सुबह का भूला (भाग 2)- नीलम सौरभ

शुरू-शुरू में उससे बार-बार गलतियाँ हो जातीं और उसे सासू माँ के कोप का भाजन बनना पड़ता। साड़ी पहन कर काम करना उसके लिए संसार के सबसे कठिन कामों में से एक था, अतः वह सलवार कमीज पहन कर सिर पर दुपट्टा लपेट लेती। अनुराधा जी को यह भी बहुत नागवार गुजरता। सिर से पल्ला हटते ही वे उसे तुरन्त टोकतीं।

एक ही घर में साथ रहते घर के कुछ लोगों से बात न करने, उनके सामने न पड़ने को टोका जाना बहुत दिनों तक स्तुति  को बड़ा असहज लगता रहा। किसी तरह वह घर के माहौल और रीति-रिवाजों के अनुसार ख़ुद को ढालने की कोशिश कर भी रही थी, मगर सास का तानाशाही रवैया उससे सहन नहीं हो रहा था। थोड़े समय में ही ऐसे घुटन भरे माहौल के कारण उसे अपनी नयी-नवेली शादीशुदा जिंदगी बोझ लगने लगी थी।
स्तुति की जेठानी धरा बहुत शान्त स्वभाव की थी, अगर सास दिन को रात कह दें, तब भी कभी बहस न कर तुरन्त हाँ में सिर हिलाती। उससे सास बेहद ख़ुश रहतीं। शेष लोगों के मनोभाव, स्वभाव व व्यवहार स्तुति अभी तक कुछ नहीं जान पायी थी, क्योंकि सासूमाँ के अनुशासन और नियमों की दीवार बीच में थी, किसी से बातचीत ही नहीं होती थी।
अब तक ऐसे ही समय बीत रहा था और जिंदगी की गाड़ी किसी तरह घिसटते हुए चल चल रही थी मगर आज के इस अकारण अपमान से स्तुति का दिल टूट गया। इससे पहले अपने पति सिद्धांत से वह कई बार इन मुद्दों पर बात करने की कोशिश करके देख चुकी थी। हर बार उसका लगभग एक ही जवाब होता था, ____”मैं तो क्या, पापा और भइया भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकते…क्यों घर का शान्त माहौल बिगाड़ने पर तुली हो डियर…भाभी को देख कर कुछ सबक लो न, किस बात की कमी है तुम्हें!”

मन ही मन पक्का निश्चय करके स्तुति ने अलमारी खोली, एक ट्रॉली बैग निकाल कर अपने कुछ कपड़े, कागज़ात और जरूरी सामान रख कर पैक करने लगी।
____”बस और नहीं घुट-घुट कर मरना है यहाँ…मायके बात करूँगी तो कोई भी नहीं समझेगा, सब मुझे ही समझदारी दिखाने को बोलेंगे। पहले तो इस जेल से निकल कर वहाँ घर पहुँचती हूँ पहले…फिर सोचूँगी कि आगे क्या करना है। इतनी तो पढ़ी-लिखी और लायक हूँ ही कि अपना बोझ आराम से उठा सकती हूँ, वो भी सम्मान के साथ!”
इससे पहले कि वह घर के पिछले गेट से निकल कर पीछे वाली सड़क पर टैक्सी रुकवा पाती, कन्धे पर टँगे हैंडबैग में रखा उसका मोबाइल फोन बज उठा। एक बार के लिए तो उसका मन हुआ कि पहले स्टेशन पहुँच जाये, तब ही किसी का फोन उठाये लेकिन जब फोन बार-बार, लगातार बजता ही रहा, हार कर उसने कौन इतनी शिद्दत से कॉल कर रहा है, देख लेना मुनासिब समझा।
देखा तो सिद्धांत की कॉल थी।

वह दुविधा में पड़ गयी। पहले टैक्सी पकड़े कि कॉल उठाये। तभी कॉल फिर से आ गयी। पता नहीं क्यों इस बार उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी अतः उसने धड़कते दिल से कॉल रिसीव कर लिया।
दूसरी तरफ सिद्धांत बेहद घबराया हुआ था, बदहवासी में उससे ठीक से बोला भी नहीं जा रहा था, ऊपर से जहाँ से वह फोन कर रहा था, पता नहीं नेटवर्क की कोई समस्या थी या कुछ और, आवाज़ कट-कट कर आ रही थी।

पूरा ध्यान लगा कर स्तुति सुनने-समझने की कोशिश कर रही थी…और जैसे ही उसे बात समझ में आयी, क्षण भर के लिए वह मूर्ति बनी खड़ी रह गयी…फिर ट्रॉली बैग वहीं पटक कर भागती हुई वापस घर में घुसी। वह चिल्लाती जा रही थी,
____”मम्मीजी…पापाजी…धरा दीदी….जल्दी आइए मम्मीजीsss…सुनिए पापाजीsss…कहाँ हैं आप लोग मम्मीजी….!”
वास्तव में फोन पर सिद्धांत ने किसी तरह स्तुति को बताया था कि बड़े भइया सुदर्शन को हार्टअटैक आ गया है और वे दूर कहीं रास्ते में गिर कर पड़े हुए हैं।
छोटी बहू की ऐसी चीख-पुकार सुनते ही अनुराधा देवी के साथ ही ससुर भुवन जी और जेठानी धरा भागे चले आये। और बात समझते ही सबके पाँवों तले से ज़मीन खिसक गयी, जान हलक में आकर अटक गयी। अब क्या होगा…धरा ने तो रोना ही शुरू कर दिया।

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सुबह का भूला (भाग 3)

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नीलम सौरभ

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