“नमस्ते आंटी जी,कैसी हो?”रसोई की खिड़की के पास खड़ी होकर छुटकी चहक रही थी।बेटी ने पूछा कि नाम क्या है मम्मी इसका,पर शिवानी को खुद ही नहीं पता था छुटकी का नाम।दो साल पहले अपनी मां का हांथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए मिली थी छुटकी।मां के पैर में पोलियो था,जिस कारण चलने में तकलीफ़ हो रही थी उन्हें।
शिवानी से स्वयं ही पूछा था उसने”दीदी,राजोरिया मैडम का घर कौन सा है?”शिवानी ने ऑफिसर कॉलोनी की तरफ इशारा करके दिखाया तो उसने बताया”आज से ही काम पर लगी हूं,उनकी पुरानी बाई ने भेजा है।”मां के पीछे से टुकुर-टुकुर निहारती हुई छुटकी की कोमल मुस्कान से आकर्षित होकर शिवानी ने पूछा था”स्कूल जाती हो तुम?
“उसने बड़ी मासूमियत से ना में सिर हिलाया।अगले दिन फिर रास्ते में ही मुलाकात हुई।इस बार उसकी मां ने ,शिवानी के शिक्षक होने का अहसास करवाते हुए शिकायती लहजे में कहा”देखिए ,मैडम जी,ये स्कूल नहीं जाती है।सारा दिन बस खेलती रहती है।”झूठा गुस्सा दिखाते हुए शिवानी ने छुटकी को समझाया”मां की बात सुना करो।
पढ़ाई करके ही तुम बड़ी मेमसाब बनोगी।”एक छोटा सा बिस्कुट का पैकेट लेकर वह बड़ी खुश हुई। बीच-बीच में मुलाकात होती तो तपाक से “नमस्ते मैडम जी”कहती।
कुछ दिनों बाद छुटकी ने बताया कि स्कूल जाने लगी है वह अब।इस बातचीत को सुनकर पड़ोसन गीता जी ने टोका”इनके मुंह मत लगा कीजिए आप।ये औरतें अपने बच्चों को पट्टी पढ़ा कर रखती हैं,ऐंठने के लिए।जब भी अपना पन दिखाओ,अपना मतलब निकालने लगती हैं।”
शिवानी को अपने विश्वास पर बड़ा विश्वास था।छोटी सी बच्ची को क्या पट्टी पढ़ाएगा कोई।प्रेम के भूखे होतें हैं बच्चे,थोड़ा सा प्यार पाकर सहजता से अपना बन जातें हैं और बना लेतें हैं।
आज सुबह-सुबह रसोई की खिड़की से जब आवाज दी उसने,गीता जी की बात याद आई,पर झटक दिया।वो तो शिवानी को देखकर नमस्ते कहने और अपना रिजल्ट बताने आई थी”मैडम जी,मैं पास हो गई पहली।अब दूसरी में जाऊंगी।आपने जन्मदिन के लिए जो सलवार कमीज़ दिया था ना,पहना था मैंने।जन्मदिन के दिन आप दिखी ही नहीं,मैं आई थी बुलाने।अगले जन्मदिन पर आइयेगा जरूर।”
शिवानी की छुटकी की बातें सुनकर बेटा और बेटी भी खिड़की से सुनने लगे।शिवानी ने पूछा”धूप में कहां घूम रही हो तुम?घर पर क्यों नहीं रहती?”बड़े भोलेपन और आत्मविश्वास से भरा था उसका जवाब”मैडम जी,वो मकान मालकिन है ना,अम्मा के काम पर जाते ही ,मुझसे काम करवाने लगती है।पानी भरना, झाड़ू-पोछा करवाना ,बच्ची को नहलाना।
मैंने सा़फ -साफ कह दिया है कि मुझे बाई नहीं, मेमसाब बनना है। चिल्लाने लगी मालकिन,तो मैं अम्मा के पास जा रहीं हूं।काम तो नहीं करूंगी उनका।”एक चिप्स का पैकेट ही मिला उसे देने के लिए,देकर पलटी तो दोनों बच्चे मुस्कुराते हुए देख रहे थे।बेटी बोली”वाह मम्मी!आपकी छुटकी तो आपकी शिष्या बन गई है पूरी।समझदार हो गई है।
“शिवानी ने हंसकर कहा”ये मासूम बचपन किसी के पट्टी पढ़ाने से बाध्य नहीं होता, सिर्फ प्यार से होता है।गीता जी हमेशा की तरह झांक रही थीं,और शिवानी की कही बात भी सुन ली थी उन्होंने।
शुभ्रा बैनर्जी
पट्टी पढ़ाना