ससुराल की दहलीज पर कदम रखते ही मैं समझ गई थी कि ये डगर आसान नहीं होगी मेरे लिए.
आसान तो मायके में भी जीना नहीं था, जन्म देते ही मां का साया उठ गया था बुआ और भाभी की शरण में पली बढ़ी मां ने होने का दर्द हमेशा सालता रहता।
लोगों की नजर में मैं बेचारी सी थी, खुद को पढ़ने में और बाकी घर के कामों में इतना व्यस्त रखती कि बाकी बातों का असर न पड़े पर थी तो इन्सान कभी कभी अकेले में बहुत रोती, मेरे कोई सपने नहीं थे, बस सोचती कि घर वालों के सर से ये बोझ उतर जाए, जैसे यहां जी रही हूं वहां भी जी लूंगी. पर सोचा न था कि मेरी तकदीर इतनी फूटी है कि जिसके भरोसे ससुराल जा रही हूं वो ही मेरा न होगा।
शादी के बाद पहला कदम रखते ही तानों की बौछार से स्वागत हुआ, हमारे भाई की तकदीर ही फूट गयी, कहां भैया कहां ये मम्मी क्या देखा आपने इसमें न शक्ल न सूरत न रंग न रूप.
पति को अभी तक आंख उठाकर देखा ही नहीं था पर आवाज़ से ही रुह कांप गई थी मेरी, मम्मी जो करना है जल्दी करो मुझे इन रस्मों से जल्दी छुट्टी दो ताकि मैं सोने जाऊं इनकी आवाज में भी तल्खी साफ नजर आ रही थी।
सब रस्मों से फुर्सत पाने के बाद मुझे भी एक जगह आराम करने को बोल कर मांजी भी सोने चली गई.
सुबह मेरी आंख खुली तो पूरे घर में चहल-पहल मची थी दूर की एक ननद ने आकर बोला भाभी नहा लो चलकर आज आपकी मुंह दिखाई है मैं उठी खुद ही अपने कपड़े निकाले और नहाने चली गई नहा कर आई तो सामने पतिदेव से नजर मिल गई सच में बहुत खूबसूरत थे उनके मुकाबले में मैं तो कहीं भी नहीं टिकती थी मेरा कद भी छोटा था और रूप रंग भी साधारण, पति के चेहरे पर कोई भाव न देखकर मैं सिहर सी गई थी।
मैं मुझे मेरी ननंद ने जहां बैठने को कहा चुपचाप वहां बैठ गई जाकर थोड़ी देर में देखने -दिखाने का कार्यक्रम शुरू हुआ किसी ने भी मेरी तारीफ में कुछ नहीं बोला बस लोग आते गए मुझे देखकर नावेद बीते गए मैं चुपचाप सारा सामान मां जी को देती जा रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कोई कठपुतली हूं यंत्रवत चल रही हूं खैर वह रात भी आई जिसे हर लड़की बड़ा बेसब्री से इंतजार करती है मुझे नहीं पता था कि अब मुझे बहुत बड़ा धक्का लगने वाला है मुझे एक कमरे में बिठा दिया गया और बाहर से दरवाजा लगाकर मेरे नंदोई चले गए बहुत देर बाद मुझे बाहर सुनाई थी ध्यान से सुना तो पता चला कि मेरे पति को जबरदस्ती मेरे कमरे में भेजा जा रहा था, और वह आने को तैयार नहीं थे मेरा दिल बैठ जा रहा था .
पति अंदर आए जो भी सजावट थी बेदर्दी से हटा कर बेड पर लेट गए और बोले कि शादी मैंने मम्मी की खातिर की है मुझे तुममें कोई दिलचस्पी नहीं है अब तक जो मेरा दिल धीरे-धीरे धड़क रहा था उसने रफ्तार पकड़ ली थी इनकी एक-एक शब्द कानों में शीशे की तरह घुल रहे थे यह बोलते जा रहे थे और मैं सुनती जा रही थी मैंने तुम्हें इसीलिए नहीं देखा क्योंकि मुझे इस शादी में कोई दिलचस्पी थी कि नहीं पर मम्मी की जिद्द थी कि वह अपनी पसंद की लड़की लाएंगी, तुम मेरे घर को बिखरने नहीं दोगी ऐसी उम्मीद में रखता हूं तुम्हारे खर्च तुम्हारी ज़रूरतें वह मैं जरूर पूरा करूंगा पर मुझे कोई और उम्मीद मत रखना मैं किसी और को दिलो जान से चाहता हूं और किसी को मैं दिल दे नहीं सकता, मुझे लग रहा है तुम समझ रही हो, चलो सो जाओ सुबह किसी को भी हमारे बीच जो भी बात हुई है पता नहीं चलनी चाहिए और वह यह सब कहकर करवट बदल के सो गए मेरी आंखों में नींद बिल्कुल नहीं थी पर आंसू भी नहीं थे वो तो कब के सूख गए थे।
तकदीर फूटना क्या होता है यह आज मुझे समझ में आ रहा था मैं सच में अपनी फूटी तकदीर ऊपर से लिखवा कर आई थी।
हेमलता श्रीवास्तव
दिल्ली