आज फिर नमक तेज कर दिया सब्जी में? चिल्लाते हुए उदित बोला तो रश्मि कांप गई, थोड़ी सी चख के देखी,
ठीक तो है बिल्कुल..इन्हें क्या हो गया है आजकल, बात बेबात चिड़चिड़े हो जाते हैं, उसने सोचा।
दिल कहीं और रहता है क्या? उसके पास आए ही उदित ने कहा तो रश्मि की आँखें भर आई..अनाड़ी होने का
आरोप सुन लेती थी वो लेकिन उसकी निष्ठा पर प्रश्न??
वो झुंझला गई..आप चाहते क्या हैं? पूरी कोशिश करती हूं मैं पर आपके आंख तले कुछ आता ही नहीं, जी भर
गया क्या मुझसे?
हां!! भर गया..वो गुस्से से बोला, एक तो गलती करती हो, ऊपर से जुबान भी लड़ाती हो, उदित का हाथ उठ
गया था रश्मि पर,चीखते हुए बोला..ऐसे रहना है तो अपने मायके चली जाओ..सब अक्ल ठिकाने आ
जाएगी।
रश्मि स्तब्ध थी और शॉक्ड भी,रोज रोज की किल्लत से अच्छा है कि वो उदित के दिल की कर ही दे।चुपचाप
अपना सामान बांध कर अगले दिन उदित के ऑफिस जाते ही वो निकल गई अपने मायके।
शाम को उदित घर आया,खाली घर अच्छा नहीं लगा उसे,एक चिठ्ठी छोड़ गई थी रश्मि जिसमें उसने माफी
मांगी थी उदित से कि वो उसे खुश नहीं रख पाई लेकिन आगे अब कभी परेशान नहीं करेगी उसे।
उदित ने सिर झटक दिया.. ऊंह! चार दिन नहीं रह पाएगी मेरे बिन,दौड़ी चली आएगी।
लेकिन ये क्या?उदित खुद कहां रह पा रहा था रश्मि के बगैर..रात के खाने में ब्रेड,सुबह नाश्ते में ब्रेड वो भी जली
हुई..सारा घर दो दिन में कबाड़ खाना बन गया,गंदे कपड़ों के ढेर,अजीब सी महक और नितांत सन्नाटा…उदित ने
सोचा कि मैं पागल हो जाऊंगा रश्मि के बिना…सच में एक औरत का घर में होना इतना जरूरी होता है, मैं आज
समझा…”घर की मुर्गी दाल बराबर” वाली बात समझ बैठा था मैं।
अगले ही दिन जा पहुंचा ससुराल अपनी।दरवाजा रश्मि ने ही खोला था,एक पल को उदित की बुझी सूरत
देख कर पिघल उठी वो लेकिन अगले ही क्षण अंदर चली गई बिना बोले।
उसकी मां से उदित ने कहा..मां जी! मैं बहुत शर्मिंदा हूं,रश्मि से माफी मांगना चाहता हूं।
देखो बेटा! पति पत्नी का रिश्ता बहुत गहरा होता है और विश्वास पर टिका होता है,तुमने उस विश्वास को
तोड़ा है,वो बहुत आहत है इस बार।
प्लीज!मुझे एक कोशिश करने दें,रश्मि मुझे माफ कर देगी।
फिर उदित के बहुत नाक रगड़ने पर रश्मि का दिल पसीजा,उदित ने माना कि वो अपनी प्यारी पत्नी को हल्के
में ले रहा था,जो उसकी सबसे बड़ी गलती थी,तुम्हारी चुप्पी को मैंने तुम्हारी कमजोरी समझा,प्लीज मुझे माफ
कर दो,वो रश्मि के पैरों में जा बैठा।
रश्मि ने उसे उठाया और गले से लगाते बोली..आपकी जगह वहां नहीं, मेरे दिल में है।
उदित रश्मि के गले लगा सोच रहा था कि रिश्तों में जीतना किसी से हारना या उसे हराना नहीं होता,ये तो बड़ा
मीठा एहसास होता है जिसमें बस विश्वास,सम्मान और प्यार ही होता है।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,दिल्ली
#नाक रगड़ना