स्वावलंबन – आभा अदीब राज़दान

दरवाज़े की घंटी बजी तो निर्मला जी ने जाकर दरवाज़ा खोल दिया । सुप्रिया थी, निर्मला जी के ब्लॉक में ही रहती है । निर्मला जी अरविंद जी वरिष्ठ नागरिक हैं, रिटायरमेंट के बाद अपना बड़ा घर बेंच कर अब इसी सोसायटी में रहते हैं । दोंनों बच्चे नलिन व इला भी तसल्ली से हैं कि माँ पापा यहाँ सुरक्षित हैं और अब काम भी सिमट सा गया है ।

वह दोंनो ही शहर से बाहर हैं माता पिता इतने बड़े घर में रहते थे उनको बहुत चिंता लगी ही रहती थी ।  माँ पापा से संग रहने का बहुत अनुरोध भी किया परन्तु अरविंद जी अपने शहर में ही रहना चाह रहे थे सो बच्चों ने ही यह व्यवस्था करी ।

अरविंद जी और निर्मला जी अपने में ही मग्न रहते हैं, कुछ लोग हैं जो उनके घर आते जाते हैं उनमें से यह सुप्रिया भी है । महीने दो महीने में दस पंद्रह मिनट के लिए आ ही जाती है । इला की आयु की ही है, भली बच्ची है ।

“ नमस्कार काकी, आप दोंनो कुशल मंगल से हैं न । बहुत दिनों से आप नीचे टहलते हुए भी नहीं दिखीं तो आज मैंने सोंचा कि आकर मिलती हूँ ।” सुप्रिया ने कहा ।

“ हाँ हम दोंनो ठीक हैं, बस तीन दिन पहले मेरी लेफ़्ट आँख का कैटरैक्ट का ऑपरेशन करवाया है । बांयी आँख का तो पिछले बरस करवा ही लिया था । शेष हम दोंनो कुशल मंगल से हैं और तुम बताओ कैसी हो ।” निर्मला जी बोलीं ।

“ काकी भोजन तो आप स्वयं ही बनाती हैं सो हफ़्ता दस दिन तो इस ऑपरेशन के बाद रसोई का परहेज़ होता है, अब सब कैसे हो रहा है ।” सुप्रिया ने पूछा था ।

“ तुम्हारे काका बना रहे हैं न, सुबह एक समय सब्ज़ी बना लेते हैं । दही होता ही है और सलाद तो मैं आराम से काट ही लेती हूँ ।” निर्मला जी ने कहा ।

“ काका जी को भोजन बनाना आता है क्या और रोटी कौन बनाता है, वह तो चावल खाते नहीं है ।” सुप्रिया ने पूछा ।



“ मैं बताती जाती हूँ वह मेरा सुन कर बनाते जाते हैं । रोटी भी वही बना रहे हैं, मैंने तो कहा भी था कि मेड से कह देती हूँ, हफ़्ता भर रोटी वही बना देगी । लेकिन तुम तो जानती हो कि तुम्हारे काका जी को जल्दी किसी से भी कोई काम कहना पसंद ही नहीं है ।

कहने हैं दो रोटी तो खानी होती हैं बन जाएँगी जितना काम स्वयं अपने हाथ से हो जाए वही भला है । कभी जब रोटी बनाने का मन नहीं करता तो सब्ज़ी के साथ डबल रोटी भी खा ली जाती है ।” निर्मला जी ने मुस्कुराते हुए कहा ।

“ मुझे कह दिया होता, भोजन मैं ही बना कर भेज देती ।” सुप्रिया ने व्यवहारिकता से कहा था ।

“ क्यों परेशान होगी तुम, आज तीन दिन तो हो ही गए बस तीन चार दिन की ही तो और बात है । इला और नलिन को भी इत्तला नहीं की इसीलिए, वह नाहक परेशान होते और भाग कर यहाँ आते । फिर ऐसी कौन सी बड़ी बात है, सब मैनेज हो ही जाता है । वह है न ऊपर वाला वही सहायता करता है ।” निर्मला जी ने सहजता से कहा था ।

तभी भीतर से काका बाहर बैठक में आ गए थे ।

“ सुप्रिया कैसी हो तुम, बैठो बैठो तुम्हारे लिए बढ़िया सी चाय बना कर लाते हैं ।” वह बोले ।

“ नहीं काका आप परेशान मत होइए, चाय फिर कभी । मुझे पता ही नहीं था कि काकी की आँख का ऑपरेशन हुआ है ।” वह बोली ।

“ कौन सी बड़ी बात है, ज़रा सा काम था निपट गया । तुम्हारी काकी बहुत बहादुर हैं भाई । देखो ना बहाने से आराम कर रही हैं और हमसे भोजन बनवा रही हैं आजकल हम इनकी ख़ातिर कर रहे हैं । आई हो तो अब कुछ देर तो बैठो हमारे संग एक कप चाय तो पीकर ही जाओ ।” वह बोले ।

“ अच्छा काका जी आप बैठिए, चाय मैं बना देती हूँ ।” सुप्रिया बोली ।

“ नहीं भाई, आज हमारे हाथ की चाय पीकर देखो “ कह के काका चौके में जाकर चाय बनाने लगे ।

सुप्रिया मन ही मन सोंच रही थी दोंनो कितने संतोषी हैं काश कल जब मैं इनकी आयु तक पहुँच जाऊँ तो इसी तरह से ख़ुश रहूँ और स्वयं हँसी ख़ुशी घर के सभी कार्य करती रहूँ । भगवान के अतिरिक्त कभी किसी से भी सहायता की दरकार न रहे ।

सुप्रिया अपने सुंदर भविष्य के बारे में ध्यान मग्न थी तब तक काका जी चाय भी बना लाए थे ।

“ लीजिए आप नारी शक्ति लोग यह गर्मा गर्म चाय पीजिए ।” ऐसा कह कर काका जी ने काकी और सुप्रिया के सामने चाय के कप रख दिए थे ।

आभा अदीब राज़दान

लखनऊ

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