सास बिना अधूरा ससुराल – मनप्रीत मखीजा

“पापा जी, आपके लिए चाय बना दूँ!”

“हअ……, नहीं अभी नहीं| “

“पर पापा जी, शाम के छह बजे हैं| आप और मम्मी जी तो साढ़े चार पर ही चाय पी लेते थे?”

“मेरा चाय का मन नहीं है बहू, मैं थोड़ा टीवी देख लेता हूँ|”

टीवी तो सुबह से ही चल रहा था, मगर पापाजी उसे देखकर भी देख नहीं रहे थे| आँखें ही टिकी थीं टीवी पर, मगर दिल को इंतजार था कि पापाजी का फ़ोन बजे और मम्मी जी उनसे भरपूर बात करें| इधर मनीष यानी कि कुमुद के पति और मम्मी जी के बेटे का भी मिला जुला हाल था| कभी सब्जी में नमक ज्यादा की शिकायत तो कभी तेल ज्यादा का बहाना लगाकर खाने को आधा ही खाते| कुमुद सब समझ रही थी लेकिन अब वो खुद भी सास को मिस कर रही थी| इसलिए जल्द ही सासू माँ को व्हाट्सएप्प पर मैसेज के जरिये एक पत्र लिख दिया|

मेरी प्यारी सासू माँ जी,

दिनांक 12 अगस्त

विषय – घर की तत्कालीन स्तिथि

प्रिय सासू जी, आपको प्रणाम| कैसी है आप! कुशल मंगल ही होंगी, भला मायके में जाकर भी कोई उदास होता है| लेकिन हम सभी यहाँ बहुत बहुत बहुत उदास है| घर की स्तिथि वैसी बिल्कुल नहीं जैसी आप छोड़ गई थी| न न…साज,सामान, राशन, पानी सब दुरुस्त है लेकिन घर तो घरवालो से होता है और इस  घर के घरवाले बिल्कुल ठीक नही| जब आप यहाँ थी तो घर के हर कोने से हँसी, खिलखिलाहट और प्यार भरी बातों की आवाज सुनाई देती थी लेकिन जब से आप गई है न तो आप की और पापा जी की वो शरारत भरी लड़ाई की आवाज सुनाई देती है और न ही मम्मी मम्मी कहकर गूँजने वाली आपके बेटे की आवाज| इसे और विस्तार से बताती हूँ, बड़ी याद आती है सासू जी आपकी




आपके पूजा की घण्टी की आवाज सुनने को 

सुबह सुबह चाय के लिए ओखली पर अदरक कूटने की आवाज,

ये सब बड़ा याद आता है

अब तो बस टिकटिकी का अलार्म मुझे जगाता है

पापा जी, सुबह की चाय पर आपको बड़ा याद करते है

बर्फी एक नहीं खाते पर डब्बा साथ रखते है

आपका मिठाई पर उन्हें टोकना उन्हें बड़ा याद आता है

जल्दी लौट आओ सासू जी

भला सास बिना भी कोई ससुराल कहलाता है! आपके पुत्र महोदय तो लम्बी नाक चिढ़ाते है

चाहे भर भर पकवान बनाऊँ, फिर भी दो दाने ही खाते है

उनकी शर्ट पर मेरी की गई इस्तरी, जो पहले भी मैं ही करती थी, 

लेकिन अब उन्ही कपड़ो को नजरो से तोल जाते है

क्या कहूँ, लेकिन हँसी भी आती है

पैंतीस की उम्र का ये बच्चा माँ के स्पर्श को तरस जाता है

सासू माँ जल्दी लौट आओ




भला, सास बिना कोई ससुराल कहलाता है! आपका ये टिंगू सा पिद्दी सा पोता

अपने घुटनों के बल आपके कमरे में जाता है

दा…. दी…… करता करता लार  टपकाता है

कभी दरवाजे के पीछे टँगी साड़ियों में आपको खोज लेता है

आप न दिखो तो रोतलू सा मेरे गले लग जाता है

सासू माँ जल्दी लौट आओ

भला, सास बिना भी कोई ससुराल कहलाता है! बात मेरी क्या करूँ

हाल मेरा क्या हुआ

लोगों को तो निमोनिया होता

मुझे तो सासेरिया हुआ

कपड़े तह लगाना, सब्जी खरीदने जाना, या हो कमीज की सिलाई

मुझे तो हम दोनों की गपशप वाला हर पल याद आता है

सासू माँ अब जल्दी लौट आओ

भला, सास बिना भी कोई ससुराल कहलाता है! सासू माँ, आपके भाई की बहू के डिलीवरी को बड़े दिन हो गए| प्लीज अब आकर आपका आशियाना संभालिये, मुझसे ये सूना सूना अब न सहा जाता है| आपकी शीघ्र अति शीघ्र वापसी की आशा में, आपकी बहू

 

कुमुद

पढने के लिए धन्यवाद!

©®मनप्रीत मखीजा

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