स्वार्थ या प्रेम- एक सबक Blog post by Govind Gupta

अचानक तालियों के शोर से सभागार गूंजने लगा पैदल जाते हुये कुछ लगा कि देखे क्या हो रहा है मैं भी हाल में चला गया हम समझे कि कोई नेता का स्वागत हो रहा होगा पर यह क्या एक युवा सुंदर लड़की की शादी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से हो रही थी,थोड़ी उत्सुकता और बढ़ी तो भीड़ में शामिल हो गया और मेहमानों की भांति व्यवहार करने लगा जैसे मुझे निमंत्रण मिला हो,

लोग आपस मे बातें कर रहे थे,लड़की की किस्मत फूटी है जो जवान लड़को के होते एक बूढ़े व्यक्ति से विवाह कर रही है,कुछ कहने लगे शायद इस बुढ्ढे के पास जायजाद बहुत होगी,कुछ बोले बुढ्ढे ने आशिकमिजाजी में बेटी समान लड़की से शादी की,कुछ कहने लगे चलो शादी की आशाराम की तरह अय्याशी तो नही की,

फिर भी मन नही कर रहा था कि कहीं तो कुछ है जो इस लड़की ने यह कदम उठाया,



मैं हाल से वाहर गया एक गुलदस्ता लेकर नव विवाहित जोड़े के पास गया और दोनों को गुलदस्ता भेंट कर बधाई

दी साथ ही लड़की को गुलदस्ते में लगे परिचय पत्र को दिखाते हुये कहा कि समय मिले तो कॉल करना,

कॉल आयेगी इसी उधेड़बुन में एक माह बीत गया तो बात आई गई हो गई,

अचानक मोवाइल पर घण्टी पर अजनवी कॉल को देखा और रिसीव किया तो उधर से वही लड़की थी जो अब उस बुढ्ढे की अर्धांगिनी बन चुकी थी, क्या बात करना चाहते हो आप यह नम्बर क्यो दिया उसने बोलने का मौका दिये बिना ही एक बार में ही अपनी ही बात कह दी ,मैंने कहा एक प्रश्न का उत्तर चाहिये था ,शब्द पूरा करता इससे पहले ही वह बोल पड़ी मेरी शादी उस बुढ्ढे से क्यो हुई यही जानना चाहते हो तो सुनो और सबको बताना भी,

मैं सुंदर सुशील पढ़ी लिखी लड़की माता पिता की एकमात्र संतान थी माता पिता ने मेरी पढ़ाई में आना सर्वस्व लगा दिया मैं पढ़लिखकर घर आ गई ,सर्विस मिली नही तो ट्यूशन पढ़ाने लगी ,घर से वाहर निकलने पर चौराहों पर जमा युवा शक्ति तरह तरह के कमेंट पास करते हम सब सहते थे,पिता जी जिस घर मे जाते भारी भरकम दहेज की बात होती योग्यता ,सुंदरता के कोई माने नही समाज मे सिर्फ दहेज और दिखावे के ,



यही नाटक की लड़को को अच्छी लड़की नही मिल रही पर दहेज भी चाहिये ,इसी चिंता में पिता जी चल बसे माता जी ने भी एक दिन साथ छोड़ दिया अब अकेली लड़की और वह भी सुंदर तो यही युवा लड़के छेड़ने लड़े,

अपनी युवा योग्यता के बल पर,

बस मुझे इन युवा लड़को से नफरत सी होने लगी एक ऐसी पीढ़ी जो जिम्मेवारी अपने कंधों पर लेकर विना दहेज बेटी से रिश्ता कर सकते थे,बेटियों को सम्मान दे सकते थे,पर युवा शक्ति का प्रयोग निर्वल असहाय नारी पर ही कर रहे है,

ऐसे में मैंने संकल्प लिया कि दहेज प्रथा के खिलाफ ओर युवाओ को सबक सिखाने हेतु की नारी सिर्फ उपभोग की वस्तु नही  है वह भी प्रेम की भूखी है ,तिरस्कार,उलाहने,लांछन,यह ही यदि एक युवा लड़की के जीवन मे है तो फिर बुढ्ढे से ही शादी का संकल्प कर लिया,कम से कम किसी की सेवा करके मन को संतुष्टि तो मिलेगी शारीरिक सुख और मातृत्व सुख के बदले में,

ओर समाज को सबक भी यदि सभी लड़कियों ने यह अपनाना शुरू कर दिया तो न दहेज मिलेगा न घर बसेगा ओर न पीढ़ी आगे बढ़ेगी,

कहते कहते निर्झर आंसू बहने लगे उसके भी और सुनते सुनते मेरे भी पर शायद समाज चेतना शून्य है कब समझ आयेगी की दूसरे घर की बेटी भी अपनी ही तो है🌺🌺🌺🌺🌺🌺

लेखक – गोविन्द गुप्ता,

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