विश्वास के बदले विश्वासघात – पूजा मनोज अग्रवाल

लंबे इंतज़ार के बाद आज ईशा की सगाई का दिन आ गया , ईशा ने  रोहित से शादी करने के लिए पापा मम्मी से जाने कितनी मान मनुहार की थी , तब कहीं जा कर मुश्किलों से मां पापा उसकी शादी रोहित से करने के लिए तैयार हुए थे । ऐसा क्या था जो ईशा के माता-पिता उसकी शादी रोहित से करना नहीं चाहते थे ।

 

दरअसल ईशा बहुत संपन्न परिवार से थी उसके पिता का दिल्ली के चांदनी चौक में साड़ियों का बड़ा व्यवसाय था । परंतु इसके विपरीत रोहित एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का था , जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में साधारण सी नौकरी करता था । । उसके पिताजी भी कुछ खास कमाते धमाते ना थे तो घर – परिवार चलाने की जिम्मेदारी रोहित पर ही थी । ईशा के माता-पिता ने रोहित के बारे में उसके ऑफिस में जांच – पड़ताल करवाई तो वे रोहित की चरित्र और ईमानदारी से संतुष्ट ना हो सके थे । 

 

ईशा के पिता जी उसकी शादी रोहित से नहीं करना चाहते थे । वह जानते थे कि ईशा बहुत रईसी में पली – बड़ी है , उसने कभी अभाव की जिंदगी नहीं देखी है । मां का मानना यह था कि प्रेम – प्यार तो कुछ ही दिनों की बात है ,परंतु जैसे ही घर परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ नवदम्पत्ति के कंधों पर पड़ता है तो वे ऐसे बेमेल परिवार में सामंजस्य बिठाने में नाकामयाब रहते हैं । और दूसरा वह अपनी बेटी के बारे में भी जानती थी कि वह बहुत संपन्नता में पली-बढ़ी है उसे एक मध्यमवर्गीय परिवार में तालमेल बिठाने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ेगा । उन्होंने ईशा को रोहित से शादी ना करने के लिए बहुत समझाया बुझाया, परंतु ईशा  तो कुछ भी समझने को तैयार ना थी , उसने ठान लिया था अगर वह शादी करेगी तो रोहित से , नहीं तो वह आजीवन कुंवारी रह जाएगी । 

 

माता-पिता जब अपने फैसले पर अडिग रहे तो ईशा ने अपने हाथ की नस काट ली वह जानती थी कि पापा उसे खोने के डर से विचलित हो जाएंगे और शायद वह तब  रोहित से उसकी शादी कराने के लिए राजी हो जाएं । ईशा की इस बचकानी हरकत की वजह से मां पिता का दिल टूट गया और उसकी बेतुकी जिद के आगे उन दोनों ने हार मान ली  ।

 

शायद होनी को यही मंजूर था । बच्चों की खुशियों की खातिर मां पिता जी ने उनकी शादी की तैयारियां शुरू कर दी । ईशा गहने – जेवर और महंगे कपड़ो की बहुत शौकीन थी सो उसने अपनी शादी के लिए अपनी पसंद की हर प्रकार ज्वेलरी और महंगे – महंगे कपड़ों की खरीदारी की  । 

 



कुछ ही दिनों में ईशा का रोहित से विवाह संपन्न हो गया । शादी में ईशा के मां पिता जी ने उसकी मनपसंद की हर छोटी से बड़ी वस्तु दी थी । उधर ईशा के ससुराल में शुरू- शुरू में सब कुछ सामान्य रहा । उसे अपने मायके में ऐशो- आराम में बिताए सभी पल याद आने लगे ।  वह अपना पिछला समय याद कर बहुत दुखी होती परंतु अब पछताने से कुछ नही हों सकता था । धीरे-धीरे रोहित और मांजी का व्यवहार भी उसे बदला सा प्रतीत होने लगा था ।  

 

मायके में जिस ईशा के आगे- पीछे नौकर घूमा करते थे  , बिस्तर पर बेड टी मिला करती  थी । आज उसी ईशा को ससुराल में  नौकर – चाकर की कोई सुविधा उपलब्ध ना थी । वहां उसे सुबह 6:00 बजे उठकर घर गृहस्थी के कामों में लगना पड़ता था । पूरा दिन घर संभालने में  चकरघिन्नी सी लगी रहती ,  कब सुबह से शाम हो जाती उसे पता ही ना लगता ।

 

 अपने हालात वह किसी को कह भी नही सकती थी , आखिर यह फैसला भी तो उसी ने खुद लिया था । इसी प्रकार मन मसोस कर जीवन जीते हुए उसकी शादी को एक साल बीत गया । 

 

अगले माह उसके चाचा जी के बेटे की शुभम शादी थी , चाची जी ने ईशा को अपने बेटे के शादी के पंद्रह दिन पहले ही मायके आने का न्योता दे दिया था । नियत तिथि पर चाची ने ईशा को शुभम के हाथों लिवाने भेज दिया । ईशा ने खुशी – खुशी अपने मायके जाने की पूरी तैयारी कर ली और अपनी सासू मां से अपनी साड़ी लहंगों की मैचिंग ज्वेलरी के लिए कुछ हार और कंगन अलमारी में से निकालने के लिए कहा । 

 

जेवर देने की बात सुनकर सासु मां सकपका कर  बोली ,” बेटा तुम एक काम करो तुम अभी ऐसे ही चली जाओ मुझे अभी अलमारी की चाबी नहीं मिल रही है , जैसे ही अलमारी की चाबी मिलेगी मैं तुम्हारी सारी मैचिंग ज्वेलरी खुद बाखुद तुम्हारे पास पहुंचा दूंगी । ” 



 

जाने क्यों मांजी की बात सुन आज ईशा का मन किसी अनजानी आशंका से घिर गया परंतु इस शादी के लिए उसने जबरदस्ती मां पापा को मनाया था , तो उनसे अपना दुख साझा करने के हिम्मत वह नहीं जुटा पाती थी । किसी से कुछ बोले बिना चुपचाप अपने भाई के साथ अपने चाचा – चाची के यहां पहुंच गई ।

 

दो दिन तक ईशा अपनी ज्वेलरी का इंतजार करती रही , पर ना तो सासु मां का कोई फोन आया और ना ही कोई ससुराल  से कोई उसे ज्वेलरी देने के लिए आया । भाई की सगाई का दिन आ गया और ईशा ने परेशान होकर रोहित को फोन मिलाया,” सुनो , आज भाई की सगाई है  , तुम शाम को आते हुए  मेरा पोलकी का रानी हार अपने साथ लेते हुऐ आना । “

 

ईशा की बात पर रोहित ने हामी भर ली और फोन रख दिया । शाम के समय ईशा तैयार होकर रोहित का इंतजार करने लगी । रोहित सगाई में भी देर से पहुंचा और ज्वेलरी के बारे में पूछने पर उसने ईशा से कहा ,” अरे क्यों परेशान होती हो मां का तो तुम्हें पता ही है ना , वह कितनी भुलक्कड़ है,,, जाने कहां अलमारी की चाबी रख कर भूल गई है , तुम अभी चाची जी से लेकर कोई भी हार पहन लो जैसे ही अलमारी की चाबी मिलेगी,  मैं तुरंत तुम्हें फोन कर सूचना दे  दूंगा । 

 

ईशा ने रोहित की आंखों में छिपा हुआ चोर और लालच स्पष्ट ही देख लिया था , वह समझ चुकी थी कि निश्चय ही उसके ससुराल वालों ने उसके साथ कुछ धोखा किया है । बुझे हुए मन से सगाई का कार्यक्रम निपटा कर वह रोहित के साथ घर वापस लौट आई ।

 

घर वापस आकर उसने चाबी ढूंढने के लिए दिन- रात एक कर दिया परंतु चाबी ना मिली । अब उसने ताला खोलने वाले को बुलाकर अलमारी की नई चाबी बनवाई ,,, जैसे ही उसने अलमारी खोली  उसमे अपना  एक भी हार न पाकर वह भौचक्की रह गई , उसकी सारी ज्वेलरी वहां से नदारद थी , पापा ने गिफ्ट में उसे एक फ्लैट दिया था उसके कागज़ भी वहां न थे। वह फटी आंखों से अपनी सास की और देखने लगी,,,,सासु मां पर इसका कोई असर न हुआ  ।

 



 उसने रुआंसी होकर  पूछा ,” मांजी मेरी ज्वेलरी और बाकी समान कहां है,,,? यह सुन कर  सासु मां के चेहरे की भाव भंगिमा अनायास ही बदल गईं ।  वह गुस्से से तमतमा कर कर्कश आवाज में बोली , ” तुम्हारी ज्वेलरी तुम्हारा फ्लैट ,,,?  वो तो तुम्हारे पिता ने शादी में दिया था ना  ,,, उस पर तो हमारा हक था , हमें पैसे की जरूरत थी , तो वो सब तो हमने बेच दिया । तुम्हारे ससुर जी को बैंक का लोन चुकाना था,,, और फिर जेवर प्रॉपर्टी बिकने का क्या दुख मनाना ,,,यह सब संपत्ति तो बुरे वक्त में काम आने के लिए ही होती है ,,,,और हां अभी तुम्हारे पिता जी को एक आवाज लगाना वो सब तुम्हारे लिए दोबारा बनवा देंगे ” ।

 

यह सुनकर ईशा के पैरों तले जमीन सरक गई और वह बोली ,” मांजी अगर आपको पैसों की इतनी जरूरत थी , तो आप मुझे भी तो यह बात बता सकती थी , मैने आप पर भरोसा कर के आपको अपना स्त्री धन सौंप दिया था और आप ने तो मेरे साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया ।” 

 

उसे अपने मां पापा की कही सब बातें याद आने लगी । आज उसे एहसास हो रहा था कि वे हमेशा सही कहा करते थे । ईशा के ससुराल वालों ने उसका भरोसा तार – तार कर दिया था । उसने रोहित को भी ऑफिस में फोन कर घर वापस बुलाया ।

 

कुछ ही देर में  रोहित घर लौट आया ईशा ने उसे सारी बात विस्तार पूर्वक कह सुनाई ।  परंतु यह सब सुनकर रोहित को कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह खुद अपने मां और पिता के साथ मिला हुआ था । यह विश्वासघात अकेले उसके सास ससुर ने नही बल्कि तीनों ने मिलकर ईशा के साथ किया था । वह रोते रोते सोच रही थी की शायद अपने मां पिताजी की बात सुनी होती तो आज यह दिन न देखना पड़ता ।

 वह रोहित पर भरोसा करके बहुत पछता रही थी ।  गलत व्यक्ति पर किया भरोसा उसे पल – पल टीस दे रहा था ।  सारा स्त्री धन लुट जाने के दुख के साथ उसे अपना भरोसा टूट जाने का भी दुख हो रहा था । गहना – जेवर प्रॉपर्टी तो वह दोबारा पा लेगी पर अपना टूटा हुआ भरोसा ,,,उसका वह क्या करेगी ,,, ।

#भरोसा 

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!