थैंक्यू मेरी बिटिया रानी – आरती झा आद्या

सुनो ना मैं सोच रहा था अब तुम किसी स्कूल में शिक्षिका बन जाओ … बीएड करने के बाद से तुम्हारी डिग्री धूल ही खा रही है। धूल झाड़ते झाड़ते ऊब गई होगी तुम भी… बड़े प्यार से कृपा के पति श्याम ने सुबह की सैर करते हुए कहा।

और घर बच्चे कौन देखेगा… कृपा ने पूछा।

अब इतने छोटे भी नहीं हैं दोनों… चौदह पंद्रह साल के बच्चे खुद को संभाल सकते हैं। वैसे भी जब तक दोनों स्कूल से आएंगे, तुम भी तो आ ही जाओगी… श्याम ने कहा।

नहीं सिर्फ घर और बच्चों पर कंसंट्रेट करना है… वैसे भी मेरे दस बीस हजार से क्या होना है… श्याम के प्रस्ताव को एक सिरे से नकारते हुए कृपा ने कहा। उसकी आवाज की तेजी से और लोग भी उन दोनों को मुड़ कर देखने लगे। 

बहुत ज्यादा नहीं तो ट्यूशन ही कर लो घर पर … क्यूं अपना ज्ञान जाया करना…नाश्ता करते हुए श्याम ने एक और प्रस्ताव कृपा के सामने रखते हुए कहा।

नहीं नहीं…अभी अपना घर और अपने बच्चे बस…कृपा श्याम की ओर बिना देखे ही कहती है।

ओह हो मम्मा…ये क्या बना दिया आपने..घास फूस..कहकर पंद्रह साल की दिव्या ने मुँह बना लिया।

क्या हुआ… अच्छा ठीक है…तुम्हारी पसंद की आलू सब्जी और पूरी झटपट बना देती हूं.. अपने कमरे में आराम करती कृपा जल्दी से बाहर आई।

अरे नहीं मम्मी… कल बना लेना…परेशान मत हो… हम दोनों खा लेंगे …कृपा का तेरह साल का बेटा शिवम कहता है।

अरे ऐसे कैसे…अभी बना कर देती हूं ना… बच्चों के ना ना करने पर भी कृपा काम में लग गई।




दिव्या ये लो बेटा तुम्हारी पसंद का आलू सब्जी और पूरी… झटपट फिर से बेटी के लिए बना कर उसके कमरे में आती हुई कृपा ने कहा।

कृपा तैयार हो गई क्या…पार्टी शुरू हो गई होगी..श्याम की आवाज आती है।

हां हां…बस … साड़ी का पल्लू ठीक करती कृपा कमरे से बाहर आई।

ये साड़ी.. वो हरी वाली साड़ी भी खूब जंचती है तुम पर। लेकिन इसमें भी गजब सुंदर लग रही हो…श्याम ने तर्जनी और अंगूठे की सहायता से वाउ का चिन्ह बनाते हुए कहा।

अभी आई…कहकर कृपा फिर कमरे में घुस गई।

अरे ये क्या कृपा कितनी सुंदर तो लग रही थी..चेंज क्यों कर ली…श्याम ने पूछा।

तुमने कहा ना हरी वाली साड़ी के लिए इसीलिए…कृपा ने मुस्कुरा कर कहा।

ये तो ठीक है मम्मी…अपनी पसंद भी देखा करो… दिव्या भी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आती हुई बोली।

अब तो तुमलोग की पसंद ही मेरी पसंद है…कहती कृपा दरवाजे लॉक करने लगी।

बच्चों की छुट्टियाँ हो गई है…कहीं चलने का प्रोग्राम बनाया जाए क्या… एक रविवार को हंसी ठिठोली के बीच श्याम ने सबसे संबोधित करते हुए पूछा।

इस बार चार धाम की यात्रा…




इस बार साउथ चलें क्या पापा… जब तक कृपा की बात पूरी होती बेटा रोहित बोल उठा।

हां हां साउथ ही चलते हैं…कृपा बेटे के हां में हां मिलाती है।

क्या है मम्मी…आप इतना भेदभाव क्यूं करती हैं…. दिव्या अचानक झल्ला कर कह उठी।

भेदभाव किसमें और कब, कहाँ… कृपा आश्चर्य से तीनों को देखने लगी।

आप खुद में और हमारे बीच ये जो भेदभाव करती हैं…सही है क्या… दिव्या बिफरती हुई कहती है।

क्या कह रही हो तुम…मैं तो तुमलोग जो कहती हो वही करती हूं… अपने बारे में सोचना भी नहीं चाहती हूं…कृपा के चेहरा दिव्या की बातों से तन गया था।

क्यूं करती हैं हमारे मन का… दिव्या बहस पर उतारू थी।

क्या बकवास लगा रखा है तुमने…खुशी मिलती है ऐसे मुझे.. दिव्या की बातों से उकताहट भरे स्वर में कृपा कहती है।

यही तो भेदभाव है मम्मी..हमलोग चाहते रहे हैं कि आप अपने पसंद से भी कुछ कीजिए…वो देख हमें खुशी मिलेगी… दिव्या एक पल के लिए ठहर कर श्याम और रोहित की ओर देखती है और दोनों को उसके समर्थन में सिर हिलाते देख आगे बोलना जारी रखती है।




आपने केवल अपनी खुशी के बारे में ही सोचा ना मम्मी…ये हमारे और आपके बीच आपके द्वारा भेदभाव की करना हुआ ना। अगर हम तीनों को भी खुश देखना चाहती हैं तो त्याग की देवी बनना छोड़ दीजिए…दिव्या उठ कर कृपा के बगल में बैठ उसके कंधे पर सिर रखती हुई कहती है

कुछ इस तरह भी भेदभाव हो सकता है… ये तो कभी कृपा ने सोचा भी नहीं था। दिव्या की बातों ने कृपा के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया था… नहीं तो वो बचपन से घर की, बाहर की महिलाओं को सिर्फ दूसरों की पसंद के अनुसार ही देखती आई थी।

तो फिर ठीक है… इस बार की छुट्टियों चार धाम की यात्रा के नाम… थैंक्यू मेरी बिटिया रानी…दिव्या को अपने बाहों में समेटे हुए ही कृपा ने प्रसन्नता और गर्व भरे स्वर में कहा।

आरती झा आद्या

दिल्ली

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