आज ऑफिस में काम ही इतना ज्यादा था कि श्रुति थक के चूर हो गई थी ऐसा मन हो रहा था घर पहुंचते ही कोई इलायची वाली गरम गरम चाय बना कर दे दे फिर थोड़ी देर कमर सीधी कर लूं…..घर में घुसते ही ड्राइंग रूम से बातें करने हंसने की आवाजे सुनाई पड़ी श्रुति समझ गई वैभव ऑफिस से आ गए हैं…. बहू आज चाय में थोड़ी अदरक कूट कर डाल देना …श्रुति को देखते ही मां बोल उठीं…मेरे बेटे को सर्दी लग गई है मौसम बदल रहा है बहुत ध्यान रखना चाहिए वैभव तुमको ….लो पहले ये गरम गरम कचौरी खाओ तब तक चाय भी आ जायेगी फिर चाय पी कर थोड़ी देर शांति से सो लेना…..दिन भर इतना काम कर कर के थक जाते हो…
….थकी हारी श्रुति सासू मां के अपने बेटे से जताए जा रहे इस दुलार को सुन सुन कर मन से भी थकी जा रही थी…बरबस ही अपनी मां का दुलार अपना मायका उसे ना चाहते हुए भी याद आ गया आंखें छलक आई उसकी….!
कितना भेद भाव क्यों किया जाता है….बेटा बहू में!!बहू भी तो इंसान ही होती है ….फिर भी बहू से ही सारी उम्मीदें की जाती है कि सास जी को ही अपनी मां नहीं समझती…अपनी मां का अपने मायका का ही गुणगान करती रहती है…!
आहत क्षुब्ध श्रुति चाय बनाते बनाते अपनी मां के स्नेहिल स्पर्श की मीठी कल्पना में खो गई थी कि अचानक….. “आज चाय नहीं मिलेगी क्या….की तेज आवाज से वर्तमान में लौट आई और जल्दी से सबके लिए चाय छानने लगी थी।
श्रुति तुम भी चाय पी लो कुछ खाया कि नहीं ….ससुर जी का ये स्नेह जैसे चिढ़ा गया था सासू जी को….अरे तो खा ही ना लेगी …जो खाना होगा बना लेगी क्या मैंने रोक लगाई है…मुंह बना कर उनका कहना और प्लेट की अंतिम कचोरी को उठाकर मुंह में डालना श्रुति की चाय पीने की इच्छा को ही खत्म कर गया था।
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अपने कमरे में आकर बैठी ही थी कि ऑफिस से फोन आ गया था….श्रुति आज के फॉरेन वाले क्लाइंट की सारी डिटेल्स तत्काल भेजो…. तो वो तुरंत लैपटॉप लेकर वैभव के बगल में बैठ गई थी…वैभव भी अपने ऑफिस की कल की मीटिंग की तैयारी कर रहा था ….ऑफिस का काम भी कभी कभी घरेलू उलझनों को दरकिनार करने में कितना मददगार होता है आज ही उसकी समझ में आया था…!
अरे श्रुति यहां आ जाओ जल्दी … मां की उतावली सी आवाज सुनकर …”आई मां.. कहती वो जल्दी से अपना काम छोड़कर बाहर आई तो देखा वैभव के मित्र सपरिवार उसकी ननद टीना के रिश्ते की चर्चा करने आए हैं…अरे मां वैभव को बुलाइए उनके बिना चर्चा कैसे हो .पाएगी…..श्रुति ने अपने अधूरे पड़े ऑफिस काम को याद करते हुए कहा और तुरंत वैभव को बुलाने जाने लगी तो मां ने तुरंत हाथ पकड़ के रोक दिया और फुसफुसा कर बोली …अरे अभी अभी तो ऑफिस से थका हारा घर आया है थोड़ा चैन लेने से उसे…तब तक तू यहीं बैठ कर बात कर और डिनर की तैयारी कर ले डिनर पर ही वैभव को भी बुला लेंगे तब तक वो अपना जरूरी काम निबटा लेगा नहीं तो उसका बॉस नाराज हो जायेगा समझी..!
लेकिन मां काम तो मेरा भी बहुत अर्जेंट है अभी ही बनाकर भेजना है मुझे भी नहीं तो मेरे बॉस भी नाराज हो जायेंगे …आपकी आवाज सुनकर मैं अपना काम अधूरा छोड़ कर आई हूं …मैं वैभव को भेज देती हूं तब तक मैं दस मिनट में अपना सारा काम पूरा करके आती हूं…अधीर सी श्रुति का वाक्य पूरा होने के पहले ही मां भड़क सी गई…अरे अब तुम तो वैभव से बराबरी करने लग गई हो उसके काम से क्या तुम्हारे काम की कैसी तुलना…दिन भर तो ऑफिस का ही काम करती रहती हो अब घर का भी कुछ काम तुम्हे करना चाहिए कि नहीं…पहले तुम इन आगंतुकों का ख्याल करो फिर अपना ऑफिस के काम का बहाना करते रहना…!
आप लोग बैठिए वैभव थोड़ा जरूरी काम कर रहा है अभी आ जायेगा…अरे कितनी पढ़ाई की है उसने रात रात भर जाग के…कितने संघर्ष से उसे ये नौकरी मिल पाई है कोई छोटी मोटी नौकरी तो है नहीं अपनी मेहनत से ही इस पद तक पहुंचा है …काम नहीं करेगा तो आगे प्रमोशन कैसे मिलेगा….!मां बहुत गर्व से आए हुए मेहमानों के सामने अपने बेटे का बखान कर रही थीं…पर वहीं खड़ी सुयोग्य बहू की योग्यता का बखान करना हमेशा की तरह भूल गईं थीं…!
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वैभव का काम जरूरी है मेरा काम जरूरी नहीं है उसका बॉस नाराज हो जायेगा इसकी परवाह मां को है मेरा बॉस भी नाराज हो जायेगा इस बारे में सोच ही नहीं रही हैं…. बहू बेटे के बराबर की पढ़ी लिखी भी चाहिए बेटे के बराबर की नौकरी वाली भी चाहिए …फिर बेटे के ही बराबर की स्वतंत्रता और अधिकार में भेदभाव क्यों..!!श्रुति खाना बनाते हुए एक बार फिर से वर्षों से की गई अपनी मेहनत पढ़ाई लिखाई अपना कैरियर संवारने में अपने मां बाप की अनवरत मेहनत सपोर्ट ….मायके में मनचाहा करने की स्वतंत्रता के सुखद एहसास में खो गई थी।
क्या कह रहे हो शादी के बाद माता पिता साथ में ही रहेंगे…..अरे ये कैसे!!. …ये लड़का शरद तो बाहर नौकरी करता है ना इसीलिए तो ये रिश्ता पसंद किया है मैंने अपनी दुलारी बेटी के लिए…..टीना की नौकरी भी उसी शहर में है जहां शरद की पोस्टिंग है…शरद के मां पिताजी उसके साथ नहीं रहते हैं इसीलिए तो टीना के लिए सही रहेगा …सास ससुर साथ में रहेंगे तो बिचारी नौकरी कैसे कर पाएगी सौ झंझट में फंस जायेगी ….वैसे भी घर के काम करने की उसकी आदत ही कहां है अभी तो उसकी पढ़ाई खत्म हुई है ….मैने तो उसे हमेशा अपनी पढ़ाई लिखाई और कैरियर पर ही ध्यान देने को कहा घर के काम कभी नहीं करवाए …!मां की बात से श्रुति का ध्यान भंग हो गया था..!
नहीं मां मैं सोचती हूं शादी के बाद नौकरी नहीं करूंगी शरद तो इतना कमा ही लेते हैं मुझे नौकरी करने की क्या जरूरत है….अचानक टीना के बोलने से मां बिफर गईं….क्यों नहीं करेगी नौकरी …. ऐसी नौकरी किसको मिल पाती है…!
नहीं मां शरद के मां पिता जी तो बेटा बहू के साथ में ही रहेंगे तो मैं नौकरी नहीं कर पाऊंगी….!मुझको भाभी जैसा नहीं बनना है….भैया से कहीं ज्यादा योग्य हैं भाभी पर देखो शादी के बाद आप लोगों के साथ रह कर क्या हाल हो गया है उनका!!!मेरा भी यही हाल होगा इसकी कल्पना से ही मुझे झुरझुरी सी होने लगती है…कहते हुए टीना अपनी भाभी श्रुति के पास जाकर उनसे लिपट गई..!
….मां …भाभी भी तो भैया के बराबर की ही नौकरी करती हैं….मैं अगर इनकी जगह होती तो मेरी तो अपनी सास से रोज लड़ाई होती …भैया की थकान वाजिब है भाभी की थकान कामचोरी का बहाना..!भैया का ही तो घर है ये वो कौन से घरेलू काम करते हैं….!सारी अपेक्षाएं भाभी से ही क्यों मां…!ऐसे माहौल में या तो मैं नौकरी ही नहीं करूंगी या घर से अलग रहने लगूंगी …..आवेश से टीना की आवाज कांपने लगी थी।
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मां अवाक रह गई ….तस्वीर का दूसरा पहलू इस तरह उनके सामने खुल कर आ गया था जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी..!अचानक उन्हें श्रुति की जगह अपनी खुद की बेटी टीना दिखाई देने लग गई थी…जैसे सारी अनकही अनदेखी परते खुल गई ..!
दूसरे दिन शाम को फिर से श्रुति ऑफिस से आई ….फिर से आज वो बेतरह थकी हुई थी …फिर से आज उसने अपने कदम किचन में चाय बनाने की ओर बढ़ाए…. कि अचानक मां ने आकर स्नेह से उसका हाथ पकड़ लिया उसे ड्राइंग रूम में ले आईं वैभव और टीना के पास ही जबरदस्ती बिठाया …लो बेटी पहले तुम टीना के साथ कचोरी खा लो तब तक मैं तुम्हारी पसंद की इलायची वाली चाय बना कर लाती हूं…सब साथ में पियेंगे …।
श्रुति को आज सबके साथ बैठ कर सासू मां के स्नेह से पगी चाय पीते हुए अपनी मां के स्नेह का स्वाद मिल गया था…स्नेह का ऐसा अनोखा जुड़ाव और सम्मान महसूस कर उसका दिल भीग गया था….और टीना अपनी भाभी को कचौरी खिलाते हुए भाभी की दिली खुशी को महसूस कर रही थी ….पहली बार श्रुति को अपने मायके जैसी दिली अनुभूति हुई थी।
समय बदल रहा है फिर भी पता नहीं अभी भी अधिकांश घरों में जाने या अनजाने ही सही बेटा बहू में भेदभाव बरता जा रहा है….कई बार आने वाली नई बहू का आवश्यकता से ज्यादा ख्याल दुलार तो कई बार उपेक्षित बर्ताव और उसकी क्षमता से ज्यादा अपेक्षाएं उसे सामान्य नहीं रहने देती है….अनजाने में किया यही भेदभाव कालांतर में आक्रोश और विद्रोही व्यवहार का कारण बन जाता है…!
#भेदभाव
लतिका श्रीवास्तव