ऑफिस से आया तो निशिता को बाहर हॉल में ना देख माँ से पूछ बैठा “किधर है?”

“ अरे वो आराम कर रही है….ऐसे में वो चिड़चिड़ी हो जाती तो कमरे में ही है …. बच्चे राशि के पास है।” मनोरमा जी बोली 

निकुंज बहन को देखने चला गया तो देख रहा वो मस्ती से टीवी देख रही और पॉपकॉर्न खा रही है….

बिना कुछ कहे वो अपने कमरे में गया…. देखता है दोनों बच्चे पूरे कमरे का सामान इधर से उधर कर रहे हैं… किताबें,कुशन सब नीचे पड़ेहैं…राशि सिर पकड़ कर एक तरफ़ बैठी है ।

“ क्या हुआ राशि ऐसे क्यों बैठी हो….?” निकुंज घबरा कर पूछा 

“ कुछ नहीं निकुंज ये सामान बिखरे पड़े थे समेटने जा रही थी की एक किताब जोर से सिर पर लगी और नीचे किसी चीज़ में पैर लगाउधर भी दर्द इधर भी दर्द और कमरे की हालत… इन्हें कुछ बोल नहीं सकती माँ डाँटेंगी…. तो बस इनकी शैतानी ख़त्म होने का इंतज़ारकर रही हूँ ।” राशि एक हाथ से सिर सहलाती दूसरे से पैर 

“ चलो बच्चों ये सब सामान उठा कर रखो… देखो मामी को चोट लग गई ।” निकुंज ने दोनों बच्चों से कहा 



आवाज़ सुन कर मनोरमा जी और निशिता कमरे में आ गए..

“ क्या हुआ निकुंज क्यों बच्चों से ऐसे बोल रहा..।” मनोरमा जी दोनों बच्चों को पकड़ कर अपने पास करती हुई बोली 

“ माँ ये देखो कमरे की हालत…. उपर से ये मोटी किताब राशि के सिर पर लगी और पैर भी जाने किस चीज़ में टकरा कर चोट लग गयाइसलिए मना कर रहा।” निकुंज ने कहा 

“ अच्छा तो अब ये तेरे कान भर रही ….. वाह बेटा शिकायत भी कर रहा तो उन बच्चों की जिन पर तू जान छिड़कता था… आज ये आगई तो तुम इन्हें ही खेलने से मना कर रहे… ।” मनोरमा जी के साथ साथ निशिता भी शुरू हो गई 

“ दी प्लीज़ तुम तो माँ के साथ मिल कर आग में घी डालने का काम मत करो….तुम ही हो ना जो हमेशा कहती थी जब तेरी शादी होजाएगी तो तेरी बीबी को बहन जैसे रखूँगी…. जैसे तुम्हें दुलारकरती बिलकुल वैसे पर अब सब बदल गया ना दीदी…… सच ही कहते हैंलोग बहू को अपनाना सब के बस की बात नहीं…. माँ राशि कभी कोई शिकायत नहीं करती है…. जब तब तुम ही करती रहती हो …..मैंघर में रहूँ ना रहूँ ऐसा तो नहीं है कि मुझे कुछ पता नहीं चलता है… दीदी को आराम करना ज़रूरी है पर राशि को पेट में दर्द भी हो तो उसेआराम नहीं करना चाहिए वो बहू है ना…. वो आराम कैसे कर सकती है…… माँ वो तुम्हारी बहू है मेरी पत्नी है निशिता दीदी की भाभीहै…. कोई ग़ैर नहीं है…ये बात जितनी जल्दी समझ जाओगी…. मुझे भी इस घर में चैन मिलेगा नहीं तो मैं माँ. बहन और पत्नी की चक्कीमें पीसता रहूँगा …..हर बार उसका यूँ तिरस्कार करना कहाँ तक सही है…. ?”निकुंज को आज माँ से ज़्यादा दीदी का कहना बुरा लगाजो खुद बहू है फिर भी इस तरह की शिकायतें वो कितनी बार माँ से कर चुकी है और हमेशा कहती थी इस घर की बहू को ये सब मतसहने देना माँ और वही माँ बहू को हमेशा ग़ैर ही समझ रही है ।



मनोरमा जी निकुंज की बात सुन थोड़ी देर को चुप हो गई…. निकुंज ने जो कहा निशिता को समझ आ रहा था…. वो राशि के पास गईतो देखती है उसकी एक उँगली सूज गई है और मोटी किताब के गत्ते से सिर पर भी उभार आ गया है… वो धीरे से पकड़ कर राशि कोउठाकर बिस्तर पर बिठाई और सामान समेटने लगी….. निकुंज कमरे से जा बाहर बैठ गया था ।

“ राशि सच में हम औरतें भी ना…. एक जैसी तकलीफ़ को भी समझ कर कैसे नज़रअंदाज़ कर देते है…. माँ बताती है तुम्हें महीना होनेपर दर्द होता है उनको नाटक लगता है पर तुम्हें तो सच में दर्द होता है….. अब से माँ तुम्हें कुछ नहीं कहेंगी…. शिकायत जो होगी वो तुमसेसीधे पूछ लेंगी ।” निशिता को एहसास हो रहा था ससुराल में जब सब शिकायत करें तो कैसा लगता है 

मनोरमा जी कुछ ना बोली और कमरे से निकल गई ।

पर कुछ बदल गया था….. अब राशि को दर्द होता तो बिना शिकायत बेटे को हटा खुद थोड़ा काम कर लेती…. बहू से जाकर हाल पूछलेती…. अब रिश्ते सुधर रहे थे…..जब गलती का एहसास हो जाए तो सुधार तो होता ही है।

दोस्तों कभी-कभी ससुराल में पति भी माँ बहन कीं बातों में हाँ में हाँ मिलाने लगता है… पत्नी बेचारी बन जाती है…. पर कुछ लोगबिना शिकायत किए भी समस्या को सुलझा लेते हैं…. जैसे निकुंज ने कभी मनोरमा जी की बात राशि से नहीं कही…. तो राशि के मनमें ये आया भी नहीं सास शिकायत करती होगी….इसलिए वो भी कभी पति से सास की कोई बात नहीं की….. ज़रूरत पड़ने पर चुपरहना सही नहीं है पर आते ही शिकायतों की पोटली खोल कर रिश्ते बिगाड़ने से अच्छा है कुछ वक़्त देकर देखना…. आपके इस बारेमें क्या विचार हैं ज़रूर बताएँ ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# तिरस्कार 

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