सिर्फ मूर्ति नहीं ,घर की नारी  भी देवी है – सुधा जैन

वसुधा ने अपने परिवार में अपनी मां में जीवन भर एक मर्यादा की  सीमा रेखा में अपने आप को चलते हुए देखा था। प्रतिदिन सुबह उठना, घर के काम समय पर करना, सर पर पल्लू रखना, पूजा करना, आने वाले मेहमानों का यथोचित स्वागत करना, सास ससुर के निर्देशों का पालन करना, बच्चों की अच्छी परवरिश करना, शाम को संध्या आरती करना, रात को सोते समय सासू मां के पैर दबाना, इन सब मर्यादाओं का उसने  पालन किया और यह सब चीजें वसुधा ने भी अपनी आंखों से देखी और इसी मर्यादा को संजोए हुए उसने ससुराल में प्रवेश किया ,और अपने जीवन को उसी मर्यादा में डालकर अपने जीवन के सुख को खोजने लगी। कभी-कभी मर्यादित जीवन जीते हुए उसे घबराहट भी होने लगती। लेकिन परंपराओं और संस्कारों से युक्त जीवन को ही वह जीवन की मर्यादा मान रही थी।

 उसके बेटे  रमन ने  शिक्षा के लिए बाहर जाकर प्रगति के नए सोपान देखें। नवजीवन को देखा और प्रगतिशील फैशन डिजाइनर आराध्या को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का फैसला लिया। माता पिता ने अपने बेटे की भावनाओं का सम्मान किया, और आराध्या को बहू के रूप में स्वीकार किया। आराध्या बहुत अच्छी लड़की है। लेकिन उसके लिए जीवन की मर्यादा के मायने अलग है। अपने प्रगति के साथ अपने पति को भी प्रगति की राह पर बढ़ाना ,अपने ऑफिस में अपनी जॉब के अनुसार वस्त्र पहनना, घर के कामों के लिए मेड लगाना ,अपने जीवन के  निर्णय खुद लेना, और “लोग क्या कहेंगे” कि सोच को छोड़कर अपना जीवन खुद जीना, अपनी खुशी के मायने खोजना,  अपने सरल व्यवहार से  सभी के दिलों को जीतना ,चरण स्पर्श भले ना करें ,पर अपनी आंखों से ही स्नेह ,सम्मान देना।

 जब कभी भी परिवार में  बैठकर ऐसे प्रसंग पर कोई चर्चा हो तो बहुत ही सहजता से अपनी बात कहना कि जो भी जिस ड्रेस में कंफर्टेबल हो, वही पहने, इसमें कोई बुराई नहीं है, अगर सभी  परंपरागत  मर्यादाओं को ही मान लेते तो महिलाएं प्रगति के नए आयामों को नहीं छु पाती ।

चाहे वह देश सेवा हो ,राजनीति हो, चिकित्सा हो, व्यवसाय हो अभिनय हो, हर क्षेत्र में जब हम किसी मर्यादा की सीमा रेखा को पार करते हैं, तभी किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। आराध्या के अनुसार आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, और चरित्र ही सबसे बड़ी मर्यादा है। अपने बच्चों के साथ वसुधा भी जीवन की मर्यादा के नए मायनों को समझ कर बहुत खुश  है। आज की प्रगतिशील पीढ़ी मर्यादा के नए आयाम के साथ आगे बढ़ रही है ,और वसुधा को लगता है, यह पीढ़ी रियल डायमंड है।   आराध्या को संगीत का भी शौक है ,अपने ऑफिस के बाद अपना वाद्य यंत्र लेकर संगीत सीखने के लिए भी जाती है । रेलवे स्टेशन के पास  संगीत परिसर में एक  अम्मा जी देवी मां की मूर्तियां बेच रही थी. , आराध्या ने सोचा जिस तरह से हम मूर्ति वाली देवी मां की प्रशंसा करते हैं, पूजा करते हैं ,वैसे ही घर की नारी का सम्मान कर ले तो यह दुनिया स्वर्ग बन जाए और किसी प्रकार की अवांछित घटनाएं ना हो।

#मर्यादा 

सुधा जैन

 मौलिक

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