थक गई हूं अन्याय सहते सहते!! – कनार शर्मा 

सुबह का वक्त जहां सांस लेने की फुर्सत ना होती है… रोज की तरह शिखा अपने हाथ फुर्ती से चला रही थी। एक तरफ चाय तो दूसरी गैस पर सब्जी बन रही थी। वही जल्दी-जल्दी परात में आटा लगा ढककर रखा ही था कि सासू मां चिल्लाई… बहू चाय ले आओ दोपहर होने आई मगर तुम्हारा तो काम निपटा ही नहीं और मांगू नहीं तो तुम हमें भूखा ही मार दो.… जी मां बोल चाय हाथ में पकड़ा तुरंत अपने बेटे संजू के कमरे की तरफ भागी… “बेटा जल्दी उठो स्कूल के लिए देर हो जाएगी” कपड़े निकाल दिए हैं नहाकर जल्दी तैयार होकर आओ तब तक मैं चॉकलेट मिल्क शेक बना रही हूं।

 भुनभुनाते हुआ संजू उठकर बाथरूम चला गया तभी उसकी नजर अपने मोबाइल फोन पर पड़ी जोकि साइलेंट पड़ा था,,, अचानक लाइट चमकती देख उठाया ही था कि पतिदेव शिखर की आवाज आई…

 अरे मैडम फोन छोड़ो एक कप कॉफी बना दो बहुत सर दुख रहा है रात में 2:00 बजे तक काम किया है। तुम्हारी तरह खर्राटे नहीं मारे हैं… पति की बात सुन फोन छोड़ तुरंत रसोई की तरफ भागी और कॉफी तैयारकर हाथ में पकड़ाई ही थी संजू बोला “मम्मा बैग नहीं जमा है आप मदद कर दो, टाई बेल्ट भी नहीं मिल रहे”…. हां बेटा आई दौड़कर संजू के पास पहुंची समान निकाला,,, वापस रसोई में टिफिन लगाने लगी। थोड़ा सा समय मिलते ही उसे सोचा फोन लगाती हूं इतनी सुबह सुबह आखिर क्या परेशानी आई होगी मां को…

शिखा के हाथ में फोन देख सास कमला जी बोली “तुमने भोग का प्रसाद तो बनाया नहीं, बच्चा स्कूल गया नहीं, पति के ऑफिस की तैयारी कि नहीं, सारी रसोई फैली पड़ी है” और तुम्हें सुबह सुबह गप्पे मारने का शौक चढ़ा है रखो इस टूनटूने को साइड में और जल्दी जल्दी हाथ चलाओ….!

 चाहती थी कि एक बार मां को फोन कर पूछ ले कि सुबह से 10 मिस कॉल क्यों है मगर इतनी मजबूर की चुपचाप फोन रख काम में जुट गई।



बेटे संजू को तैयार कर बस स्टॉप तक छोड़ने गई बस आने में थोड़ी देर थी सोचा फोन करूं इतने में बस आ गई उसने संजू की  शर्ट का कॉलर ठीक किया,,,, बाय बोल घर पहुंची तो देखा शिखर गुस्से से बोले रुमाल कहां है???? मेरा एटीएम कार्ड भी नहीं मिल रहा… तुम्हें पता है मुझे सुबह कितनी जल्दी होती है फिर भी तुम कोई चीज ठीक से नहीं रखती पता नहीं कहां ध्यान लगा के रखती हो????

यह लीजिए सामने टेबल पर सब रख दिया था।

 

ठीक है कोई एहसान नहीं कर दिया था अच्छा सुनो आज मेरी बहुत जरूरी मीटिंग है नाश्ता नहीं करूंगा टिफिन दे दो।

 

 जी अभी तैयार करके देती हूं बोल पलटी ही थी कि…

 

 तैयार करके देती हूं मतलब अभी तक तैयार नहीं किया?? टिफिन देने का मतलब होता है जब बोला जाए हाथ में थमा देना चाहिए और कितने बरस लगेंगे तुम्हें यह समझने में… हद करती हो शिखा… पैर पटकते हुए बिना टिफिन लिए ही चला गया।

 

ये तो महीने में 10 बार हो ही जाता है जब शिखर गुस्से में टिफिन लेकर नहीं जाता… शिखा चुपचाप रसोई समेटने लगी एक कप चाय लेकर बालकनी में बैठ गई सोचा कामवाली आने तक थोड़ी फुर्सत है मां को फोन कर पूछूं क्या बोल रही थी????

 



अपनी बहू के हाथ में फोन देख कमला जी ने उसके हाथ से फोन छुड़ा लिया “सुबह से देख रही हूं फोन का पीछा नहीं छोड़ नहीं तुम”?? सुनो बड़ी बुआ जी खाना खाने आ रही है खाने में मलाई कोफ्ता,बिरयानी, दही बड़ा और बेसन के लड्डू उन्हें बहुत पसंद है जरूर बनाना मीठे में…

पर मांजी आज तो कोई तीज त्यौहार भी नहीं है फिर बुआ जी अचानक क्यों आ रही है????

 अच्छा अब घर में बहन, बेटियों को आने के लिए तुम्हारी इजाजत लेनी पड़ेगी… कान खोलकर सुनो ये मेरा घर है यहां कोई भी कभी भी आ जा सकता है तुम चुपचाप जितना कहा जाए वह करो… कहते हुए अपने कमरे में चली गई,,,, जबकि उन्होंने जानबूझकर केतकी बुआ का घर पर निमंत्रण किया था ताकि बहू घर से बाहर न जा सके।

चाय पी कर घर की साफ सफाई कर रसोई में जुट गई खाना बनाते बनाते समय का पता ही नहीं चला। बुआ जी भी आ गई सब लोग खाना खाने के बाद आराम करने अपने कमरे में चले गए।

शाम को चाय बनाते समय शिखा को याद आया सुबह मां का फोन क्यों आया था जरा लगाकर पूछूं तो!!

 

फोन की घंटी जाते ही उधर से मां के रोने की आवाज आई।

 अरे क्या हुआ????

फोन की घंटी जाते ही उधर से मां के रोने की आवाज आई।

 अरे क्या हुआ????

 

 शिखा तू फोन क्यों नहीं उठा रही थी तेरे पापा को रात में घबराहट,बैचेनी हो रही थी… डॉक्टर ने कहा उन्हें दूसरा हार्ट अटैक आया है उनकी हालत गंभीर बता रहे हैं। मैंने रात को  तेरी सास से बात की थी कि तुझे जल्दी भेज दें और सुबह दामाद जी को भी बोला था बेटा तू अभी तक आई क्यों नहीं???

 मैं अकेली बहुत परेशान हो रही हूं विशाखा भी कल तक आ पाएगी।

 

अपनी मां की बात सुनते हैं शिखा के तोते उड़ गए…ओह तो मां इसलिए सुबह से फोन लगा रही है अच्छा मां तुम चिंता मत करो मैं कुछ देर में पहुंचती हूं।

 

ये क्या हो रहा है मांजी और शिखर को सब पता था फिर भी उन्होंने मुझे बताना ठीक नहीं समझा?? अब समझी सुबह से फोन बज रहा था वह मुझे उठाने क्यों नहीं दे रहे थे क्योंकि उन्हें पता था अगर मुझे पता चल जाता तो मैं तुरंत अपनी मां के पास चली जाती। 



विनोद जी की दो बेटियां विशाखा और शिखा… विशाखा की शादी दूसरे शहर में हुई थी मगर बाद में उन्हें एहसास हुआ कि बेटी उन से कितना दूर हो गई इसीलिए उन्होंने शिखा की शादी अपने शहर में ही कुछ किलोमीटर दूर कर दी। यही सोच के बेटी आती जाती रहेगी तो घर आंगन खिला-खिला रहेगा और विनोद आभा जी का अकेलापन भी दूर हो जाएगा। शुरू शुरू में सब ठीक रहा सास कमला जी को कुछ समय बाद शिखा का यूं बार-बार अपने मायके जाना अखरने लगा। कुछ विवाद उत्पन्न होने पर पर विनोद, आभा जी ने कह दिया बेटा हम आराम से है तू तेरा घर संभाल… नए परिवेश में ढलने में थोड़ा समय लगता है। अपने माता-पिता की बात सुन शिखा भी चुप हो गई और जैसा कमला जी और शिखर कहते रहे वह करती रही इस तरह उसका आना-जाना साल में दो बार भी बड़ा मुश्किल में हो पाता तु चंद घंटों में वापस लौटना पड़ता। फिर बेटे संजू के बाद तो ना के बराबर जा पाती क्योंकि कमला जी का अपने पोते के बिना मन नहीं लगता और बहू के बिना उनके घर में कोई काम हो नहीं सकता था।

एक दिन अचानक उसके पापा की तबीयत खराब हो गई…शुगर,हाई बीपी तो उन्हें पहले से ही था पता चला उन्हें हार्ट अटैक आया था उनकी सेवा के लिए शिखा ने काफी भागदौड़ की पापा के ठीक होते हैं वापस ससुराल में रम गई। अब हर कभी पापा के हाल-चाल जानने के लिए उसका मायके जाना फिर कमला जी को गुस्सा दिलाने लगा।

असल में वे नहीं चाहती थी शिखा उन्हें छोड़कर अपने मां बाप की सेवा करती रहे क्योंकि उनके हिसाब से बहू का फर्ज ससुराल वालों की सेवा करना है।

 

हद होती है किसी बात की अब इन्हें जो ठीक लगा था इन लोगों ने किया अब मुझे जो ठीक लगेगा मैं वही करूंगी कहते हुए वो अपने कमरे की तरफ भागी तैयार होकर पर्स थाम घर से बाहर निकल ही रही थी कि..

 ओ महारानी अचानक घर द्वार छोड़कर कहां चली… पीछे से सासु मां ने तरकस में रखकर तीर चलाया।

मां जी मैं अस्पताल जा रही हूं मेरे पापा भर्ती है…

 अरे दिल के मरीज हैं छोटा, मोटा लगा रहता है क्यों परेशान होती हो कल तक ठीक हो कर घर आ जाएंगे क्यों बार-बार जाने की जरूरत नहीं जाओ जाकर चाय बनाओ।

मां जी मेरे पापा की तबीयत को आप इतना हल्के में लेंगे अगर उन्हें कुछ हो गया तो…??? वह सब छोड़िए आप पहले यह बताइए आपको यह बात रात से मालूम थी फिर आपने क्यों नहीं बताई ??? और इसीलिए आप मुझे फोन पर बात नहीं करने दे रही थी…!!

अरे अब बुढ़ापा है याद नहीं रहता कौन सी बड़ी बात हो गई कमला जी अभी मानने को तैयार नहीं थी कि उनसे कुछ गलती हुई है।

इतने में शिखर ऑफिस से लौट आया सब सुन बोला अरे क्या हुआ मैंने फोन करके पूछा है सब ठीक है अब तुम यूं हंगामा ना मचाओ संडे को जाकर मिलाएंगे।

क्यों 5 दिन बाद क्यों जाएंगे मैं अभी जा रही हूं मेरे पिताजी की हालत गंभीर है और आपको भी सुबह सब पता था फिर आपने मुझे फोन करके क्यों नहीं बताया???

अरे गलती हो गई अब क्या ऐसे ही चीखती चिल्लाती रहोगी जाओ जाकर मेरे लिए कॉफी बनाओ आप लोगों को समझ में क्यों नहीं आ रहा है????? मेरे पापा हॉस्पिटल में भर्ती हैं और मां वहां अकेली है मेरी बहन भी कल पहुंचेगी उन्हें मेरी जरूरत है यहां चाय कॉफी तो कोई और भी बना सकता है।



शिखर गुस्से से शिखा पर हाथ उठाने ही वाला था कि कमरे से सब सुन केतकी बुआ बाहर आई और बोली शिखर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है बहू पर हाथ उठाते हो वह भी गलत बात के लिए तुम लोगों को अपनी गलती का एहसास है उसके पिता हॉस्पिटल में भर्ती है और तुम उनकी बेटी को उनसे मिलने से क्यों रोक रहे हो????

 अरे बुआ जी उन लोगों का तो रोज-रोज का है कभी यह हो रहा है कभी वो हमें अपना घर देखना है या उनके घर में ही पड़े रहेंगे और वैसे भी बेटी दामाद से उन्हें सेवा कराना पाप कराने बराबर है। 

वाह बेटा तुम और तुम्हारी मां जो कर रही है वह पुण्य बराबर है। सच ही कहते हैं लोग बहू कभी भी ससुराल को अपना नहीं समझ पाती क्योंकि हर रोज ससुरलवाले नए-नए हथकंडे अपनाते हैं और उसे परेशान करने के कभी दहेज मंगवाते हैं, कभी कामचोर कहते हैं, बेटा पैदा करने को बोलते हैं, मायके जाने नहीं देते हैं… जिस वजह से उसके पास सहने और घुटने के अलावा कुछ रह नहीं जाता।

 फिर वह भी ससुराल को अपना घर समझती ही नहीं है। बेटा तुम यह सब अपनी मां के कहने पर कर रहे हो तो सुनो बेटा कल को ये तो चली जाएंगी लेकिन तुम्हारे रिश्ते जरूर बिगड़ जाएंगे। तुम अपनी पत्नी की नजरों में कभी नहीं उठ पाओगे। और ये बात कमला भाभी से बेहतर कोई नहीं जानता पूछो इनसे मेरी मां ने भी इनके साथ ऐसा ही किया था कभी भी इन्हें मायके नहीं जाने देती थी। इनकी मां पिताजी का स्वर्गवास हो गया फिर भी मेरी मां ने इन्हे जाने नहीं दिया था। शायद उसी बात का बदला अब ले रही है, कुल मिलाकर जो अन्याय इनके साथ हुआ वही बहू के साथ कर रही हैं लेकिन भाभी तुम याद रखना ऐसा करके तुम शिखा के मन में अपने लिए नफरत पैदा कर लोगी और आगे उससे अपनी सेवा की उम्मीद छोड़ ही देना।

शिखर को अपनी गलती का एहसास हुआ उसने शिखा से कहा चलो अभी मैं तुम्हें अस्पताल ले चलता हूं…

अपने पिता को आईसीयू में देख उससे रहा नहीं गया आज कई बरसों बाद वो अपनी मां के सामने बिलख पड़ी और बोली सच में बेटियों की मां बड़ी असहाय होती है… बहू बनकर थक गई हूं अन्याय सहते सहते… काश!! तुम्हारा बेटा होता तो आज तुम्हारे साथ यहां खड़ा होता जैसे कि मेरे पति हमेशा सही हो या गलत अपनी मां के साथ खड़े रहते हैं…!!

 

गीता जी को समझते देने लगी कि हर बार की तरह उनकी बेटी को आने से रोका गया है आज उनके सब्र का बांध भी टूट गया और वे बोली “बहु है आपके घर की बंधुआ मजदूर नहीं जिससे हर समय गुलामी करवाते रहें” आखिर उसकी भी जिंदगी है उसके फैसले हैं अपने स्वार्थ के लिए इतना नीचे गिर गए कि सामने वाले की इच्छाओं, भावनाओं का भी सम्मान नहीं कर पाए… शर्म आती है मुझे आपको अपना दामाद कहते हुए और कमला जी आप आप तो विदाई के समय कह कर ले गई थी मेरी बच्ची को बहु नहीं बेटी बनाकर रखूंगी…. कथनी और करनी में यही फर्क होता है… काश!! आपने सिर्फ बहू बनाकर रखा होता मैंने सदा मेरी बच्ची को बड़ों का आदर करना सिखाया है इसीलिए उसने पलट कर कभी जवाब नहीं दिया मेरे संस्कारों का ये सिला दिया आपने एक बच्ची को उसके पिता से मिलने तक नहीं दिया शर्म आती है छी….!!

कहने को कुछ शेष न था… शिखर और कमला जी अपनी आंखें शर्म से झुक आए खड़े थे गलती तो बहुत बड़ी की थी जिसके लिए सबकी नाराजगी जायज थी।

आशा करती हूं मेरी रचना आपको जरूर पसंद आएगी धन्यवाद!

धन्यवाद

आपकी सखी

कनार शर्मा

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

#अन्याय

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