अन्याय के खिलाफ लड़ो – के कामेश्वरी 

सुबह से कंचन और उसके बेटे शान के बीच कहा सुनी हो रही थी। शान अपनी जिद पर अड़ा हुआ था कि आप इस घर को मेरे नाम कर दीजिए बस यही एक रट लगाए बैठा था आगे कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं था । हम दोनों तब ही बात करेंगे कहकर पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गया था। कंचन सोच रही थी कि मेरे जीते जी घर बेटे के नाम कैसे कर सकती हूँ । कल को किसने देखा है । मैं उसकी बात हरगिज़ नहीं मानूँगी। 

बहू लता अलग रसोई में खाना बनाते हुए बड़बड़ा रही थी कि यह घर पैसा अपने साथ लेकर चली जाएँगी क्या ? हम उनके अपने ही तो हैं । 

कंचन सोच रही थी कि अपने होते तो इस तरह का बर्ताव कभी नहीं करते थे। एक हफ़्ते से पीछे पड़ा है घर उसके नाम कर दूँ । 

कंचन को ससुर की बातें याद आई थी मरने के पहले उन्होंने कहा था कि कंचन बेटा अपनी संपत्ति किसी को भी मरने से पहले मत दे देना मरने के बाद तो वह उनका ही हो जाएगा । यह मेरी सीख है बेटा गाँठ बाँध कर रख लेना । 

उसे वे दिन याद आए जब वह शादी करके इस घर में आई थी । सास उसे पसंद नहीं करती थी क्योंकि वह ससुर की पसंद थी । कंचन के पिता सौरभ और ससुर किशोर दोनों अच्छे दोस्त थे । कंचन की माँ जब वह छोटी थी तब ही गुजर गई थी । सौरभ ने ही अपनी पत्नी के गुजर जाने के बाद कंचन को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया था । एक दिन दोनों दोस्त पार्क में मार्निंग वाक कर रहे थे तो सौरभ को वहीं पर दिल का दौरा पड़ गया था । सभी लोग उन्हें अस्पताल लेकर गए परंतु उनकी जान नहीं बचा सके । मरने से पहले सौरभ ने किशोर से बेटी की ज़िम्मेदारी लेने को कहा था । वैसे वह पढ़ी लिखी सुंदर सुशील थी । अपने दोस्त की आखरी इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने कंचन को अपने घर बहू बनाकर ला लिया था । 

सास को यह पसंद नहीं आया था उन्हें लगता था कि माता-पिता के न होने से वह हमेशा यहीं रह जाएगी और बेटे को ससुराल से मिलने वाले तोहफ़े नहीं मिलेंगे । इसलिए वह कंचन को बहुत ताने देती थी और पूरे घर का काम उसी से कराती थी ।किशोर अपनी पत्नी के मुँह नहीं लगना चाहते थे पर कंचन से कहते थे कि अन्याय के खिलाफ लड़ा कर बहू ऐसे ही चुप रहेगी तो तेरी सास तुझे ऐसा ही सताएगी । कंचन को लगता था कि माँ तो बचपन में ही गुजर गई थी कम से कम सास में माँ को देख लूँगी । किशोर का बेटा रोहित बहुत अच्छा था वह अपनी पत्नी को बहुत मानता था । 



कंचन और रोहित के दो बच्चे थे । बेटी सुकन्या और बेटा शान । रोहित पढ़े लिखे थे परंतु अपना व्यापार करना चाहते थे इसलिए पिता से लड झगड़कर एक किराने की दुकान को खोल लिया था दुकान ठीक से नहीं चलती थी लेकिन पिता के साथ मिलकर रहने के कारण तकलीफ़ नहीं होती थी । 

कंचन की सास को लगता था कि बेटे को अलग रहने के लिए भेजेंगे तो वह अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छे से समझेगा पर ससुर नहीं चाहते थे उन्हें मालूम था कि दुकान से होने वाली आमदनी से दो-दो बच्चों की परवरिश करने में उसे तकलीफ़ होगी। 

सास की जिद के आगे उन्हें घुटने टेकने पड़े और रोहित के परिवार को अलग घर में शिफ़्ट होना पड़ा। 

अब कंचन भी पति के साथ दुकान पर बैठने लगी । दोनों मिलकर इतना तो कमा ही लेते थे कि अपने बच्चों की ज़रूरतों को आसानी से पूरा कर सकें । 

हर रोज़ की तरह उस दिन भी कंचन पहले घर पर आ गई थी क्योंकि बच्चों के स्कूल से घर लौटने के पहले ही वह घर पहुँच कर उनके खाने पीने का इंतज़ाम करती थी । उनका होमवर्क कराना और उनकी पढ़ाई पर ध्यान आदि काम कर देती थी । 

उस दिन भी बच्चे रात को खाना खाकर सो गए थे और वह रोहित का इंतज़ार कर रही थी। उसी समय फ़ोन पर एक अननोन कॉल आता है उठाया तो वह पुलिस इंन्स्पेक्टर का फ़ोन आया था। उनके फ़ोन कॉल से उसे पता चला था कि रोहित का एक्सीडेंट हो गया है । अपने ससुर की मदद से वह अस्पताल पहुँचती है परंतु तब तक रोहित की मौत हो गई थी। 



सास के मना करने पर भी किशोर कंचन और बच्चों को लेकर अपने घर आ गए थे । कंचन अभी भी दुकान सँभाल रही थी । घर और बाहर की तथा बच्चों और सास ससुर की ज़िम्मेदारियों को निभा रही थी फिर भी कंचन को सास के तानों को सहना पड़ता था । 

इसी तरह साल बीतते गए बच्चे भी बड़े हो गए थे और सास की मृत्यु भी हो गई थी । 

किशोर ने ही रोहित की बेटी सुकन्या की शादी धूमधाम से कराया । आज की तारीख़ में वह अमेरिका में अपने पति के साथ मिलकर आराम से रह रही है । 

शान की शादी भी हो गई है वह एक बहुत बड़े मलटीनेशनल कंपनी में बहुत बड़े पोस्ट पर है और बहुत ही अच्छी पैकेज भी है । पत्नी ने एम टेक किया था पर वह घर पर रहकर अपने बच्चों की देखभाल करती है। 

शान ने अपने पैसों से एक विला ख़रीद लिया था उसका दोस्त अपना घर बेच रहा था तो उसे लगा माँ के नाम पर जो घर है उसे बेच कर ख़रीद लूँगा।  माँ है कि इस बात पर राजी नहीं हो रही थी। 

कंचन के ससुर ने उसे यह घर उसके नाम पर करते हुए कहा था कि बेटा तुम नीचे के घर में रहना ऊपर के दो घर किराए पर हैं ना उस किराए से तुम अपना गुज़ारा कर लेना । तुम्हें किसी के आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । किसी के बहकावे में मत आना बच्चों के मोह में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मत मार लेना कहते हुए गुजर गए थे ।

बेटा बहू भी साथ रहते हैं पर मजाल है कि घर खर्च के लिए वह आगे बढ़कर पैसा देता हो । 

ऐसे में अगर घर उसके नाम कर दिया तो वह कैसे जिएगी । रात भर उसे नींद नहीं आई अंत में उसने निर्णय लिया कि बेटा साथ में रहे या ना रहे मैं अपना घर उसके नाम पर नहीं करूँगी । मेरे बाद ही उसका इस घर पर अधिकार होगा मेरे जीते जी अब अन्याय नहीं सहूँगी सोच लिया । 

सुबह उसने बेटे बहू को बुलाया और अपना निर्णय सुना दिया यह भी कहा कि तुम्हें मेरे साथ रहना है तो बिना झगड़ों के रहना है अन्यथा अपने घर में रहने के लिए जा सकते हो । 

सही है दोस्तों दुनिया में आए दिन होने वाले हादसों से हमें यह सीख तो लेनी ही चाहिए कि जो पैसे या घरबार है हमारे बाद ही बच्चों को मिले। जीते जी बच्चों के मोह में पड़कर अपना सब कुछ उन्हें नहीं देना चाहिए । 

अन्याय 

के कामेश्वरी 

 

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