सुहाना सफर – विजया डालमिया

मेरी जिंदगी की एक ही कहानी है और वह कहानी है  सिर्फ तुम।इस कहानी का एक ही किरदार है और वो  किरदार हो तुम।मैं कभी-कभी सोचती हूँ कि इस सफर की मंजिल क्या है ?क्या इस रात की कोई खूबसूरत सुबह नहीं? क्या इस ख्वाब की कोई ताबीर नहीं ?अच्छा यह बताओ क्या कभी जागते हुए रात से बातें की है? कभी तन्हाई से भी ज्यादा तन्हा हुए हो?

अगर हाँ तो सच में तुमने प्यार किया है। चाँदनी अपनी लय  में कहते जा रही थी और मैं एकटक उसे देखते हुए सोच रहा था कि ….चमकती चाँदनी से भी ज्यादा दूधिया है मेरी चाँदनी ।चाँद से भी हसीन। खिलखिलाए तो एक साथ कितने ही फूल खिला दे ।भगवान ने बड़ी फुर्सत में बनाया है इसे। बस यही सब सोच रहा था कि चाँदनी ने अपनी बोझिल  पलकें उठा कर मुझे देखा और बोली ….”तुम कुछ सुन भी रहे हो या “मैंने सकपका के कहा ..”.हाँ.”.. तो वह कहने लगी ….”फिर बताओ मैंने अभी क्या कहा”?

मैं तुरंत एक्शन में आ गया व कहने लगा…. “तुम तन्हा रात ,तन्हाई और प्यार की बात कर रही थी ना “?वह मुस्कुरा उठी ।उसने फिर मुझे देखा। मेरे करीब आई। मेरा हाथ पकड़ा और कहा…..” वह चाँद देख रहे हो? उस का दाग सब ने देख लिया। फिर भी वह प्यार का प्रतीक है क्योंकि उसने किसी को अभी तक छोड़ा जो नहीं है। वही चाँद गवाह है  हमारे प्यार का ।

वादा करो मुझे अपने से दूर कभी नहीं करोगे ।मैं जी नहीं पाऊँगी। मुझे भुला तो नहीं दोगे?”आज ना जाने उसे क्या हो गया था ।मैं भी उसकी बातों में डूब गया ।उसके हाथ में अपने दूसरे हाथ का स्पर्श देकर कहा ….”कभी नहीं। तुमने ऐसा सोचा भी कैसे? क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं “?उसने कुछ नहीं कहा ।पर उसकी आँखों से दो आँसू टपक कर मेरी हथेली पर गिर गए  जिसे मैंने अपने होठों के हवाले कर उसे फिर उसी दुनिया में ले गया, जहाँ हम अक्सर मिलकर फिर से मिलने के लिए जुदा हो जाया करते थे।


कॉलेज में मेरा पहला दिन था ।मैं अपने दोस्तों के साथ गेट पर खड़ा था। तभी सामने से सफेद सलवार सूट में गोरी सी रंगत लिए एक हसीन लड़की को देखकर मैं देखते ही रह गया ।दिल से आवाज आई …..यही है वह।वो जैसे-जैसे करीब आ रही थी ,मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी।वह मेरे एकदम करीब से गुजरी और मेरी साँसे  थम सी गई ।मैं सुध बुध खोये  कितनी ही  देर खड़ा रहता अगर दोस्त नहीं कहते कि…” चल क्लासेस शुरू होने वाली है

“।क्लास में जा कर जैसे ही बैठा ,सामने की ही बेंच पर वह फिर नजर आई। दिल को तसल्ली मिली। अब मैं जितना चाहूँ उसे देख सकता था ।मैं समझ चुका था कि मुझे पहली नजर वाला प्यार हो चुका है ।कुछ तो  उमर का तकाजा। कुछ हुस्न की साजिश और कुछ ऊपर वाले की मर्जी भी रही होगी,जो यह सब हो रहा था ।अब मुझे घर जाने की इच्छा नहीं होती थी। बस दिनभर क्लास में उसे देखते रहता बगैर  यह सोचे समझे कि वह भी मुझे देखती है या नहीं ।मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ना था क्योंकि मेरा प्यार अभी तक एक तरफा ही था ।

पर मैं एहसासों के नए सफर पर अकेला नहीं था। मेरे साथ हर पल वह यानी …”चाँदनी “थी। मेरी रातें उसके ख्यालों से रोशन हो चली थी।एक  महीने के बाद एक दिन वह मेरे करीब आई और कहा….” मुझे तुमसे कुछ बात करनी है “।मैं अपलक उसे देखता रहा। उसने फिर कहा ….हैलो.. क्या हुआ “?तब मैंने कहा…. “हाँ  -हाँ ..कहिये।” वह बोली …”यहाँ  नहीं। जरा कैंटीन में आओ। मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं”। उसके लिए भले ही मैं अजनबी था ।पर मेरे लिए तो वह इतनी अपनी बन चुकी थी कि मेरे मन में कोई विचार ही नहीं आया कि वह क्या कहने वाली है ।जैसे ही मैं वहाँ पहुंचा उसने कहा ….”तुम ठीक-ठाक तो हो ना “?क्यों ?…

मैंने पूछा ।”नहीं ….जब देखो तब मुझे ही देखते रहते हो”। ..”क्यों ?…यह कहाँ लिखा है कि देखना मना है ।अच्छा एक बात बताओ यह तुम्हें कैसे पता ?तुम भी तो देखती रही होगी तभी तो…….” मेरा इतना कहना था कि वो हँसने लगी और फिर वह हँसी का दौर हमारा कभी नहीं थमा। दिन, महीने और साल बीत गए ।हमारी दोस्ती कब  प्यार बनकर गुनगुनाने लगी  हमें पता ही नहीं चला। मैं तो खैर पहली नजर में ही दिल हार बैठा था ।पर चाँदनी भी अब मेरे बगैर खुद को अधूरा महसूस करने लगी थी। पढ़ाई खत्म होते-होते चाँदनी के लिए रिश्ते आने लगे,जिसे उसने बड़ी खूबसूरती से कई बार टाला ।वजह वही…. मैं बेरोजगार और वह भी मिडिल क्लास ।छोटे-छोटे दो भाई एक बहन ।


अपने पिता से वह उन्ही का वास्ता देकर तो इंकार कर रही थी ।पर भगवान भी कभी-कभी तथास्तु बोल ही देता है ।एक दिन अचानक चाँदनी  के पापा को हार्ट अटैक आया और वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। अब चाँदनी का बहाना हकीकत का रूप ले चुका था ।उसने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया ।मैं भी जिंदगी की आपाधापी में जुगाड़ करने जुट गया ।पर हम हमेशा की तरह मिलते रहे। जैसे आज मिल रहे हैं। चाँदनी से जब भी मैंने उसकी जिम्मेदारियों में हाथ बँटाना चाहा उसने एक ही बात कही….”अगर कुछ करना ही है तो कुछ कदम साथ चलो “।

बस इसके बाद मैंने कभी कुछ नहीं कहा ।कुछ नहीं चाहा। उसकी मौन तपस्या में मैं इतना साथ भी अगर नहीं देता हूँ तो खुद से कभी नजर नहीं मिला पाऊँगा । चाँदनी हमेशा कहती है कि …”मुझे पसंद है खालीपन मेरा ,जिस का हर लम्हा तुम से भरा है। तुम्हें सोचना छोड़ दूँ तो फिर विचार शून्य  हो जाऊँगी ।मैं तो अपनी मर्जी से ही कैद हो गई हूँ तुम्हारे प्यार के घेरे में ।बिन गठबँधन के बँध गई हूँ मन के सात फेरे में।”

आज फिर मैं और चाँदनी साथ है ।हम दोनों नदी किनारे बैठे बैठे लहरों को निहार रहे हैं ।आज चाँदनी के अधरों पर शरारत भरी मुस्कान और  आँखों में नई रोशनी नजर आ रही थी ।मैं कुछ पूछता उससे पहले ही उसने एक डिबिया मुझे थमाई और कह उठी….. “माँग भरो सजना “और उस एक पल में मानो आसमान के सारे सितारे मेरी मुट्ठी में आ जगमगाने लगे ।हमारी साधना का अंत और पवित्र प्रेम के रिश्ते का प्रारम्भ । 


प्रारंभ का यह मिलन मुझे वैसा ही नजर आ रहा है जैसे क्षितिज पर धरती और आसमान का मिलन ।पर नहीं ।वह तो भ्रांति  है और यहाँ यह सब हकीकत।हमने एक दूसरे का हाथ थामा और सुहाने सफर की ओर चल पड़े।

कैसे भला जाने कोई ख्वाबों की ताबीर।

आकाश पर बैठा हुआ लिखता है वह तकदीर ।

विजया डालमिया संपादक मेरी निहारिका

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