स्नेह का बंधन – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

कल तक अम्मा के चेहरे पर बड़ी सी बिंदी सिंदूर की गाढ़ी रेखा लाल चूड़ियों से भरी कलाई पैर में पायल बिछिया और महावार और सीधे पल्ले की कभी लाल पीली हरी साड़ी उनके मुख मंडल की आभा को द्विगुणित कर रही थी, आज दस दिनों तक जीवन मृत्यु के बीच चलने वाली रस्साकसी में बाबूजी की हार..

उफ्फ कैसे देख पाऊंगी अम्मा का चेहरा.. पथरी के ऑपरेशन हुए अभी दस दिन तो हुए हैं अम्मा के… पैंतालीस साल का साथ… कितने आड़े तिरछे ऊबड़ खाबड़ पगडंडियों से गुजरते हुए इस मुकाम पर पहुंचे हैं जहां सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर सिर्फ अपने लिए कुछ वक्त चुरा लें…, पर नियति के आगे किसकी चली है.. बड़ी भाभी छोटी भाभी दोनों भाइयों के चीत्कार से पूरा वातावरण दहल गया है.. बाबूजी ने परिवार को ऐसे अटूट #स्नेह के बंधन #में बांध दिया है कि…. बाबूजी का मृत शरीर बड़ी दीदी के इंतजार में रखा हुआ है…

    बड़ी दीदी दोनो भाभियां अम्मा बाबूजी के निर्जीव देह पर गिर गई हैं… उनका करुण क्रंदन पत्थर को भी पिघला दे…. सभी रो रहे हैं उनके लिए…

छोटे जीजाजी लोगों की मदद से सबको हटा रहे हैं… राम नाम सत्य है कि गूंज वातावरण में व्याप्त हो गया है…. सबको रोता बिलखता छोड़ बाबूजी अपनी अनन्त यात्रा पर निकल गए… दोनो भाभियां दीदी को पकड़ कर रो रही हैं हम बिना बाप के हो गए दीदी… ससुर नहीं थे हमारे पिता थे बाबूजी.…अब अम्मा का श्रृंगार विहीन चेहरा कैसे देख पाएंगे… बड़ीदीदी रोते रोते उन्हें हिम्मत दे रही है अम्मा को अब आप दोनो को हीं संभालना है…

        बाबूजी भाई बहन में सबसे बड़े थे… क्लर्क की नौकरी से तीनों भाइयों को पढ़ाया… दो बहनों की शादी की… तीनों भाई अच्छे पोस्ट पर हैं… बहनों की शादी भी अच्छे संपन्न नौकरी पेशा लड़कों से की… अम्मा ने भी बाबूजी को अपना पूरा सहयोग दिया… बाबूजी बाबा की सेवा भी अंतिम समय में मन से किया.. स्नेह और प्यार का दरिया जो बाबूजी के दिल में बहता था अम्मा ने कभी सूखने नहीं दिया…

           वक्त के साथ बाबूजी अपने बच्चों की जिम्मेदारियों को पूरी करने के लिए पार्टटाइम काम एक कपड़े की दुकान पर करने लगे… तीनों भाई अच्छे नौकरी में थे पर कभी बाबूजी उनसे अपने बच्चों के लिए कुछ सहयोग कभी नहीं मांगा… उन लोगों ने भी कभी पलट के नहीं पूछा भईया कुछ जरूरत है तो बताना.. हद तो तब हो गई जब बड़े भइया को कोचिंग के लिए दिल्ली में छह महीने रहना था, वहीं छोटे चाचा का फ्लैट था…

कोचिंग के एकदम बगल में… उन्होंने कभी आगे से नहीं कहा यहीं रहेगा मेरा भतीजा… अम्मा पहली बार बाबूजी पर बिफर पड़ी… देखिए हमलोगों ने बेटे की तरह पढ़ाया हर जरूरत पूरी की…और आज… बाकी शब्द आंसुओं में खो गए…. बाबूजी ने अम्मा को कहा मै अपने बेटे के पढ़ाई और परवरिश के लिए काफी हूं…

इतना सब होने के बाद भी बाबूजी छोटे चाचा के हार्ट के ऑपरेशन के समय पंद्रह दिन उनके साथ रहे… घर से हॉस्पिटल तक… क्योंकि चाची भी बैंक में नौकरी करती थी… ऐसे थे बाबूजी… अपनी दोनो बहुओं को पलकों पर बैठा कर रखते थे… स्निग्धा और स्नेहा को किचेन में जाकर बोलते बेटा नाश्ता किया..

नाश्ता करो और अपने काम पर निकलो.. घर के बचे काम मैं और तुम्हारी अम्मा मिलकर कर लेंगे… देर हो जाएगी ऑफिस जाने में निकलो बेटा… बहुओं के ऑफिस जाने के बाद बाबूजी अम्मा के साथ मिलकर बचे हुए काम करवाते.. अम्मा के एतराज करने पर कहते रिटायर हो गया हूं तो मन लगाने के लिए ये सब करता हूं….

तुम मुझे रोका मत करो मलकिनी… बाबूजी अम्मा को शुरू से हीं मलकिनी हीं कहते थे…. अम्मा के चेहरे पर जरा भी उदासी दिख जाती तो बाबूजी परेशान हो जाते.. बीते साल की गर्मियों की बात है अम्मा को बुखार हो गया.. दोनो बहुओं को सोने के लिए भेजकर रात भर माथे पर ठंडे पानी की पट्टी देते रहे…

अम्मा जब बेखबर सो गई तो कुर्सी पर हीं बाबूजी ने रात गुजार दी.. पोता पोती को जान में लगा कर रखते थे बाबूजी… स्निग्धा जब मां बनने वाली थी रोज शाम को उससे पूछते क्या खायेगी बेटा.. और बाजार जाकर लाते… नारंगी और अनार का जूस अपने हाथों से निकाल कर देते… स्निग्धा भी बाबूजी को अपने पिता से ज्यादा मानती थी…

अक्सर कहती लोग कहते हैं अच्छा पति भाग्य से मिलता है पर मुझे तो सास ससुर खासकर बाबूजी बहुत किस्मत से मिले हैं… किसी चीज में ससुराल वाली पाबंदी नहीं… नौकरी करने के लिए भी बाबूजी ने हीं प्रोत्साहित किया… स्नेहा तो पहले से जॉब करती थी .. बाबूजी भाई बहन की शादी और पढ़ाई में अम्मा के सारे जेवर बेच दिए थे…

रिटायरमेंट के मिले पैसों से अम्मा के गहने के साथ स्निग्धा और स्नेहा के लिए भी झुमके खरीद कर लाए… ऐसे थे बाबूजी… अपने बच्चों में #स्नेह के बंधन #को ऐसे अटूट प्रेम के धागे से बांध दिया था की अपने परिवार समाज के लिए एक मिशाल बन गए थे… बहुओं को इतना रोता देख हर कोई बाबूजी के स्नेह प्यार और मधुर स्वभाव की चर्चा कर रहा था..

आज जब सास ससुर को बेटे बहु पारी बांध के अपने पास रखते हैं ऐसे में बाबूजी का परिवार एक मिशाल है…अम्मा को पकड़े बहु बेटी हिम्मत बंधाते बंधाते खुद बिलख पड़ती है…. अम्मा की सुनी मांग खाली ललाट और कलाइयां उफ्फ…

Veena singh

VM

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