आज मेरी एक छात्रा ने मुझे एक कहानी भेजी,,मुझे लगा कि उसकी इस प्रतिभा को सबके सामने आना ही चाहिए,,
वह चाहती थी कि मैं इस कहानी की भेजूं,,पर मैं जानती हूँ एक लेखक होने के नाते कि ,,जब कोई आपकी कहानी को अपना नाम देता है तो कितना बुरा लगता है,,
मैंने उसे बहुत प्रोत्साहित किया,,किन्तु अभी झिझक दूर नहीं हो पा रही उसकी,,अत: मैं उसके द्वारा भेजी गई कहानी को ग्रुप में डाल रही हूँ,,,
उसका नाम है जया तौमर,,
पुरानी तस्वीरों को देखते हुए पत्नि की आँखें छलक आई…पति ने पूछा क्या हुआ..?
आँसू पोंछते हुए बोली…शादी के बाद तो मेरा सब कुछ बदल गया…
“मैं,मैं रही ही नहीं।”
घर से लेकर मेरा रूप और श्रंगार सब मेरे बदलाव की गाथा गाते हैं..
और तुम्हारा तो कमरा तक जस का तस है।..
सारे बदलाव केवल मेरे ही लिए..??
पति धीरे से मुस्काते हुए बोला..ऐसा नहीं है प्रियतमा!..
हाँ,माना कि मेरे रूप-सज्जा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ पर तुम्हारा ये सोलह शृंगार केवल तुम्हारा रूप ही नहीं निखारता बल्कि मुझे हर पल तुमसे जुड़े होने का अह्सास दिलाता है!
तुम्हारे माथे पर सजी ये बिंदी,मेरी नज़रों को तुम्हारे चेहरे पर टिका देतीं है,और मेरा दिन इसी बिंदी की भाँति गोल होकर तुमसे शुरू होकर तुम पर ही खत्म होता है!..
तुम्हारी आँखों का ये काजल,तुम्हारे मन में बसे मेरे अक्स को बुरी नजरों से बचाता है,और मैं पुलकित हो जाता हूँ!..
ये ‘मंगलसूत्र’ बाँध देता है मेरे नाम को तुमसे;और मेरा नाम,पहचान सब तुमसे पूरी मानी जाती है,यहां तक कि अब तुम्हारे बिना तो मैं किसी सफल पूजन-यज्ञ का भी अधिकारी नहीं रहा!..
ये खनकती चूड़ियाँ थाम लेतीं हैं मेरे मन को; और इनकी खनक भीड़ में भी मेरे चंचल मन को तुम्हारी ओर खींच लाती हैं!..
तुम्हारे पैरों की ये पायल;मोड़ देती है मेरे कदमों को मेरे घर की ओर,जो पहले अनजान राहों की सैर के आदी थे!..
जब लौटता हूँ घर तो घर महका हुआ नज़र आता है,और चहक उठता है मेरा ख़ामोश आँगन तुम्हारी खिलखिलाहट से!…
ये मेरा कमरा जिसकी जगह तो नहीं बदली है,पर इसका कोना-कोना बदलजितना सुख किसान को अपनी लहलहाती फसल को देखकर मिलता है,, उससे कहीं अधिक सुख एक गुरु को अपने शिष्यों को आगे बढ़ते हुए देख कर मिलता है,,
गया है; आइने से लेकर तिजोरी तक, सब तुम्हारे सुपुर्द है। मैं तो अपना रुमाल तक तुम्हारे बिना ढूंढ नहीं पाता,जब तुम न हो तो ये वीरान हो जाता है!..
और तुम्हारा ये ‘सिंदूर तिलकित भाल’..मेरे जीवन पर भी मेरा अधिकार छीन लेता है,और मेरे तन,मन,धन सब में तुम बराबर की अधिकारी हो..ये मुझे हरपल याद दिलाता है।
मैं कल्पना भी नहीं कर पाता उस दिन की जब मेरी विदाई तुम्हारे सामने हो!..
.मेरा हर निर्णय तुम्हारे सहयोग बिना अधूरा है।..
मेरा घर,परिवार, और मेरा नाम तुम्हारा ऋणी रहेगा प्रिये!,..तुमने इसे अपनाकर इसे नया जीवन,नयी उमंग दी है!.
“मैं तो मैं होकर भी मैं ना रहा प्रियतमा!”
कमलेश राणा
ग्वालियर