सुबह का भूला (भाग 3)- नीलम सौरभ

___”कुछ कीजिए न मम्मीजी, पापाजी…इनको कुछ भी हुआ तो मैं भी जिन्दा नहीं बचूँगी मम्मीजी…कुछ करो न छोटी…सिद्धांत भइया को फोन करो ना जल्दी..!”
घर का बड़ा बेटा सुदर्शन यानी सिद्धांत का बड़ा भाई आज पुश्तैनी गाँव के लिए निकला हुआ था। हमेशा की तरह अपने फार्महाउस के बहुत सारे कामों को देखने के लिए। 38 वर्षीय सुदर्शन न केवल पूर्ण रूप से स्वस्थ था, बल्कि आज सुबह जब वह घर से चला था, तब तक कोई भी परेशानी नहीं थी उसे।

शहर वाले घर से फार्महाउस वाला गाँव 40-45 किलोमीटर ही था। पूरा परिवार कभी-कभार जाता रहता था और घर के सभी पुरुष तो अक्सर ही आना-जाना करते रहते थे।
अभी सिद्धांत ने जो बताया उसके अनुसार सुदर्शन फॉर्म-हाउस के खेतों का सारा काम व जरूरी हिसाब-किताब देखकर बाइक द्वारा हमेशा की तरह आराम से वापस लौट रहा था कि उसे एकाएक बेचैनी लगने लगी, दम घुटता सा लगने लगा। उसने सुनसान पड़ी सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बाइक रोक कर जब मोबाइल फोन से कॉल करके सिद्धांत को किसी तरह अपनी हालत बताई तो उसने मामले की गम्भीरता भाँपते ही भइया से अपना गूगल लोकेशन भेजने को कहा।

सुदर्शन बड़ी मुश्किल से अपने होश सँभालते हुए वैसा करने में सफल तो हो गया था मगर अब उसकी हालत पल-पल बिगड़ती जा रही थी। बहुत तकलीफ के साथ अटक-अटक कर उसने कहा कि अब मेरे होश गुम हो रहे हैं और मैं यहाँ सड़क के किनारे कच्ची ज़मीन पर लेट गया हूँ। सुनते ही छोटे भाई का कलेजा मुँह को आ गया।
सिद्धांत की नौकरी हाउस डेवलपिंग के बड़े कॉन्ट्रैक्टर के ऑफिस में थी, जहाँ से कभी भी लोकेशन या साइट देखने कर्मचारियों को पचास-सौ किलोमीटर तक भी जाना पड़ता था। उस दिन भी वह अपने बॉस के साथ दूर किसी जगह पर फँसा हुआ था जब भइया सुदर्शन का कॉल उसके पास आया।

बॉस को जैसे ही उसने सब कुछ बताया, उन्होंने तत्काल अपनी गाड़ी वापस शहर की ओर मोड़ ली मगर फिर भी घण्टे भर से पहले वे उस जगह पर पहुँच नहीं सकते थे। रास्ते में जैसे ही सिद्धान्त के दिमाग़ ने थोड़ा काम किया, उसने तत्काल स्तुति को फोन लगाया था और घबराहट के कारण हकलाते हुई किसी तरह से सारी बात बतायी थी।

अभी जबकि घर में कोहराम-सा मच चुका था, स्तुति ने धीरज धरते हुए ख़ुद को सँभाला फिर उसने सिद्धांत को हिम्मत बँधाते हुए भइया की गूगल लोकेशन ट्रेस करके अपने मोबाइल पर तत्काल भेजने को कहा।
घर में सुदर्शन की कार खड़ी थी लेकिन ससुरजी को चार-पहिया चलानी नहीं आती थी। वे ख़बर सुन कर स्थिति की गम्भीरता का अंदाज़ा लगते ही बदहवासी में अपना स्कूटर निकालने को भागे।

स्तुति ने बिजली की फुर्ती से एक थैले में पानी की बोतल, कुछ दवाइयाँ व कुछ ज़रूरी सामानों को रखा और कार की चाबी उठा कर तेजी से पोर्च में खड़ी कार की ओर भागी। आनन-फानन में गाड़ी स्टार्ट करके चिल्लाते हुए उसने ससुर जी को आवाज़ लगायी,
____”पापाजी, जल्दी से स्कूटर छोड़ इधर आइए, बैठिए गाड़ी में…जल्दी कीजिए, समय बहुत कम है!”
ड्राइविंग सीट पर बैठकर स्टेयरिंग संभालते हुए उसने कार के सामने का उनके साइड वाला गेट खोल दिया था।
जब तक सुदर्शन की लोकेशन ट्रेस करके दोनों वहाँ पर पहुँचे, तब तक वह बेहोश हो चुका था। उसे ऐसे निःचेष्ट पड़े हुए देख कर भुवन जी को काठ मार गया। ____”ओह्ह, सब कुछ ख़त्म…हाय मेरा बेटा!”
वे भी तुरन्त वहीं ज़मीन पर गिर पड़े। बेहोश बेटे को पकड़ कर कलपने लगे।
जबकि स्तुति ने जैसे ही अपने जेठ की हालत देखी, थोड़ी जाँच-पड़ताल के बाद वह समझ गयी कि भइया को हार्ट-अटैक आया है। बिना समय गँवाये उसने भुवन जी को सहारा देकर एक तरफ बिठाया फिर सुदर्शन के बगल में बैठ कर उसे सीपीआर देने लगी जिसके लिए वह अपनी कॉलेज लाइफ से पूर्ण प्रशिक्षित थी।

कुछ देर तक लगातार कई बार सुदर्शन की छाती को दबाने के बाद उसने अपनी चुनरी का एक छोर उसके मुँह पर रख दो-तीन बार अपने मुँह से फूँक मार कर उसे कृत्रिम साँस दी। फिर थोड़ी देर तक सीने को पसलियों के ऊपर बार-बार दबाया और फिर से कृत्रिम साँस दी। आठ-दस बार ऐसा लगातार दोहराते ही सुदर्शन की रुकी हुई साँस लौट आयी। तुरन्त ही उसने ससुर जी की सहायता से उसे उठाकर बिठाया और साथ लाया हुआ पानी घूँट-घूँट कर पिलाया। सुदर्शन का सिर सहलाते हुए वह कहती जा रही थी,
____”सब कुछ ठीक हो जाएगा भइया…बिल्कुल नहीं घबराना है आपको…हम हैं न आपके साथ…सँभालिए अपने-आपको!”
सुदर्शन की हालत जरा सँभलते ही उसे कार की पिछली सीट पर ससुर जी की गोद में सिर रख कर लिटाने के बाद उसने फिर से ड्राइविंग सीट सँभाल ली।

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सुबह का भूला (भाग 3)

सुबह का भूला (आखिरी भाग )- नीलम सौरभ

सुबह का भूला (भाग 2)

सुबह का भूला (भाग 2)- नीलम सौरभ

नीलम सौरभ

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