श्रवण कुमार – अनुज सारस्वत

“बेटा तीन साल हो गये कब आयेगा तू घर अपने मेजर से बोल ना छुट्टी के लिये “

सुखबीर की माँ ने फोन पर अपने पैरामिलिटरी फोर्स में भर्ती बेटे से कहा

“माँ आ जाऊंगा अभी मेरी ड्यूटी हरिद्वार महाकुंभ में लगी है एक महीने के लिए “

कुंभ का नाम सुनते ही माँ की आँखे चमक उठी और बोली

“बेटा यह तो बहुत अच्छा है तू जरूर स्नान कर लेना ऐसा संयोग नही मिलता मेरे तो शरीर साथ नही देता , तू नहा लेगा तो लगेगा मैने ही स्नान कर लिया “

“अरे मां कोई नही आपको बुला लुंगा

‘अच्छा माँ रखता हूँ ज्यादा बात नही कर सकता ड्यूटी पर” इतना कहकर सुखबीर ने फोन रख दिया

तभी रिसीवर पर आदेश प्राप्त हुआ

“बीटा-1 टुकड़ी रेलवे स्टेशन की तरफ रवाना हो भीड़ को कंट्रोल करने के लिए और सभी सैनिक अपने पूरी कर्तव्य निष्ठा से सेवा दें “

आदेश सुनते ही सुखबीर स्टेशन की तरफ चल पड़ा ड्यूटी के लिए


गाड़ी आयी अगर भीड़ उतरने लगी एस वन कोच कै बाहर बहुत भीड़ थी सारे यात्री निकल गये थे पर वहां भीड़ जमा थी प्रशासन को भीड़ नही रखनी थी ताकि दूसरी गाड़ियों की भीड़ को कंट्रोल किया जा सके सुखबीर वहां गया तो देखा करीब 40-50 वयोवृद्ध महिलायें और पुरुष वहां थे जो बड़ी मुश्किल से कोच से उतरे थे और चलने में लगभग असमर्थ थे ,स्टेशन पर व्हीलचेयर खत्म हो चुकी थी और यात्रियों के लिए, सुखबीर ने जब यह दृश्य देखा तो तुरन्त रिसीवर पर संदेश दिया कि बीटा-1के सारे 70 सैनिक S1 कोच के सामने मिलें पल भर में 70 सैनिक पहुंच चुके थे सुखबीर ने तुरंत उन वयोवृद्ध लोगों में से एक महिला को गोदी में उठा लिया बाकि सैनिक इशारा समझ चुके थे सभी सैनिकों ने एक एक करके सबको उठाया और स्टेशन से बाहर ले जाने लगे

“बेटा तुम्हारा नाम क्या है ?”

सुखबीर ने जिस महिला को उठा रखा था उसने पूछा

“माताजी मेरा नाम सुखबीर है”

माताजी-“बेटा तुम्हारे जैसी औलाद सबको दे भगवान हम लोग तो चिंता में ही पढ़ गये थे ,जैसे तैसे तो चढ़े थे लेकिन यहां बहुत भीड़ होने से घबरा गये,हम सब वृद्धाश्रम में रहते हैं बेटा जीवन के बाकी बचे दिन वहीं काट रहे,इसी दौरान कुंभ पढ़ गया तो सोचा गंगा मैया का आशीर्वाद ले लें,अपनी औलाद तो अपनी रही नहीं ,बेटा तुम जुग जुग जियो “

इतना कहते हुए उसकी आंखे भर आयी तब सुखबीर बोला

“आप चिंता न करें माताजी आपको स्नान कराने की व्यवस्था हमारी है अब “

तब सब लोगों को बाहर निकालने के बाद अपने मेजर से बात करके गाड़ी का इंतजाम कराया और हर की पौड़ी पर सब लोगों को सुरक्षित स्नान की व्यवस्था कराया ,सारे वो वृद्ध लोग उन सैनिकों के सर पर हाथ रख कर खूब आशीर्वाद दे रहे थे ,यही कहकर की सबको ऐसी औलाद मिले


मेला अधिकारी को यह सब मालूम हुआ तो उन्होंने सुखबीर को बुलाकर सम्मानित किया और स्टेशन पर उसकी ड्यूटी को उन

सभी बटालियन के साथ शिफ्ट किया एक्स्ट्रा व्हीलचेयर का इंतजाम भी कराया

शाम को सुखबीर ने फोन पर अपनी माता जी को सारी बात बतायी ,तब माताजी ने कहा

“बेटा अब तुझे कुंभ नहाने की जरूरत नही हैं ,तूने तो हजारों कुंभों का स्नान कर लिया है ,और तू मेरा नही उन सभी माताओं का बेटा है,मानव सेवा निष्कामसेवा सभी सेवाओं से बड़ीहै इससे बड़ा धन कुछ नहीं”

“अरे नहीं माँ यह तो मेरी ड्यूटी थी ” इतना कहकर बात को हल्के में लिया सुखबीर ने और चल पड़ा अगली शिफ्ट के लिए

अगले दिन सारे मीडिया में फोटो छपी जिसमें सुखबीर सबसे आगे माताजी को उठाये और बाकी सैनिक पीछे सबको उठाये चल रहे थे और स्लोगन था

“श्रवण कुमार सैनिक “

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित)

 

 

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