ससुराल में मायका… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

…सुर्ख लाल होंठ… खूबसूरती से तराशे गए उन होठों पर झूलता नथ… नाक तक खींचे गए घूंघट की ओट से बस यही तो दिख रहा था…

इतना सा दृश्य काफी भी था, किसी के भी मन में वह पूरा चेहरा देख लेने की चाहत जगाने को…

 शाम की आरती हो रही थी… पूरा मंदिर भक्तों की भीड़ से खचाखच भरा था… उस भीड़ से अलग… गहरी नीली साड़ी में, नाक तक घूंघट डाले वह बाहर बेंच पर लेटी थी…

 हर आते जाते दर्शनार्थी की नजर एक बार उस ओर घूम ही आती थी… नजारा था ही ऐसा… अकेली बेंच पर घूंघट डाले लेटी लड़की… ऐसा लग रहा था जैसे नई दुल्हन हो… पर यहां ऐसे अकेली क्यों थी…?

 कनक की तरह कितनों के मन में यह सवाल आया होगा… कई मनचले तो यहां वहां जानबूझकर उसके आसपास चक्कर भी लगाने लगे…

 करीब घंटे भर बाद आरती खत्म हो गई… भीड़ धीरे धीरे छंट रही थी… बहुत लोग उस लड़की को देखकर कानाफूसी भी कर रहे थे… अंधेरा घिर आया था… मंदिर में अब कुछ ही लोग रह गए थे…

 वह लड़की तो बिल्कुल हिलने डुलने का नाम ही नहीं ले रही थी… आखिर कनक से रहा ना गया… वह उसके पास चली गई… उसके कंधे पर हाथ रखा… फिर दूसरे हाथ से उसके हाथों को छुआ… “यह क्या यह तो बिल्कुल सर्द थे…” अचानक कनक ने हाथ पीछे कर लिया… फिर हाथ बढ़ा कर उसे झकझोर दिया… लड़की एक तरफ झूल गई…

“मिर्ची की धाँस में पनपते रिश्ते” – अनु अग्रवाल

कनक बुरी तरह घबरा गई…तब तक कई लोग इकट्ठा हो गए थे… वह सबके सहयोग से उसे सहारा देकर… उठाने की कोशिश करने लगी… एक बार तो उसे लगा कि कहीं इसकी सांसे थम तो नहीं गई… लेकिन शुक्र था लड़की जिंदा थी… कुछ लोगों की मदद से वह उसे पकड़ कर अस्पताल ले गई… 

रात हो आई थी… घर में बच्चे इंतजार कर रहे थे… राजेश का तीन बार फोन आ चुका था… 

अस्पताल में भर्ती के लिए ले जाते हुए… नर्स ने जो फार्म भरवाया, कनक उसमें अपना नाम पता डाल आई… उसे अपनी बहन बताकर उसको इलाज के लिए भेज तो दिया, पर इससे ज्यादा रूक पाना उसके लिए मुनासिब नहीं था…

 लड़की अभी भी बेहोश थी… कनक ने उसके होश में आने का इंतजार नहीं किया…वह और नहीं रुक सकती थी… वह फौरन घर के लिए निकल गई…

 घर में सारी बात सुनने के बाद, सभी ने उसे चार बातें सुना डाली…” क्या जरूरत है, इतना महान बनने की…!”

” अपना नाम, पता.… भला कौन देता है… और अपनी बहन बताकर आई है… कल को अगर लड़की के साथ कुछ हो गया… तो यह लेगी जिम्मेदारी…!”

 सभी से डांट खाने के बाद… कनक सोच में पड़ गई…” क्या सचमुच कुछ गलत ही कर आई मैं…!”

 इसी सोच में एक प्रहर रात निकल गई… दूसरे प्रहर उसका मन फिर करवट ले बैठा… “नहीं इस तरह बेचारी को छोड़ आई, अकेला अस्पताल में… एक बार पता कर लेना चाहिए… कैसी है…?”

सबसे छुपा कर उसने मोबाइल से अस्पताल का नंबर निकाला, और फोन करके उस अनजान लड़की के बारे में जानने की कोशिश की… 

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थोड़ी ही देर में पता चल गया… लड़की अस्पताल से जा चुकी थी… वह बिल्कुल ठीक थी, और घर चली गई… सुनकर कनक को बड़ा अच्छा लगा…” चलो, लड़की सही सलामत घर पहुंच गई…!” थोड़ा उटपटांग भी लगा…” ऐसे कैसे चली गई… पर बात यूं ही आई गई हो गई… 

इस बात को हफ्ते भर बीते होंगे… कनक ने यह बात अपने दिमाग से लगभग निकाल ही दिया था… एक दिन शाम को अचानक वही लड़की उसके दरवाजे पर खड़ी थी… साथ में अपनी सास और पति के साथ…

 कनक ने उसे देखते ही पहचान लिया…” अरे तुम… कैसी हो…? मैं तो तुम्हारा नाम भी नहीं जान पाई…!” लड़की ने छूटते ही कनक के पैर छूकर उसका आशीर्वाद लिया…” दीदी मैं तारा… यह मेरे पति हैं…!” उसने भी कनक के पैर छुए…

” यह मेरी सासू मां…!” उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर कनक को नमस्ते किया …कनक भी ऐसे सबसे मिलकर बहुत खुश हो गई थी… सबको अंदर बिठाया…

” तारा तुम्हें हुआ क्या था… वहां क्यों और कैसे पड़ी थी…?” जवाब तारा की सासू मां ने दिया…

“कनक बेटा… तारा हमारी बहू है… अभी महीने भर पहले ही इसका शुभ विवाह हुआ है… इसलिए कहीं भी आना जाना भी हुआ नहीं… यह रास्ते भी याद नहीं रख पाती… मेरे करीबी के घर में पूजा थी… मैंने इसे साथ लिया… कुछ दूर जाकर मुझे याद आया, मैं अपना पर्स घर भूल आई थी… मैंने इससे कहा…’तारा बेटा तुम पास ही, जिस मंदिर में हम कल शाम को गए थे ना… वहां जाकर बैठो… मेरा इंतजार करो… मैं अभी आती हूं…!’ यह लड़की आगे निकल गई… कुछ दूरी पर मंदिर मिला नहीं……!”

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 बीच में तारा बोल उठी…” दी… मैं बुरी तरह घबरा गई थी… मां ने गहने भी पहना दिए थे… रास्ता मुझे याद नहीं था… ना मंदिर का… ना वापस जाने का… मैंने घबराते हुए किसी से मंदिर का पता पूछा तो उसने मुझे उसी मंदिर के बारे में बताया… जहां शायद आप थीं… और फिर आपने मेरी मदद की… मेरा सर घबराहट और डर से परेशान होकर चकराने लगा था… मंदिर में आरती होने वाली है… ऐसा सोचकर… मैं घूंघट डाले बैठ गई… पर पता नहीं बैठे-बैठे मैं कब बेहोश हो गई…… जब मुझे होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया… मैंने वहां से घर में फोन किया और घर चली आई… पर आपका शुक्रिया अदा करना बाकी रह गया… आपने मुझे अपनी बहन बताकर मेरा इलाज करवाया… नहीं तो पता नहीं… उस हालत में वहां पड़े… मेरे साथ……!”

” कुछ नहीं होता…. बहुत लोग होते हैं, जो दूसरों की मदद करते हैं… मैं नहीं तो कोई और….!”

 तारा का पति बोल पड़ा…” नहीं दी… ऐसा आप सोचती हैं… लोगों का नजरिया कैसा है, दूसरों के प्रति यह तो आप भी जानती हैं…उस दिन तो हमारी जान ही निकल गई थी……!”

 कनक ने तीनों की खूब आवभगत की… विदा लेते समय तारा छोटी बच्ची की तरह चहक कर बोली… “दीदी… आप यह मत समझिए कि हो गया… यह तारा अब आपका पीछा कभी नहीं छोड़ेगी… मुझे अपना मायका जो मिल गया इस ससुराल में…!”

 कनक ने तारा को गले से लगा लिया…” सचमुच और मुझे एक छोटी बहन….!”

रश्मि झा मिश्रा

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