सारे अधिकार दीदी को ही क्यों – नमिता झा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “क्या है मांँ? इस घर की बड़ी आप हैं या दीदी? हर बात के लिए मुझे दीदी से क्यों परमिशन लेनी पड़ती है? दीदी कौन होती है ये बताने वाली कि मैं अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा सकती हूंँ या नहीं?” सोनल ने ये पहली बार अपना विरोध नहीं जताया था। उसे हमेशा यही लगता की घर के सारे फैसले उसकी दीदी सोनाक्षी ही लेती है। उसे अब इस बात से कोफ्त होने लगी थी। आखिर वो भी तो इसी घर की बेटी है तो उसे क्यों नहीं इसका अधिकार है? वो भी अब बड़ी हो चुकी है। अपना भला-बुरा समझ सकती है। पर नहीं अपने जीवन से जुड़े हर छोटे-बड़े फैसले भी वो दीदी की इजाजत के बिना नहीं ले सकती थी।

ऐसा नहीं था की सोनाक्षी ने कभी भी उसे किसी बात के लिए मना किया हो पर फिर भी उम्र बढ़ने के साथ उसे इस बात से चिढ़ होने लगी थी। उसे हमेशा यही लगता कि मांँ ने सारे अधिकार बस सोनाक्षी को ही दे रखे हैं। उसे तो हमेशा बस बच्ची है, नासमझ है कह कर बहला दिया जाता था। पर अब और उससे चुप नहीं रहा जा रहा था और आखिर अंदर भरा हुआ लावा आज फट कर बाहर आ ही गया होगा था।

“कैसी बात कर रही है सोनल? तेरे बाबा के एक्सीडेंट के बाद से सोनाक्षी ने ही इस घर को संभाला है। अपनी पढ़ाई छोड़ दी ताकि तुझे और मोनू को पढ़ा सके। खुद शादी तक नहीं कि क्योंकि उसे डर था की शादी के बाद वो पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाएगी। तुझसे बड़ी है इसलिए उसे तुझसे जुड़े फैसले लेने का अधिकार है और जहांँ तक मेरी बात है तो मुझसे ज्यादा बाहर की दुनियांँ उसने इतनी कम उम्र में ही देख ली है।

तेरे बाबा के बाद इस घर के मुखिया होने का हर फर्ज़ को उसने बखूबी निभाया है। किसकी क्या जरूरत है, उसे कैसे पूरा करना है ये सारी जिम्मेदारी उसने बाखूबी निभाई। कभी अपने लिए नहीं सोचा।  और तुझे गुस्सा भी किस बात का है? किसी काम के लिए आज तक उसने तुझे मना किया है? तुझे जब जो चाहिए तेरे कहने से पहले उसे पूरा किया है। अधिकार अधिकार चिल्लाने से सिर्फ अधिकार नहीं मिल जाते। खुद को उस काबिल बनाना पड़ता है।” मांँ के भी सब्र का बांँध आज टूट ही गया था। जिस सोनल को वो बच्ची और नासमझ समझ अब तक नज़र अंदाज़ कर रही थी उसके मन में अपनी ही बड़ी बहन के लिए इतनी कड़वाहट भरी देख उनका सीना छलनी हुआ जा रहा था।

“मुझे ये सब नहीं मालूम मांँ। मैं अब बालिग हूंँ और अपनी मर्जी से जहांँ चाहे जा सकती हूंँ। मुझे किसी से भी पूछने की जरूरत नहीं है।” सोनल ने अपना फैसला सुनाया। उसके दोस्त जो हमेशा छोटी बेबी कह कर उसका मजाक उड़ाते थे उन्हें इस बार बताना था की वो अब बड़ी हो चुकी है। उन्हें बताना था कि वो अपने फैसले खुद ले सकती हैं।

“सोनल तू…” मांँ अभी सोनल को कुछ समझा पाती तभी फोन की  घंटी ने दोनों की बहस पर विराम लगा दिया।

“हैलो…सोनाक्षी? बहुत देर कर दी आज बेटा।कितनी देर में आ रही है?” नंबर देखे मांँ ने फोन उठाते ही पूछा।

“जी वो.. ये जिनका फोन है उनका बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया है। हम उन्हें पास के सेंट्रल हस्पताल ले जा रहे हैं।….” फोन से आती आवाज़ धीरे धीरे धूमिल होती चली गईं और आगे की पंक्तियांँ जैसे मांँ को सुनाई ही नहीं दी और वो लहरा कर नीचे गिर पड़ी।

“सोनल…अब तू बड़ी हो गई है। अब से घर, मांँ, बाबा के साथ अब मोनू की भी सब जिम्मेदारी अब तेरे ऊपर है।” सोनाक्षी ने अपनी अंतिम सांँस लेते हुए मोनू का हाथ सोनल के हाथ में थमा दिया था।

“दीदी मुझे माफ कर दो। अपने बचपने में मैं समझ ही नहीं पाई की अधिकार के साथ-साथ जिम्मेदारी भी मिलती है। मुझे नहीं चाहिए कोई अधिकार दीदी। मुझे अपनी वही पुरानी जिंदगी चाहिए। वापस लौट आओ दीदी।” सोनाक्षी की तसवीर के सामने हाथ जोड़ते हुए सोनल फफक पड़ी थी। अब उसके पास भी सारे फैसले लेने के अधिकार तो थे लेकिन जो नहीं था वो था एक पल का सुकून।


नमिता झा ‘नम्र’

#अधिकार 

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