सोच – कमलेश राणा

मुग्धा जी बैंक में ऑफिसर हैं,,उनके पति भी अच्छी पोस्ट पर कार्यरत थे,,बड़ा ही प्यारा परिवार था,,दो बच्चे,,एक बेटा और एक बेटी ,,

बहुत प्यार था दोनों के बीच,,सुबह ,,,शाम ,,जब भी देखो ,,साथ घूमते या चाय पीते,,कभी बाहर बैठकर गप्पें लगाते नज़र आ ही जाते,,

कॉलोनी में सबसे बड़ा अच्छा व्यव्हार था उनका,,,हर समय सब की मदद के लिए तैयार रहते,,

अचानक एक दिन वज्रपात हुआ,,ऑफ़िस से घर लौटते समय मुग्धा के पति का ऐक्सीडेंट हो गया,,और वो पत्नी और बच्चों को रोते-बिलखते छोड़ कर चले गये,,,

उस समय बेटी रौनक 10 साल की और बेटा अभय 5 साल का था,,मुग्धा को दुनिया से वैराग्य होने लगा ,,,सभी समझाते पर,,बस एक ही रट लगाए रहतीं,,मैं अकेले बच्चों को कैसे पालूंगी,,

बात सही भी थी ,,नौकरी भी जरूरी थी,,परिवार अहमदाबाद में  था,,दोनों की पोस्टिंग झांसी में थी,तो यहीं मकान बना लिया था,,,

कॉलोनी के सभी लोगों ने उन्हें दिलासा दिया कि आप निश्चिन्त रहें,,आप की अनुपस्थिति में हम सब बच्चों का ध्यान रखेंगे,,

धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे,,रौनक ने अच्छे नंबरों से इंटर की  परीक्षा पास की,,इसके बाद इन्दौर से कोई कोर्स किया,,और दिल्ली में किसी अच्छी कंपनी में जॉब मिल गई उसे ,,,

मुग्धा बहुत खुश थी,,बेटा भी हाईस्कूल में आ गया था,,बेटी को एक बार दिल्ली जा कर शिफ्ट करा आईं,,,अब बार-बार तो छोड़ने लेने आ-जा नहीं सकती थीं,,जब भी मौका मिलता,,रौनक माँ के पास आ जाती ,,

लोग कानफूसी करने से नहीं चूकते,,रात में आती है,,पता नहीं क्या कर रही है,,अकेली रहती है,,जितने मुंह उतनी बातें,,

अब कुछ तो लोग कहेंगे,लोगों का काम है कहना,,

उसके साथ के लड़के अभी तक पढ़ाई ही कर रहे थे,,

दिनोंदिन रौनक का प्रमोशन होता जा रहा है और आज वह अच्छी पोस्ट पर है,,सैलरी भी अच्छी मिल रही है,,माँ और भाई की भरपूर मदद भी करती है,,

कोई कसर नहीं छोड़ती माँ और भाई की खुशी के लिये,,जब भी मन करता है तीनों घूमने निकल जाते हैं,,कभी हिलस्टेशन तो कभी कोई तीर्थयात्रा,,

बड़ी खुशी मिलती है फेसबुक पर उनके खुशगवार पलों के फोटो देखकर,,

उसकी कामयाबी ने सब के मुंह पर ताले  लगा दिये हैं,,,जो लोग एक समय उस पर उंगली उठाते थे ,,आज अपने बच्चों को उसका उदाहरण देते हैं,,

वक़्त के साथ लोगों की सोच कैसे बदलती है,,ताज्जुब होता है,,

वैसे भी पुरानी कहावत है कि “चढ़ते सूरज को सब नमस्कार करते हैं “,,आज के परिप्रेक्ष्य में भी यह सही है

कमलेश राणा

ग्वालियर

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