वचन (भाग -2)- माता प्रसाद दुबे

हम तुम्हारा दिल दुखाना नहीं चाहते..गीता अच्छी लड़की है..लेकिन हम उसे अपनी बहू नहीं बना सकते..यह हमारा अंतिम फैसला है?”बृजभान सिंह रवि को हिदायत देते हुए बोले।”ठीक है पापा! फिर मैं भी अपने वचन का पालन करूंगा आखिर मेरे जिस्म में आपका ही खून है..

मैं अपने वचन से कैसे मुकर सकता हूं..मैं कल ही वापस चला जाऊंगा और गीता से शादी करूंगा?”रवि ब्रजभान सिंह के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोला। “यह तू क्या कह रहा है बेटा!”जानकी देवी उदास होते हुए बोली।

“ठीक कह रहा हूं मम्मी!”आखिर मैं अपने वचन को कैसे झुठला सकता हूं..गीता की मां को मैं आपकी तरह समझता था..एक मां को दिया हुआ वचन में कैसे तोड़ सकता हूं?”रवि जानकी देवी से लिपटते हुए बोला।




गीता खामोश चुपचाप सारा तमाशा देख रही थी..वह खुद को कोस रही थी..कि उसके कारण आज रवि अपने पापा से उसके लिए तकरार कर रहा था..वह करती भी तो क्या उसकी आंखों से आंसू टपकने लगें।”गीता तुम परेशान मत हो..

मैं हूं तुम्हारे साथ और जीवन भर साथ रहूंगा..चलो हम लोग वापस शहर चलते हैं?”रवि गीता को चलने का इशारा करते हुए बोला। कुछ ही देर में रवि गीता को साथ लेकर शहर की ओर रवाना हो गया

जानकी देवी ने बुझे हुए मन से उन दोनों को आशीर्वाद देकर विदा किया प्रभा और उसका पति रिंकु सिंह रवि को जातें वक्त देखने तक के लिए बाहर नहीं आए।

दो साल बीत चुके थे..रवि और गीता को एक हुए,वह अब दो नहीं थे तीन हों चुके थे..एक नन्ही सी गुड़िया उन दोनों के साथ खेलने के लिए मौजूद थी। रवि के मोबाइल पर किसी की काल आ रही थी।”गीता देखो किसका फोन है?

“रवि गीता की ओर देखते हुए बोला।”हैलो कौन? दूसरी तरफ से जानकी देवी की आवाज आई।”मम्मी! प्रणाम कैसी है आप?”गीता सम्मान पूर्वक बोली। कुछ देर बात करने के बाद गीता घबरा गई और फोन रखते हुए बोली।

“चलिए हमें आज ही गांव चलना है?”गीता घबराए लहज़े में रवि से बोली।”गीता घबरा क्यूं रही हों क्या हुआ?”मम्मी पापा ठीक है ना?”हा ठीक है बस हमें गांव चलना है बस?”कहकर गीता खामोश हो गई। तुम तो जानती हों पापा नाराज हैं..जब वह बुलाएंगे तभी मैं जाऊंगा?

“रवि उदास होते हुए बोला। गीता ने बिना रुके जानकी देवी से हुई बातें रवि को बताई जिसे सुनकर रवि के होश उड़ गए।वह अपने आफिस में सूचना देकर बिना देर किए गीता और अपनी नन्ही गुड़िया को लेकर गांव की ओर निकल पड़ा।

जानकी देवी गीता और रवि से लिपटकर फूट-फूट कर रो रही थी।”मम्मी!आप चिंता मत करो पापा ठीक हो जाएंगे हम है ना आपके साथ?”रवि और गीता एक साथ जानकी देवी से बोलें। नन्ही गुड़िया को जानकी देवी की गोद में देते हुए गीता जानकी देवी का दुख कम करने की कोशिश कर रही थी।

रवि के घर से अलग होते ही ब्रजभान सिंह को उसके दामाद रिंकु सिंह ने प्रभा के साथ मिलकर अपना असली रूप दिखा दिया था। पहले उन्हें गीता रवि के खिलाफ भड़काया उन्हें अलग करने का ताना-बाना खींचा फिर ब्रजभान सिंह की करोड़ों की जमीनों को धोखाधड़ी करके अपने नाम करवा लिया था।

ब्रजभान सिंह अपनी बेटी और दामाद की धोखाधड़ी को बर्दाश्त नहीं कर सके और अपने बेटे के साथ अन्याय करने के गम से उन्हें अटैक आ गया था।वे अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे।




रवि बिना देर किए अस्पताल की तरफ़ चल पड़ा वहा डाक्टरों से बात करने के उपरांत वह गीता को मां की देखभाल करने के लिए गांव में छोड़कर ब्रजभान सिंह को शहर के सबसे अच्छे हास्पिटल में रिफर कराकर दिन रात एक करके अपने पिता ब्रजभान सिंह को मौत के शिकंजे से बचाने में कामयाब हो गया।  एक हफ्ता बीत चुका था।जानकी देवी गीता के साथ हास्पिटल में पहुंच चुकी थी।

ब्रजभान सिंह की हालत पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी। वह बैठे हुए थे। जानकी देवी उनके पास आते ही रोने लगी।”अरे रोती क्यूं हो अभी मैं जिंदा हूं?”ब्रजभान सिंह मुस्कुराते हुए बोलें।”यह लीजिए पापा!आपकी नन्ही पोती?

“गीता नन्ही गुड़िया को ब्रजभान सिंह की गोद में रखती हुई बोली। ब्रजभान सिंह नन्ही गुड़िया को देखकर भाव विभोर हो गये उसे दुलारते हुए उनकी आंखों से आंसू टपकने लगें।”गीता बेटी! मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया..क्या करता बेटी!

नहीं??बहू बेटी ने तो दामाद के साथ मिलकर मुझसे मेरा बेटा बहू सम्पत्ति नन्ही गुड़िया सब कुछ छीनकर मुझे मौत के मुंह में ढकेल दिया मेरी मति भ्रष्ट कर दिया सिर्फ अपने मतलब और लालच के लिए..आज वही बेटा बहू मेरे लिए तड़प रहें हैं जिन्हें मैंने गले लगाने के बजाय दुत्कार दिया था?”

कहकर ब्रजभान सिंह फूट-फूट कर रोने लगे।”पापा!आप ये क्या कर रहे हैं..हम आपसे कभी अलग थे ही नहीं..आप रोइए नहीं अभी आप पूरी तरह ठीक नहीं है?”रवि ब्रजभान सिंह को समझाते हुए बोला।”लोग बहू को ही गलत समझते हैं,

मगर आज इस कलयुग में बेटी भी दामाद के साथ मिलकर धन दौलत सम्पत्ति के लिए अपने मां बाप से धोखा कर सकती हैं यह हमें नहीं भूलना चाहिए?”जानकी देवी गहरी सांस लेते हुए बोली।”ठीक कहती हो जानकी लेकिन मैं उनकी इस धोखाधड़ी के लिए उन्हें माफ नहीं करूंगा और वही करूंगा जो एक धोखेबाज के लिए करना चाहिए?

“ब्रजभान सिंह गंभीर होते हुए बोलें। चलिए पापा घर चलिए आप अब ठीक है?”रवि मुस्कुराते हुए बोला।”नहीं मैं अभी गांव नहीं जाऊंगा मैं कुछ दिन रहूंगा अपनी बहू और गुड़िया के साथ?”ब्रजभान सिंह नन्ही गुड़िया को पुचकारते हुए बोलें।

“नहीं पापा!अब हम भी यहां नहीं रहेंगे हम सब लोग गांव चलेंगे और वही रहेंगे?”गीता खुश होते हुए बोली।”हा पापा मैं रोज गांव से ही आफिस आऊंगा जाऊंगा?”रवि सामान उठाते हुए बोला। जानकी देवी खुशी से फूली नहीं समा रही थी गीता जैसी समझदार सुशील बहू पाकर ब्रजभान सिंह नन्ही गुड़िया के साथ खेल रहें थे..

आज उन्हें अपने बेटे रवि पर गर्व महसूस हो रहा था जिसने अपने वचन का पालन किया और गीता जैसी बहू को उनके बुढ़ापे की लाठी बनाकर उनके जीवन में आने वाले कष्टों का निवारण कर दिया था।

वचन (भाग -1)- माता प्रसाद दुबे

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित

अप्रकाशित कहानी

लखनऊ

 

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