” तकदीर “
” मम्मी मुझे माफ कर दो आज के बाद ऐसा नहीं होगा !” ग्यारह साल का दक्ष रोते हुए अपनी मां निशा से बोला।
” नहीं आज तुम्हे सबक मिलना जरूरी है इसलिए आज तुम चुपचाप यही बाहर खड़े रहो !” निशा आंख में आंसू पर चेहरे पर गुस्सा लिए बोली ।
” बेचारा बच्चा इसकी तो तकदीर फूटी है पैदा होते ही बाप मर गया और मां मिली तो ऐसी जिसे बच्चे पर जरा रहम नहीं आता !” उनकी आवाज सुन बाहर झुंड में खड़े लोगों में से एक बोला ।
“हां बहन आजकल तो कुछ माएं ही कुमाता हो चुकी है अपने बच्चों पर ही इतना जुल्म करती है !” दूसरी आवाज आई ।
” इसी मांओं को भगवान पता नहीं औलाद देता ही क्यों है !” तीसरी हाथ नचा के बोली।
” जब तक किसी के बारे में ना पता हो बोलना नहीं चाहिए , जिस बच्चे के लिए मां अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है उसे सही राह पर लाने के लिए सजा देने का हक़ भी रखती है । आज मेरे द्वारा सख्ती करने से इसकी तकदीर नहीं फूट रही बल्कि आज ये सजा ना देकर मै जरूर इसकी तकदीर फोड़ दूंगी क्योंकि आज ये घर से चोरी कर स्कूल बंक कर घूमने चला गया कल को आवारा बन जाएगा तब इसकी और मेरी दोनों की तकदीर जरूर फूटेगी !” निशा सबकी बात सुनकर बोली और रोने लगी ।
” नहीं मम्मी मै प्रोमिस करता हूं आज के बाद मेरी वजह से आपको कोई दुख नहीं होगा । आपको मुझे सजा देनी है मैं यही खड़ा रहूंगा कुछ नहीं कहूंगा पर प्लीज आप रोइए मत मैं कल से आपको अच्छा बेटा बनकर दिखाऊंगा!” मां को रोता देख दक्ष उसके आंसू पोंछता हुआ बोला तो निशा ने उसे गले लगा लिया ।
कुछ सालों बाद आज दक्ष इंजीनियर बन बड़ी फर्म में लाखों का पैकेज पा रहा है और इसका सारा श्रेय वो निशा को देता है कि उसकी मां ने उसकी तकदीर बना दी ।
संगीता अग्रवाल
#तकदीर फूटना