अनंतना आज बहुत खुश थी। आखिर हो ही गया कोशिका का भी शुभ विवाह। अनंतना जो शुरू से ही थोड़ी अंतर्मुखी थी, की शादी बड़ी मुश्किल से हुई थी।
वो बात अलग थी, कि उसके बाद अब ठीक ही रहा। पर उस देखा दिखाई ke दौरान का उसका अनुभव इतना खराब था कि खुद की बेटी होते ही उसे उसके विवाह की चिन्ता हो गई।
आज जब कोशिका विदा हो चली गई तो अनंतना को याद करने लगा अपना सफ़र। राजस्थान के छोटे से शहर अलवर में उच्च ब्राह्मण कुल में जन्मी अनंतना। परिवार में शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति और पढ़ने लिखने का माहौल था तो अनंतना भी उसी में पली बढ़ी। इक्कीस बरस की अनंतना सर्वगुण संपन्न थी,
पांच फुट चार इंच हाइट, गेहुआं रंग, नयन नक्श में भी सब ठीक, एम. ए. पास, घर बाहर सभी प्रकार के कामों में निपुण। समयानुसार पिताजी लड़का देखने लगे। पहली बार जब लड़के वाले देखने आए तो मां ने अनंतना को चाय लेकर बुलाया, वहां पहले से ही लड़का, उसकी बहन, माँ, पिताजी और एक बुआ साथ बैठे थे।
कोई अनंतना को खड़ी करके देख रहा, कोई कहे रंग जरा दबा हुआ है, कोई कहे आगे क्यों नहीं पढ़ी। आखिर वो सब उसे देख, बाद में जवाब देने का कह चले गए।
और फिर ये सिलसिला चलता ही रहा।किसी को कुंडली में गुण कम मिलते लगते, कहीं लेन देन पर बात अटक जाती तो कहीं पढ़ाई लिखाई या रूप में लड़के के मुकाबले लड़की उन्नीस, तो कहीं आँखें कैरी हैं ,इन्हीं पर कुछ न कुछ अटक जाता और इसी तरह चार साल निकल गए।
अनंतना पच्चीस की हो गई तो घर वालों को शादी की उम्र निकलती लगने लगी। अनंतना की सखी- सहेली से लेकर चचेरी – ममेरी सब बहनों का रिश्ता हो गया, रह गई अकेली अनंतना जिसके शुभ विवाह की घड़ी थी कि आ ही नहीं रही थी।
गाहे बगाहे दादी भी कह ही देती कि पता नहीं किस जन्म का कर्जा मांगती है ये लड़की कि मेरे बेटे के सिर से उतर ही न रहा। वैसे भी बाहर वालों की बजाय घर वालों की बातें मन पर ज़्यादा असर करती हैं तो अनंतना का आत्मविश्वास गिरने लगा और वो दबती चली गई। जिन सिलाई,कढ़ाई, घर बाहर के कामों में वो अच्छी थी,
उसमें भी उसका मन न लगता और अनमने ढंग से करने पर उत्कृष्टता न आती तो रहा सहा हुनर भी जाता रहा। कहने को कोई कमी नहीं थी उसमें पर अब उसे लगता कि कोई ऐसी खास बात भी तो नहीं है। वैसे भी बाहर की लड़ाइयों से मुश्किल है, अपनी अंदरूनी लड़ाइयों को जीतना।
जैसे तैसे कर एक जगह बात बनी, और घर वालों ने बिना कोई ज़्यादा पूछताछ, मंगल मुहूर्त देख अनंतना को ब्याह कर निपटा दिया।आखिर हो ही गया अनंतना का शुभ विवाह।
माँ दादी ने सत्तर सीख सिखा कर भेजी, बड़ी मुश्किल से बात बनी है, रिश्तेदारों से बना कर रखना, सास ससुर की सेवा करना, घर का काम सलीके से करना, पति के मन को जो पसंद हो वही कहना, अब वही तेरा घर है, मायका बस तीज त्यौहार का ही है।
अनंतना को लगा यही बहुत बड़ी बात है कि उसकी शादी हो गई। वह सुबह जल्दी उठ सारा साफ सफाई का काम निपटाती,फिर पूजा पाठ कर सबकी चाय बनाती, फिर नाश्ता, खाना, कपड़े, बर्तन, पति की चाकरी, आए गए की मेहमाननवाजी यानि की सुबह शाम चक्करघिन्नी सी लगी रहती, न वो किसी से कोई मदद मांगती, न कोई करता।
अब सबको लगता वह संभाल तो रही ही है अब अच्छे से और सबकी ऐसी ही आदत हो गई।उसके दो बच्चे भी हो गए पर स्थिति जस की तस थी।पर अब सबको लगने लगा कि सारा काम और जिम्मेदारी अनंतना की ही है। अनंतना भी थककर चूर हो रही होती, तब भी लगी रहती, कभी तबीयत खराब होती तब भी, एक टैबलेट लेकर लगी रहती।
पर घर में कोई तारीफ के दो बोल न बोलता, सबको लगता सब करते हैं वो कौनसा नया कर रही है। एक कारण यह भी था कि कभी उसने ही खुद की क़दर न की, जो कोई और करता।
शरीर और मन की ताकत की भी एक सीमा होती है तो अब उसे कभी कमर दर्द, कभी सिर दर्द, कभी कुछ और मतलब कुछ न कुछ हुआ ही रहता। ज़्यादा बातचीत की वह आदी थी नहीं, बिना कहे किसी को दिखता नहीं। तबीयत खराब में भी उसे कोई मदद को या जी भर बोलने को न दिखता तो वो टूटने लगी। बच्चों का न पूछना उसे ज्यादा खटकता।
अब वो शुभ विवाह जो बहुत मुश्किल से हुआ था, अब उसे बोझ लगने लगा। जब उसकी बेटी कोशिका उसे देखती, सुनती तो उसे मन में भी यही बैठ गया कि औरत के लिए शादी का अर्थ है सिर्फ जिम्मेदारी और काम।नतीजा यह हुआ कि वर्षों बाद तेईस वर्षीय पढ़ी लिखी, अच्छी खासी कमाऊ बेटी ने माँ बाप के सामने शादी न कर अकेले रहने का ऐलान कर दिया।
कारण पूछने पर बताया कि मम्मी के जैसी ज़िंदगी नहीं चाहिए मुझे, मम्मी की तो मजबूरी थी कि वो जॉब नहीं करती थी। मैं तो कमाती हूँ सो अकेले अपना जीवन अपने तरीके से जीऊंगी। उसका ठीकरा भी अनंतना के सिर ही फूटना था।
आज घर में इसी बात पर खूब क्लेश हुआ, दोनों बाप बेटी शादी न करने की बात पर आमने सामने हो गए।सबको अनंतना की परवरिश में ही खोट लग रहा था।
अनंतना बीच बचाव करने लगी तो इस दौरान कोशिका ने भी कहा ,”मम्मी देखो अपनी शक्ल आईने में, सेहत में उम्र में पापा से दसों साल बड़ी लगती हो आप। इस सब घर के काम धंधे में आप अपना ख्याल रख पाई जो मुझे सलाह देने चली हैं।”
लड़ाई झगड़ा कर कोशिका तो चली गई, दूसरे शहर जहां जॉब करती थी पर आज सालों बाद अनंतना ने अपने आप को ढंग से शीशे में देखा, सफेद बाल, चेहरे पर झुर्रियां, फटी एड़ियां और होंठ, थुलथुला शरीर , बेकरीने से लिपटी साड़ी। बहुत देर तक सोच विचारकर उसने पहले मुंह धोया, फिर पास में एक पड़ोसन के साथ वेलनेस सेंटर जाकर अपना डाइट चार्ट बनवा, योग क्लास की फीस भरी और मार्केट जाकर कुछ नए कपडे लाई।
सुबह उठकर सुबह की चर्या निपटा ,योगा क्लास गई। घर आई तो थोड़ा माहौल गर्म था पर पहले दिन की गरमा गर्मी के कारण उसने देखा कोई बोला नहीं, चाय बनाकर पी रखी थी पतिदेव ने।
एक एक का खाना बनाने की बजाय एक ही बार में बना, एक कामवाली की मदद से बाकि काम निपटा, अपना शाम का घूमने का रूटीन सेट कर लिया। दो महीने के अंदर ही उसने अपनी सेहत, शक्ल और मन में फर्क महसूस किया।घर का माहौल थोड़े दिन गरमाया,फिर सबको आदत हो गई।
इस बार कोशिका दिवाली पर घर आई तो अनंतना को देखकर चौंक गई। “मम्मी!! बकमाल बदल गई हैं आप तो।” आश्चर्यचकित हो उसने कहा। बातों बातों में अनंतना ने उसे समझाया कि कोई भी रिश्ता अगर बराबरी और समझदारी से अपनी जरूरतों का ध्यान रखते हुए
निभाया जाए तो वो बोझ नहीं बनता। अब वह खुद की सेहत बेहतर होने से और समय निकालने की वजह से पति को भी समय देती, जिस से उनका आपसी सामंजस्य भी अब शादी के पच्चीस साल बाद बेहतर हो रहा था।
उसी का परिणाम था कि आज दो साल बाद कोशिका ने कहा कि मम्मी मुझे अपना सहकर्मी विशेष पसंद है और मैं उस से शादी करना चाहती हूँ, पर वह विजातीय है। पति ने न नुकूर की, पर अनंतना ने कोशिका का पूरा साथ दिया और आखिर मान मनौवल के बाद हो ही गया अनंतना की कोशिका का भी शुभ विवाह।
आज विदाई के बाद अनंतना समझा रही थी बेटे को कि समय बदल गया, तरीके बदल गए, सोच बदल गई पर शुभ विवाह तो अब भी ज़रूरी है क्योंकि ये सिर्फ एक सामाजिक जिम्मेदारी या परम्परा नहीं बल्कि साथ है दो परिपक्व लोगों की साझेदारी का, बराबर हिस्सेदारी का, प्रेम का, उम्र भर का साथ निभाने के वायदे का । पीछे खड़े पतिदेव जहां अपनी खूबसूरत, समझदार पत्नी पर गर्व महसूस कर रहे थे वहीं अनंतना अपने ही अनंत आनंद में आनंदित थी।
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)