मित्रता और पद – संजय मृदुल

मंच पर परिचय का सिलसिला जारी है, एक एक कर परिवार आते जा रहे हैं और सबके सम्मुख अपने और परिवार के बारे में बता रहे हैं।

स्कूल के पुराने छात्रों का मिलन समारोह चल रहा है। रजत जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में देश विदेश में निवास कर रहे पूर्व छात्रों का उत्साह देखते ही बनता है। जो इसी शहर में रह गए वो गर्मजोशी से सभी का ध्यान रख रहे हैं।

मंच पर उद्घोषक की आवाज गूंज रही है, “अब हम आमंत्रित कर रहे हैं हमारे साथी नितिन को जो हमारे बैच में राज्य के टॉपर रहे।”

बड़ी ठसक के साथ नितिन ने परिवार के साथ मंच पर पदार्पण किया, और अपने बारे में बताने लगा। स्कूल के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई, फिर एमबीए और उसके बाद कहाँ कहाँ नौकरी की, और आज वह मुम्बई में एक्सपोर्ट इम्पोर्ट की कम्पनी में साउथ एशिया रीजन के रीजनल मैनेजर के पद पर कार्यरत है।”

दर्शकों में से किसी ने टिप्पणी की “इसकी गर्दन आज भी वैसे ही तनी रहती है लगता है, घमंडी!”

सभी मित्रों को उसकी उपलब्धि पर गर्व था, उससे मिलने को लालायित थे सभी।

परिचय का दौर समाप्ति पर था। मंच से आवाज आई “अब हम उसे बुलाने जा रहे हैं जिस के प्रयासों से आज हम यहां इकट्ठा हैं। दोस्तों के दोस्त, मित्रों के लिए हमेशा उपलब्ध रहने वाले, हम सबमें सब से धनी लेकिन जमीन से जड़ें जिसकी जुड़ी हैं वो शख्स, हमारा मित्र विनय।”

साधारण किन्तु सुरुचिपूर्ण कपड़े पहने अरुण के आगमन पर जो तालियां बजी, कि हाल गूंज उठा।

“मैं जो भी आज हूँ, इन्ही मित्रों की वजह से हूँ। पढ़ाई में पीछे की पंक्ति में रहने वाला मैं, आज भी आप सब से बहुत पीछे हूँ जीवन में। मेरी जो भी कमाई है वो आप सब हैं।” इतना कह वो नीचे उतर गया।

सभी खाने पीने में व्यस्त हो गए साथ ही गपशप भी चल रही थी। 

नितिन ने एक मित्र से पूछा – “ये अरुण आज भी नहीं बदला। आज भी सबसे पीछे है लगता है।क्या करता है ये? नौकरी तो इसके बस की थी नहीं, कोई दुकान खोल कर बैठा होगा।” इतना कह जोर ठहाका लगाया उसने।

साथ खड़े मित्र ने अनायास अरुण को आवाज देकर बुलाया ” भाई अरुण! नितिन पूछ रहा तुम आजकल क्या कर रहे हो?”




अरुण कुछ जवाब देता उससे पहले ही उसी ने ही नितिन से कहा -“जिस कम्पनी में तुम हो न नितिन, ये अरुण उस कम्पनी का मालिक है।”

“तुम्हे क्या बहुतों को नहीं पता क्योंकि ये मुम्बई से नहीं यहीं से संचालित करता है कारोबार अपना। और वहां इसके भतीजे सम्हालते हैं। इसे अपना शहर छोड़कर जाना पसंद नहीं।”

नितिन के लिए ये चौंकाने वाली खबर थी। उसे शायद ये बात कभी पता भी नहीं चलती मुम्बई में।

अरे छोड़ो यारों! अरुण ने माहौल हल्का करते हुए कहा। यहां सब मित्र हैं ना मैं मालिक न नितिन कर्मचारी। यहां सब बराबर।

अरुण के हटने के बाद मित्र ने बताया कि कैसे अरुण ने छोटी सी नौकरी से शुरू कर चांवल की आढ़त से बढ़ते हुए इतना बड़ा व्यापार खड़ा किया।

नितिन के हलक से थूक नहीं उतर रही थी। जिस अरुण की कमजोर स्थिति, पढ़ाई, रहन सहन के चलते स्कूल के समय हिकारत से देखता आया था आज वही उसकी कंपनी का मालिक?

उसे अपनी पढ़ाई, ओहदा सब कुछ अरुण की योग्यता के सामने फीका लगने लगा।

#दोहरे_चेहरे

©संजय मृदुल

मौलिक एवम अप्रकाशित रचना

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