“तुम्हारी रोज की चिक चिक से तंग आ गया हूँ। बाहर से काम करके आता हूँ तो घर में सुकून नहीं मिलता। हर समय बस शिकायत। ” राहुल ने गुस्सा होकर कहा।राहुल का बोस गुस्से वाला था उसके साथ काम करना आसान नहीं था।जैसे तैसे वह निभा रहा था साथ ही दूसरी जोब भी देख रहा था सो थोड़ी देर हो जाया करती थी परंतु पत्नी निशा कुछ भी समझने को तैयार नहीं थी।
आते ही शिकायतों का पुलिंदा लेकर बैठ जाती।”फलां पडोसन आज नयी साडी खरीदकर लाई। दूसरी पडोसन ने आज कंगन खरीदे। तुम हो कि ऐसा भी नहीं कि एक अँगूठी ही दिलवा दो।”निशा उसे खाना देकर मुँह फुलाकर सो जाती। प्यार से बात करना तो जैसे उसे आता ही नहीं था।
राहुल ने बहुत बार समझाने की कोशिश की कि निशा समझ जाए परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात।राहुल धीरे धीरे तनावग्रस्त हो गया। उसे ना तो दफ्तर में खुशी मिलती और ना ही घर में। राहुल को जीवन बेकार लगने लगा।एक दिन अपने आप में खोया राहुल आगे बढ रहा था। अचानक उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया।
उसे कुछ दिखाई नहीं दिया बीच सडक पर किसी वाहन की टक्कर से सडक पर गिर पडा। किसी ने अस्पताल पहुंचाया और उसके घर पर सूचना दी। पत्नी निशा भागते हुए अस्पताल पहुंची। राहुल ने उसे एक नजर देखा और आँखें मूँद ली। दफ्तर के ही एक साथी ने निशा को बताया कि राहुल अक्सर कहता था कि उसका दुनिया में मन नहीं लगता वह ईश्वर के पास जाना चाहता है।सब ईश्वर से खुशियाँ माँगते है और राहुल मौत माँगा करता था।यह सब सुनकर निशा को अपनी गलती का अहसास हुआ परंतु अब क्या हो सकता था? अब तो उसकी तकदीर फूट चुकी थी। उसके जीवन में अँधेरे के सिवाय कुछ नहीं था।
स्वरचित एवं मौलिक
अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश