तस्वीर – गरिमा  जैन 

मामा जी की पुरानी हवेली जहां उनकी शादी की सालगिरह पर मैं गया था। मैं आज भी नहीं भूल सकता हूं उनके बैठक में लगी वह तस्वीर। उस तस्वीर को देखते ही उससे खिंचाव सा महसूस होने लगा।

मैं उसे देखता तो ऐसा लगता मानो आज ही बनी हो। रानी रूपमती की तस्वीर थी ।वह इतनी सुंदर सुसज्जित, प्राचीन नीलम और हीरे के गहनों से उनका रूप और निखर जाता था ।मैं गहनों की कारीगरी के बारे में ही पढ़ाई कर रहा था इसलिए विशेषकर मेरा ध्यान उनके गहने पर जरूर गया।

जब भी मैं बैठक में आता मेरी नजर उस तस्वीर पर जरूर पड़ती लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी मैं जब उस तस्वीर को देख रहा था तो मुझे ऐसा लगा कि वह धीरे से मुस्कुराई मैं चौक गया मैंने दोबारा से उसको देखा फिर मुझे लगा कि शायद मुझे धोखा हुआ हो।

आज मामा जी की 25वीं सालगिरह थी, जिसके लिए मैं उनकी कोठी पर आया था। पूरी कोठी मेहमानों से खचाखच भरी हुई थी ।मेरे ना चाहते हुए भी मेरी नजर फिर से उसी तस्वीर पर चली गई और अब मेरा कलेजा धक से रह गया।

 तस्वीर के गहने बदले हुए थे ! उसने जो हीरे और नीलम के गहने पहने थे उसकी जगह पन्ना का गहना पहना हुआ था और साथ में हरे रंग की साड़ी !

उसकी पूरी वेशभूषा उसका श्रृंगार ,उसके गहने ,सब बदल चुके थे । मैं घबरा गया तभी कंधे पर किसी ने मेरे हाथ रखा। देखा तो मामा जी थे।

मामा जी बोले” यह रानी रूपमती है बेटा हमारी पूर्वज बहुत बहादुर थी। उन्होंने दुश्मनों से बड़ा लोहा लिया था और वीरगति को प्राप्त हुई थी तब से उनकी तस्वीर बैठक में लगी हुई है।”

मैंने  कहना चाहा कि मामाजी तस्वीर में…. पर वह मेरी बात सुने बगैर ही मेहमानों के साथ बाहर चले गए। तभी वहां से उनका नौकर रामू जा रहा था।


वह बोला “भैया जी इस तस्वीर से दूर ही रहना एक दिन जब मैं इसे साफ कर रहा था तो अचानक से यह बड़ी जोरों से हंसी थी और मैं डर गया था मेरे हाथ से झारण छूट गई थी तब से जो मैं इस तस्वीर से कोसों दूर रहता हूं।”

मैं मामा जी को इस शैतानी तस्वीर के साथ अकेला नहीं छोड़ सकता था ।ना जाने क्यों लगने लगा कि उनकी जान को खतरा हो सकता है।

रात की 1:00 बज चुके थे सारे मेहमान बाहर बगीचे में थे। मैं अंदर बैठक में आया देखा मामा जी तस्वीर के आगे खड़े कुछ कर रहे हैं और तस्वीर……  रूपमती  अब वैसी नहीं दिखती थी ।वह तो एक बुड़िया का रूप ले चुकी थी , जिसके बाल बिखरे हुए थे और दांत बड़े बड़े और उसका मुंह बड़ा ही होता जा रहा था।

मेरी लगभग चीख  निकल गई । मामा जी पलटे। मैंने जल्दी से मामा जी को वहां से हटने के लिए कहा पर मुझे ऐसा लगा जैसे मामा जी तो मेरी बात सुन ही नहीं रहे हो।

मैंने पीछे से आवाज दी “मामा जी दूर हो जाए उस तस्वीर से” पर मामा जी वह तो हाथ में मोबाइल लिए ना जाने क्या कर रहे थे और तस्वीर के भाव हर क्षण बदल रहे थे ।कभी वह डरावनी बुड़िया बन जाती तो कभी जवान राजकुमारी और कभी वह अधेड़ उम्र की औरत बन जाती ।

मामा जी ने मुझे बुलाया और बोले देखो बेटा यह एप्लीकेशन कैसी लगी …..यह डिजिटल पेंटिंग मैंने कुछ दिन पहले ही मंगा कर बैठक में लगाई है।

” पर मामा जी यह तो रानी रूपमती हमारी पूर्वज थी”


” अरे बेटा यह तो कहानियां हैं जो मैंने बड़े चाव से बनाई है” देखो अब मैं सबको कैसे डराता हूं तभी सारे मेहमान अंदर आ गए और मामा जी मुझे लेकर पर्दे के पीछे छुप गए।

तस्वीर के रूप हर पल बदल रहे थे। कई लोगों के मुंह से चीख निकल गई तभी मामाजी बाहर आए और जोर जोर से हंसने लगे बोले “कैसा लगा आप लोग को मेरा यह तोहफा”

मेरी आंखें आश्चर्य से फटी हुई थी देखा उनके मोबाइल में एक एप्लीकेशन है जिसमें वही तस्वीर बनी हुई है जैसे ही वह बटन दबाते हैं तस्वीर के भाव बदलने लगते हैं कभी वह हस्ती है ,कभी रोती है ,कभी चीखती है ,कभी गुमसुम उदास हो जाती है ।यह सब देखकर मुझे अपनी बेवकूफी पर हंसी आ रही थी और मैं खड़े खड़े वहां शर्म से पानी हो रहा था। मैंने तो ना जाने क्या-क्या सोच लिया था।

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