सहयोग – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

सारंधा , तुम इतनी जल्दी सोने के लिए पहुँच गई, कमाल हो गया भई ! आज सास बहू की रात्रि- बैठक  नहीं हुई क्या ?

मेरे सिर में बहुत दर्द है, प्लीज़ चुप रहो । ज़रा पैरों पर कंबल डाल देना …मैं सो रही हूँ । 

इतना कहकर सारंधा आँख बेद करके लेट गई । सौरभ को  समझ नहीं आया कि कल तक रात ग्यारह बजे के आसपास आने वाली सारंधा आज नौ बजे ही अपने कमरे में आकर कैसे लेट गई ।  ख़ैर उसने सोचा कि हो सकता है सचमुच सिरदर्द हो वैसे शादी के छह साल के सफ़र में जितना उसने सारंधा को पहचाना उसे सिरदर्द तभी होता था जब वह  गुस्से से दुखी  होती थी । 

अगले दिन सौरभ को फिर से सारंधा का मूड कुछ उखड़ा-उखड़ा सा लगा । रात को भी उसने अपना रसोई का काम समेटा और गुड़िया को लेकर लेट गई । मम्मी ने सौरभ से पूछा-

सौरभ! तूने सारंधा को कुछ कह तो नहीं दिया , दो दिन से काफ़ी चुप-चुप सी है …. 

मैं तो ख़ुद हैरान हूँ मम्मी! कल तो सिरदर्द कह रही थी । आज गुड़िया के साथ ही लेट गई । 

रमा बेटे के कमरे में पहुँची और बड़ी बहू सारंधा को हल्की सी आवाज़ लगाई पर कोई जवाब न पाकर बेटे से बोली —-

लगता है कि गुड़िया को सुलाते-सुलाते आँख लग गई है, सोने दे ..थक जाती है एक तो बच्चा छोटा है ऊपर से अभी तक मेहमानों का आना-जाना टूट ही नहीं रहा । पहले शादी की तैयारियों की भागमभाग थी । ध्यान रखना बेटे…. अगर बीच में गुड़िया उठे तो एक- दो दिन तुम उसे देख लेना , नींद पूरी हो जाएगी एकबार …तभी अच्छा महसूस करेंगी ।

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सारंधा ने सास की सारी बातें सुनी और उनके कमरे से बाहर जाते ही अपने साइड लैम्प को बंद किया ।

सारंधा ! तुम जाग रही हो ? पर तुम बोली क्यों नहीं जब मम्मी ने आवाज़ लगाई ?

सारंधा ने पति की बात का कोई जवाब नहीं दिया । सौरभ ने भी उस समय कुछ पूछना उचित नहीं समझा । अगले दिन सुबह की चाय पीते समय सौरभ ने कहा—-

कल  से तुम्हारे व्यवहार ने मुझे अचंभे में डाल दिया है । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि मुझे रत्ती भर महसूस हुआ हो कि मम्मी के साथ तुम्हारा सास-बहू का रिश्ता है पर कल मैंने इसे महसूस किया है ।

अब तक मम्मी ने माँ की तरह व्यवहार किया तो मैं भी उनकी बेटी बनकर रही पर अब वे मेरी सास बन गई है । 

कुछ बताओ तो सारंधा , मैं इस बात को मान ही नहीं सकता कि मम्मी की तरफ़ से …..अरे यार कुछ ग़लत समझ रही हो तुम । 

सौरभ की बात बीच में ही काटते हुए सारंधा बोली —-

मम्मी को फ़ुरसत ही कहाँ है अपनी छोटी नई बहू से ….. उन्हें तो बस नैना ही नैना ज़रा आ रही है । नैना ने तो बड़ी अच्छी चाय बनाई …. वाह ! तुम्हारे हाथ में तो बहुत स्वाद है नैना …. बहुत प्यारी लग रही हो नैना इस पिंक साड़ी में ….. 

अब सौरभ को समझ आ गया कि महीना भर पहले आई छोटे भाई की पत्नी नैना के कारण मम्मी और सारंधा का रिश्ता खटास में पड़ता दिखाई दे रहा है पर नैना तो सीधी सादी सी घरेलू लड़की है….. सारा दिन सारंधा के पीछे- पीछे लगी रहती है । सौरभ ने सोचा कि मम्मी से बात करके ही असली बात पता चलेगी क्योंकि छोटी शुरुआत को बड़ा बनते देर नहीं लगती । इतवार का दिन था । वह पूरे दिन मम्मी, सारंधा और नैना की बातचीत और गतिविधियाँ देखता रहा । उसे तो सब कुछ सामान्य लगा । आज नैना ने राजमा – चावल और दही- बड़े बनाए थे । दोपहर के खाने पर बड़े मामाजी और मामीजी भी आए थे । 

देखा भाभी…. जादू है नैना के हाथों में, कितना स्वादिष्ट भोजन बनाया है । 

खाना तो जीजी , सारंधा भी बहुत बढ़िया बनाती हैं । 

रमा कुछ कहती , इससे पहले ही सारंधा बोल उठी —-

वो समय तो गया मामीजी ….जब मम्मी की ज़बान पर मेरा नाम रहता था और लोग शिकायत करते थे कि आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई ही नहीं देता …..मेरी तो सारी अच्छाई महीने भर में बुराई में बदल गई । 

सारंधा ! ….. क्या कह रही है? अच्छाइयाँ कैसे मिट सकती हैं बेटा ? इतनी  बड़ी बात तूने कैसे सोच ली ? 

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रमा ने अपनी भाभी के सामने इससे ज़्यादा कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा और बात पलट कर भाई- भाभी के साथ बतियाने लगी । 

शाम को मेहमानों के जाने के बाद रमा ने नैना को कहा —-

नैना! अभी रात के खाने में काफ़ी समय है । वैसे भी दिन में बहुत भारी हो गया है । मूँग की दाल की खिचड़ी बनाएँगे बस आज , तुम जाओ अपने कमरे में….आराम कर लो बेटे ।

नैना को  उसके कमरे में भेजकर रमा ने बढ़िया सी तीन कप कॉफ़ी तैयार की और बड़े बेटे सौरभ के कमरे के पास जाकर आवाज़ लगाते हुए बोली ——

सौरभ….सारंधा ….. कहाँ हो भाई! सो तो नहीं गए …. उठो , तुम दोनों की पसंद की कॉफी बनाकर लाई हूँ चलो साथ मिलकर पीते हैं । 

आप दोनों बैठिये …. मैं ज़रा गुड़िया को देख लेती हूँ । 

इतना कहकर सारंधा वहाँ से जाने के लिए उठने लगी परंतु रमा  ने थोड़ी गंभीरता से कहा —

गुड़िया तुम्हारे पापा के साथ आराम से खेल रही है , तुम बेफ़िक्र होकर बैठो …..लो कॉफ़ी पियो । मुझे तुमसे ज़रूरी बात करनी है ।

सास की बात सुनकर सारंधा बैठ गई और कॉफी पीने लगी ।

सारंधा …. आज तुमने मामी के सामने क्या कहा ? मुझे बताओ , तुम्हें  ऐसा क्यों लगा ?  बेटा, ना तो मैंने तुम्हें कभी बहू माना और ना खुद को सास ….. इसलिए खुलकर बताओ जो भी तुम्हारे मन में है ।

हाँ सारंधा …. मम्मी को बताओ अपने सिरदर्द की वजह …

मम्मी, अब आपने पूछ ही लिया तो ठीक है । जब से नैना आई है, आपने तो सारा ध्यान उस पर लगा दिया जैसे मैं तो घर में हूँ ही नहीं । नैना ने एक आध बार रसोई का छोटा- मोटा काम क्या कर दिया, आपने तो बड़ाइयों की ऐसी झडी लगा दी कि उससे पहले तो आप बेस्वादा खाना खाते थे । उस दिन मैं नैना को छोड़कर कमरे में आ गई और पापा को समय पर नाश्ता नहीं मिला तो आपने मुझे ही सुनाया । और भी न जाने कितनी बातें …. हर रोज़ होती हैं । 

सारंधा की सारी बातें सुनकर रमा मुस्कुराते हुए बोली——

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मैं तो सोचने लगी थी कि तुम समझदार हो चुकी हो पर इसका मतलब कि अभी मेरा कार्य अधूरा है । अच्छा…. ये बता , जब तुम नई-नई यहाँ आई थी तब की बातें याद है या नहीं? 

मुझे सब याद है मम्मी…. वो स्नेह और अपनत्व के दिन मैं कैसे भूल सकती हूँ?  आपने जिस तरह मुझे सहयोग देकर इस घर में ढाल दिया था ….

तो बेटा , क्या अब नैना के साथ मुझे वैसा ही व्यवहार करके उसे इस घर में नहीं ढालना चाहिए? सारंधा ! इतनी समझदार होके , ये बचकाना ख़्याल तुम्हारे दिमाग़ में कैसे आ सकता है? नैना होस्टल में रही है और उसे घर के कामों का बिल्कुल भी अनुभव नहीं है अगर उसके प्रयास की ज़रा सी सराहना कर दी तो इसका यह अर्थ तो नहीं कि तुम्हारी अच्छाइयाँ गौण हो गई? पता नहीं कि तुम्हें याद है या नहीं कि जब मैं तुम्हें पारिवारिक माहौल में रचाने-बसाने की कोशिश में लगी थी तो मेरी खुद की बेटी ने शिकायत करते हुए अपने पापा से कहा था—-

अब मम्मी को बेटी की चिंता थोड़े ही है , मम्मी की तो बहू आ गई है…… भूल गई तुम ? 

कुछ जवाब न पाकर रमा फिर बोली —-

बेटा , एक लड़की अपना सब कुछ छोड़कर नए घर में बहुत सी आशाओं और सपनों के साथ आती है और हम सबका दायित्व है कि उसे सहजता प्रदान करें , उसके साथ घुलें- मिलें । अच्छा… तुम बताओ , क्या उस दिन तुम्हें डाँटना उचित नहीं था ? तुम महीना भर पहले आई लड़की के ऊपर रसोई सौंप कर  कमरे में आ गई जबकि तुम्हें पता है कि  डायबिटीज़ के कारण अगर तुम्हारे पापा को समय पर नाश्ता- खाना ना मिलें तो उनकी हालत ख़राब हो जाती है । और अगर रसोई से बाहर जाना ज़रूरी था तो नैना को पूरी बात अच्छे से समझाकर निकलती….बताओ , अगर मैं ग़लत कह रही हूँ तो ? 

नहीं मम्मी, आप एकदम ठीक कह रही है । गलती सारंधा की है । सारंधा ! तुम्हें तो मम्मी की मदद करनी चाहिए नैना को जल्दी से एडजेस्ट करवाने में ….. मुझे तुमसे ऐसी नासमझी की उम्मीद हरगिज़ नहीं थी । 

सॉरी मम्मी, मैं तो अपना समय भूल ही गई थी । आगे से ऐसी गलती कभी नहीं होगी । वाक़ई औरत ही औरत की दुश्मन होती है पर आज से हमारे घर में औरत ही औरत की सहयोगी होगी । प्रामिस मम्मी! 

देखा सौरभ! लोग मुझे क्यों कहते हैं कि आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के सामने कुछ दिखाई ही पड़ता नहीं है । 

इतना सुनते ही सारंधा सास के गले जा लगती है ।

करुणा मलिक 

# आपको तो अपनी बहू की अच्छाई के सामने कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता है ।

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