उसकी क्या गलती है..!! : लतिका श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi

गली के मोड पर कैब से उसे उतरते देख मै अपलक देखता रह गया था फिर उल्टे पांव वापिस आ गया ..साथ ही वापिस आ गईं वो सारी विस्मृतियां जिन्हें भूलने की गलतफहमी पाले मैं जिंदगी गुजार रहा था।

पैंट के पॉकेट में किसी अनछुई अंगूठी को टटोल उठीं थीं मेरी उंगलियां और मन की दबी गांठ फिर उभर आई थी।

जिंदगी जीने के दौरान बहुत सारी बाते हम भूलते चले जाते हैं ये सत्य है लेकिन कुछ बातें कुछ यादें मन शायद संजो कर रखे रहता है कभी भूलना नहीं चाहता है।मेरा मन भी तो यही कर रहा था।बात भूलने वाली थी भी तो नहीं।

कहने को तो ये बात करीब चार वर्ष पुरानी थी लेकिन सुशांत के लिए तो जैसे कल की ही बात थी।

मां और पिताजी उसके घर शगुन की अंगूठी लेकर गए थे…

उसके घर यानी कोमल के घर और कोमल यानी कि वह जो मेरे लिए सब कुछ हो गई थी । अपने नाम कोमल के अनुरूप ही कोमल थी। जब मां ने उसकी फोटो मुझे दिखाई थी तो मैं मां की उपस्थिति की भी परवाह किए बिना अपलक उसे देखता रह गया था।बड़ी बड़ी अधमुंदी सी आँखें मानो दुनिया भर की कोमलता छिपाए हुई थीं अधखुले से होंठ  जाने कितनी अनकही बयां करने को बेताब थे काली घनी केशराशि को समेट कर  हल्का जूडा सा बांध रखा था उसने फिर भी कई बेतरतीब लटें उसके गालों की मीठी निश्छल मुस्कान को छूने की गुस्ताखी कर रहीं थीं  शालीन सौम्य सांवली रंगत दिखावटी मेकअप बनावटी श्रृंगार से अछूता चेहरा ….

 

लगता है शगुन लेकर आज ही जाना पड़ेगा मां की चुहल भरी आवाज से सुशांत जैसे मीठे समंदर में गोता लगाकर वापिस आ गया था।

मां अब तुम जैसा सही समझो झेंपती हुई बेटे की आवाज ने मां की पसंद पर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी।

मां उसने क्या कहा है उसकी क्या इच्छा है सुशांत ने बहुत धीमे स्वर में पूछना चाहा था लेकिन मां ने उसे सुना ही नहीं या सुन कर भी अनसुना कर दिया था।

एक बार मुलाकात कर ले बात चलाने से पहले अगर …. मां ने मेरी सहमति के लिए फिर टटोला।

तुम और पापा देख लो मुलाकात कर लो कहता सुशांत तेजी से उठकर बाहर जाने लगा था।

मेरा दिल और धड़कने दोनों मानो मुझसे जुदा हो चुके थे ।उसकी घनी केशराशि के बंधे जूड़े में मानो मैं पूरी तरह बंध चुका था और ताउम्र बंधे भी रहना चाहता था।मेरी हालत मेरी मां से छुपी नहीं थी।वह सब समझ रही थी इसीलिए अब बिना देर किये वह रिश्ता पक्का करने की सारी तैयारियां करे बैठी थी।

अरे मुझे भी क्या सोचना है ।कोमल के मामा सुधीर जी पर पूरा भरोसा है मुझे उनकी इकलौती भांजी है ।वही तो यह रिश्ता लेकर आए थे अब ज्यादा सोचना विचारना नहीं है ।तेरी उम्र बढ़ती जा रही है बड़ी मुश्किल से तो तुझे यह  लड़की अच्छी लगी है।मैं अभी कोमल के मामा से बात करती हूं।

जी हेलो हां सुधीर जी सुशांत को भी फोटो पसंद आई है। अब तो  शगुन लेकर ही आएंगे।आप लोग ही बताइए कब आएं आपके घर कोमल का हाथ मांगने…. मां ने पिता जी से सलाह लेते हुए तुरंत कोमल के मामा  को फोन कर सूचित कर दिया था।

कोमल ने मेरी फोटो देखी या नहीं,देख कर वह क्या चाहती है रजामंदी है या नहीं मैं उसको कैसा लगा आदि आदि प्रश्नों का उन दिनों कोई जवाब ही नहीं रहता था।मां बाप ही सब कुछ देख समझ कर रिश्ता तय कर आते थे।जीवन भर के लिए साथ जोड़ आते थे।वैसे भी मुझे इन सब मामलों में मां पर पूरा भरोसा था खुद पर भरोसा भी कम था।

तय हुआ कि अगले सप्ताह कोमल को लेकर उसके घरवाले यहां  आएंगे तब देखना मिलना हो जाएगा और अगर सब सही रहा तो शगुन की रस्म भी हो जाएगी।

गली के अंतिम छोर पर था उसके मामा का घर।मामा मामी ने ही यह रिश्ता और फोटो भिजवाई थी मेरे लिए।

पूरा हफ्ता बहुत कठिनाई से बीता….मामा के यहां से खबर आ गई कि वे लोग आ गए हैं आप लोग शाम को आ जाइए।

मां के लाख मनाने पर भी मैं नहीं गया ।आपका फैसला ही मेरा फैसला होगा भरोसा दिलाकर मैंने उन्हें रवाना कर दिया।

मां पिता जी के जाने के बाद एक एक पल मुझे सदियों की तरह लग रहा था।दिल किसी अनजानी आशंका से सहमा हुआ सा था जैसे।जब तक सब कुछ ठीक से हो नहीं जाता तब तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

दरवाजे पर कार रुकने की आवाज सुनाई दी और मेरे पैरो को मानो पंख लग गए ।मै लगभग उड़कर दरवाजे तक पहुंचा लेकिन ये क्या!! मां बहुत गुस्से में दिख रही थी पिताजी भी बेहद खामोश थे।

मेरा तो दिल ही डूब गया क्या हुआ पूछने की हिम्मत भी खत्म ही हो गई थी।

ले फेंक दे ये अंगूठी…कितने धोखेबाज  होते हैं लोग आजकल।फोटो में कुछ असलियत में कुछ मां का पारा सातवें आसमान पर था।हमारा ही बेटा मिला था उल्लू बनाने के लिए भगवान बचाए ऐसे धोखे वाले लोगों से मां अंगूठी फेंक सोफे पर सिर पकड़ कर बैठ गई थी और बोले जा रही थी।

मैं जिसकी आशाओं पर तुषारापात हो चुका था किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया था।हिम्मत बटोर कर पानी  ले आया और गिलास मां की तरफ बढ़ाया।

लो मां पानी पी लो और अब इत्मीनान से बताओ ऐसा क्या हो गया !! मैंने जमीन पर गिरी अंगूठी अपने पैंट की जेब में डालते हुए कहा।

लड़की गूंगी है बोल नहीं सकती मां ने जैसे विस्फोट किया।

मेरे सिर पर तो जैसे बम गिर गया हो।

गूंगी है!! अविश्वसनीय!! मैं चीख उठा।

हां हां गूंगी है ।ये बात सबने छुपाई… ना उसके माता पिता ने ना ही मामा मामी ने हमें कभी भी बताई।हमने कितना भरोसा किया था सबके ऊपर।उसके मामा तो यहीं रहते है मोहल्ले में चुप्पी साधे रहे क्या हमे पता नहीं चलता।क्या हम लोग मूर्ख हैं।गूंगी लड़की हमारे पल्ले बांधे दे रहे थे…. मां की नाराजगी सारे बांध तोड़ बाहर आ रही थी।

जब सब लोग छुपा रहे थे तब मां को पता कैसे चला इस बात का पिता जी मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि मां की जानकारी कितनी सही है तो मैने खामोश बैठे पिताजी को भी बातचीत में शामिल किया।

अरे इनसे क्या पूछता है।तेरे पिताजी ही थोड़े स्मार्ट होते तो ऐसी नौबत ही क्यों आती।पहले ही सुधीर जी से इस बारे में जांच पड़ताल कर लेना चाहिए था।गलती तो सारी इन्हीं की है।वो तो मैं ना देखू ना बोलूं तो इस घर का जाने क्या हो…!! मां का सारा आक्रोश पिताजी पर बरस पड़ा था।

मां छोड़ो ना ये बात तुम बताओ तो तुमने कैसे पता लगाया मैने तुरंत मां को असली बिंदु पर केंद्रित करते हुए टोका।

अरे हुआ ये कि….मेरे बार बार पूछने पर भी कोमल कुछ बोल नहीं रही थी।कुछ परेशान थी ऐसा लग रहा था कुछ बोलना चाहती है पर बोल नहीं रही थी ।मेरे कुछ भी पूछने पर अपने पिता जी की तरफ देख लेती थी।पिता जी मामा सुधीर तरफ़ देखते थे फिर बोल देते थे कि हमारी बेटी शर्मा रही है और उसकी मां तुरंत सभी प्रश्नों के उत्तर देती जा रही थी।मुझे कुछ गड़बड़ी की आशंका होने लगी थी। उसकी पढ़ाई से संबंधित एक प्रश्न  जब मैने पूछा तो उसका उत्तर कोई नहीं जानता था।अबकी बार मैं कोमल के पास जा बैठी।तब उसने इशारे से बताया कि वह बोल नहीं सकती लिख कर बता सकती है।मेरे तो पांव तले जमीन खिसक गई ।मैने पलट कर जब उसके मामा मामी की तरफ देखा तो वे नीचे देखने लगे थे।

क्या आपकी बेटी गूंगी है बोल नहीं सकती मैने फिर भी उसके पिता की तरफ देखते हुए पूछा तो वह कुछ बोल नहीं पाए और मामा सुधीर जी की तरफ देखने लगे।

आप लोगों ने इतनी बड़ी बात हमसे छुपाई ।शर्म नहीं आती।क्यों छिपाया आपने यह बात।पूरी जिंदगी भर का सवाल था ये तो।क्या इतने बड़े धोखे का पता नहीं चलता मैंने बेइंतहा खरी खोटी सुनाई सब निरुत्तर हो बगले झांकने लगे।

मामा सुधीर कहने लगे हमने सोचा था बता देंगे पर मौका ही नहीं मिला।

कोमल की मां कहने लगी  हम तो यही सोच रहे थे कि इसके मामा मामी ने आप लोगों को ये बता ही दिया होगा  तब भी आप लोगों ने इसे पसंद कर लिया है ये हमारी खुशकिस्मती है….!!

आपकी खुशकिस्मती और हमारी बदकिस्मती!! कितनी आसानी से आप लोग अपना ये बोझ हमारे सिर मढ़ने का षडयंत्र कर रहे थे।ऐसी गूंगी लड़की से कौन शादी करेगा।कोई गूंगा भी नहीं करेगा…इतने बड़े ख्वाब देख ही क्यों रहे हैं खरी खोटी सुना कर मां उनके रोके रुकी ही नहीं तत्काल वहां से रवाना हो गई।

 

सुशांत के जेब में पड़ी अंगूठी शांत हो गई थी और दिलोदिमाग में तूफान चलने लगा था।

 

बस तभी से सबके मन में जो गांठ पड़ी वह मजबूत ही होती गई।

मुझे और मां दोनों को सुधीर मामा और कोमल धोखेबाज और मक्कार लगने लगे थे।सुधीर जी ने सोचा था धीरे से ये बात बता देंगे अपनी इकलौती योग्य भांजी के प्रति निष्कपट दुलार उन्हें दो टूक सच्चाई उजागर कहने से रोक देता था।कोमल के मां पिता जी की गलती नहीं थी उन्होंने सुधीर मामा को असलियत बताने को कहा था।वे इस बात से अंजान थे कि मामा ने यह बात छुपाई।

 

उस घटना के बाद से शादी के नाम से ही मुझे विरक्ति हो गई थी।मां भी आहत हो गई थी लेकिन प्रयास जारी थे उसके।लेकिन अब किसी भी फोटो में मुझे कोई रुचि ही नहीं रह गई थी।पता नहीं कोमल का चेहरा ही हर फोटो में नजर आ जाता था साथ ही उसका गूंगा पन और मामा का झूठ..!

आज अचानक गली के मोड पर उसे देख स्मृतियां सजीव हो उठीं थीं।शायद वह भी मुझे पहचान गई थी उसकी आंखों के भाव से मुझे ऐसा प्रतीत हुआ।तेजी से वापिस पलटते मेरे कदम अचानक किसी से टकरा गए.. मैंने नजरें उठाई तो सामने सुधीर मामा खड़े थे।

 

अरे सुशांत बेटा आओ बेटा  तुम तो इस घर का रास्ता ही भूल गए कहते हुए प्रेम से हाथ पकड़ जबरन घर के अंदर ले गए।

मैं तो तुम्हारे घर चाह कर भी नहीं जा पाया।तुम्हारी मां के गुस्से और नफरत का सामना करने की हिम्मत नहीं थी मुझमें आओ कोमल तुम भी बैठ जाओ कहते हुए उन्होंने कोमल को भी वहीं मेरे पास ही सोफे पर बिठा दिया।

सुशांत उठकर भाग जाना चाहता था वहां से लेकिन कोमल को देख पैरों ने भी मानो बगावत कर दी थी।

सुशांत वैसे अब ये सब कहने का कोई अर्थ नहीं है ।तुम लोगो का मन मेरी तरफ से खट्टा हो चुका है ।लेकिन फिर भी जो मैं कहना चाह कर भी नहीं कह पाया वह तुम आज सुन लो और मन का मैल धो डालो बस इतनी ही प्रार्थना है।

जानते हो ये मेरी भांजी जो मेरी बेटी ही है जन्म से गूंगी नहीं है।बचपन में इसके साथ एक हादसा हो गया था ।स्कूल से लौटते समय रास्ते में इसके साथ आने जाने वाली लड़की के चेहरे पर एसिड अटैक हुआ था अटैक करने वाले लड़कों में से एक लड़के ने कोमल के मुंह को कस कर दबा दिया था ताकि ये चिल्ला ना सके।उस भयानक हादसे को देख यह नन्ही बच्ची दहल गई थी और उसी वजह से इसकी आवाज भी चली गई ।हम लोगों ने हर मेडिकल उपचार करवाया लेकिन इसकी आवाज वापिस नहीं आई।महीने लग गए थे इसे उस हादसे से उबर कर सामान्य होने में।फिर अब ये गूंगापन भी एक हादसे की तरह है इसकी जिंदगी में।हमने इसे उस हादसे से निकाला पढ़ाई लिखाई की तरफ ध्यान लगवाया एसिड अटैक में घायल अपनी सहेली की हालत देख कर इसने डॉक्टर बनने का संकल्प चुना।अथक मेहनत करती रही ..मेडिकल में इसका चयन हुआ।आज मेरी कोमल इसी शहर में डॉक्टर के पद पर चयनित होकर आई है गर्व और हर्ष से मामाजी का गला भर आया था ।

सुशांत की तो बोलती ही बंद हो गई थी।वह चुपचाप उस स्निग्ध मासूम लड़की को देख रहा था जो अपने मामा को भावुक होता देख उनका हाथ थाम रही थी।

अब मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है मेरी कोमल बहुत काबिल है।बेटा मुझे माफ कर देना और अपनी मां से भी माफ़ी लेना।मेरे दिल में कोई कपट या धोखा नहीं था।मुझे अपनी बेटी की प्रतिभा और हिम्मत के सामने इसका गूंगा पन बहुत तुच्छ लगता था।फिर तुम्हीं बताओ इसमें इसकी क्या गलती है।शादी के नाम पर प्रत्येक लड़के वालो ने इसे क्या कुछ ताने नहीं मारे जलील नहीं किया।इसने तो अपनेगूंगे होने की बात नहीं छुपाई मैने छुपाई थी ।स्वार्थी हो गया था अपनी भांजी के प्यार में।तुम और तुम्हारा परिवार देख कर मन में लालच आ गया था।अब तो ये अपनी जिंदगी से खुश है शादी करने का विचार छोड़ दिया है इसने भी हमने भी।मुझे माफ कर देना बेटा मन में कोई गांठ ना रखना और मेरी बच्ची के लिए कोई बैर भाव ना रखना इसे दुआ देना हाथ जोड़ कर सुधीर मामा फिर बोल पड़े।

कोमल खामोश थी एकदम शांत और सहज दृष्टि से मुझे देख रही थी ।

मेरे मन की गांठ खुलने लगी थी और जेब में पड़ी अंगूठी को बाहर निकालने के लिए  मेरी उंगलियां बेताब होने लगीं थीं ।

जी मामाजी अब मैं चलता हूं हाथ जोड़ कर मैं तेजी से उठकर घर की तरफ आ गया ।पूरे रास्ते यही सोचता रहा आखिर उसकी क्या गलती है …! गूंगा पन उसकी प्रतिभा हिम्मत और जुझारू पन से भी बड़ा है क्या.!!मां से भी यही कहूंगा और दोबारा शगुन की अंगूठी लेकर मां के साथ इस बार मैं स्वयं आऊंगा कोमल को पहनाने… दृढ़ता से मेरे कदम घर की तरफ बढ़ चले थे।

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव 

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