तिरस्कार कब तक? – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

घर के सामने वाले पार्क में भावना जी अपनी उम्र की ही कुछ महिलाओं के साथ बैठकर बतिया रही थी। सच बात है बुढ़ापा है ही ऐसी चीज और सोने पर सुहागा तब जबकि पति भी साथ में ना हो और बच्चों पर निर्भरता आ जाए। रानू माता जी सुबह से ही बहु ,बेटा, पोता, पोती, बेटी, सब के अत्याचारों के किस्से सुनाने शुरू कर देती थीं।  अपने पति के पेंशन के पैसों में से वह अपनी बहू को मकान किराया भी देती है। विदेश में रहने वाला बेटा  समान और पैसे उनको भिजवाता ही रहता था।

  रानू माताजी गालियां सुनाए बिना तो रह ही नहीं सकती थी। घर के बच्चों से बहुत बुरा बोलते हुए उन्हें सभी सुनते थे। पार्क में बात करते हुए मनपसंद विषय आज की पीढ़ी, आज के बच्चे, वृद्धाश्रम, बीमारियां, अखबारों में छपी वृद्धजनों पर अत्याचारों की नकारात्मक कहानियां ही होते थे और अब क्योंकि भावना जी भी नियम से उन लोगों के साथ ही बैठने लगी है तो उन्हें भी अपने दुखों का ज्ञान होना शुरू हो गया।

         भावना जी भी अपने दुख गिनाने लगी। अस्पताल में उनकी एंजियोग्राफी और भी बहुत सारे टेस्ट हुए और बहुत दिन अस्पताल में रहकर जब से आई है बच्चों का व्यवहार बदल गया। बच्चों को उनका वापस आना अच्छा नहीं लगा।  उनके अस्पताल जाने पर बहू ने तो नौकरी भी छोड़ दी और पूरे घर को अपने हाथ में ही ले लिया।   उनके द्वारा पाले गए दोनों पोते भी चुप करके अब अपने ही कमरे में   बिना दादी को बताए अकेले  खाने लगे। भावना जी अच्छा खाने तक को तरसने लगी।

  बिना नमक मसाले की सब्जियां यहां तक कि घर में आटा भी  मल्टीग्रेन बेस्वाद आने लगा। जब से  रसोई में उनसे दूध का भिगोना छिटक कर गिरा तब से तो बहू उन्हें रसोई में जाने नहीं देती। अब दफ्तर से आने के बाद बेटा बहू  कहीं जाने के बाद रात-रात को भी घर आते पर कुछ पूछो तो  कह देते हैं, अम्मा आप सोई क्यों नहीं? हम कहीं गए थे।

     बुढ़ापा है ही ऐसी चीज बेटा हो या बेटी सब बदल जाते हैं , बेटी को भी बुलाऊं  तो उसकी भी अपने परिवार की व्यस्तताएं हैं। भाई बहन दोनों मिले हुए हैं। अब तो यूं लगता है मैं सब पर बोझ बन गई हूं।

अपरिभाषित प्रेम सीमा वर्णिका 

ऐसा तो होगा ही ना बहन जी, कमलेश जी बोली आपके साथ जब तक बहू ने अपने बच्चे पलवाने थे तब तो अच्छा व्यवहार करते ही। अब बहु जब खुद घर में ही है तो ही बेहतर है? बस इस तरह की बातों से भावना जी की अपने परिवार के प्रति  दुर्भावनाएं बढ़ती ही जा रही थी और उन्हें लगता था कि सब उनका तिरस्कार कर रहे हैं। अंततः उन्होंने भी फैसला किया कि रानू माता जी के जैसे वह भी अपने घर में अपना खाना अलग बनाएंगी। उनके पति की भी पेंशन आती है और घर तो आज भी उनके ही नाम पर है।

         शनिवार को उनकी बेटी रीना भी घर आई हुई थी। बस अब तो उन्होंने फैसला कर ही लिया था कि कल इतवार को बेटे को कहकर वह अपना खाना अलग ही कर लेंगी । 

            पूरी रात सोच करते बीती, सुबह 6:00 बजे सर्दी में उठकर वह बाहर बैठी तो उनके बेटे सचिन ने ठंड में उन्हें अंदर रजाई में बैठने को कहा और चाय बनाने लगा।बेटे के कहने पर वह अंदर आकर  चिल्लाते हुए बोलीं अब इस घर में मेरी किसी को जरूरत नहीं है। आखिर मेरा तिरस्कार कब तक होगा? खाना भी मुझे क्या मिलेगा? गंदी सी रोटी और बेकार सब्जी।  मैं अब अपना खाना अलग बनाऊंगी। तुम जब मर्जी आओ जाओ , मुझे बताओ ना बताओ,तुम्हारे बच्चे भी अब पल गए और भी  रोते रोते भावना जी ने अपनी सारी भड़ास निकाल दी। बच्चे, बेटी सब उठकर बाहर आ चुके थे। 

        सचिन ने भावना जी के चुप होने के बाद बोला अरे मेरी मां इतना गुस्सा लिए बैठी हो? याद है बचपन में आप मुझे कहा करती थी ना कि गंदे बच्चों के साथ मत खेलो अब मैं आपको कहूं कि आप नकारात्मक लोगों के साथ मत बैठो तो? अम्मा यह घर ही तुम्हारा है? तुम जैसे चाहे रहो! मेरे लिए तो आप सब कुछ हो इसलिए ही तो आपकी बहू मीना ने नौकरी छोड़ दी कि मेरी मां तो है नहीं ,सासू मां का साया अपने सिर पर से नहीं उठने दूंगी। पार्किंसन की बीमारी की शुरुआत के कारण आपके हाथ हिल जाते हैं

तो रसोई में कहीं आपको कुछ हो ना जाए इसी फिक्र में ही मीना आपको रसोई में नहीं जाने देती। आपका लिवर, हार्ट, इन सब की रिपोर्ट बहुत अच्छी नहीं आई है और डॉक्टर ने आपको बहुत परहेज वाला खाना खाने को बोला है। सबसे पहले तो आपको भार काम करना होगा, आप बच्चों के साथ कुछ भी खाती हो तो वह आपको नुकसान ही देगा इसीलिए ही हमने दोनों बेटों को आपके साथ खाने के लिए मना किया है। आप इस घर की बड़ी हो और

आपसे पूछे बिना हम कहीं भी नहीं जाते हैं, जीजा जी का एक्सीडेंट हो गया था।  हम दोनों शाम को तब तक अस्पताल में बैठते थे जब तक रीना दीदी  घर संभाल कर वापस नहीं आ जाती थी। आपको इसलिए नहीं बताया कि कहीं आप घबराकर अपनी तबियत भी खराब ना कर लो। तभी रीना ने कहा मम्मी भाभी ने आपका ख्याल करने के लिए अपनी प्रमोशन लेने की बजाय अपनी नौकरी छोड़ दी। आप क्यों नकारात्मक विचार अपने मन में लाकर अवसाद ग्रस्त होती हो।

आपको अपने संस्कारों पर भरोसा नहीं है क्या? आपके कारण सब ने हीं मिर्च मसाले छोड़ दिए आपको यह नहीं दिखा क्या? तभी गोलू मोलू भी बोले दादी आपकी फ्रेंड्स की कंपनी खराब है तभी तो आप ऐसा सोचती हो ऐसा कहते हुए दोनों भावना जी से चिपट गए और भावना जी के मन से सारे नकारात्मक विचार दूर हो चुके थे और उन्हें अपने विचारों पर ही शर्म आ रही थी। सचिन और बच्चे उनसे कितना प्यार करते हैं। वह परमात्मा को धन्यवाद करती हुई निहाल हो उठी।

तिरस्कार कब तक विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी। 

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

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