अधिकार – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ऑफिस की तरफ से दस दिन के लिए राजेश को शहर से बाहर जाना था.. राजेश थोड़ा परेशान से लग रहे थे … मैं और दोनो बच्चे शुभम और शुभांगी, जो एक महीने के सेमेस्टर ब्रेक में घर आए थे बेहद खुश थे.. पापा नही रहेंगे तो खूब मस्ती करेंगे और देर से सो कर उठेंगे..

             घर से निकलते वक्त भी राजेश मुझसे बोले कोई परेशानी हो तो फोन कर देना संजना मैं आ जाऊंगा.. मैं अपनी खुशी दबाते हुए कहा अरे नही बच्चे हैं न..

                  राजेश के जाने के बाद दो दिन तो अच्छा बिता.. तीसरे दिन शाम से हीं मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही थी.. रात होते होते शरीर दर्द से टूटने लगा और जाड़े और बुखार से बेसुध हो गई मैं.. शुभम और शुभांगी दोनो देर रात सोने आए.. मैने  शुभम का हाथ पकड़ कर कहा मेरी तबियत ठीक नहीं है उसने कहा सो जाओ कल डॉक्टर  के पास चलेंगे..मैं दर्द और बुखार से कराह रही थी पर उनके कानों में लगा ईयर फोन जिसमे गाना सुनते सुनते सोने की आदत थी उन्हे, कुछ सुन नही पाए..

दो तीन आवाज शुभांगी को भी लगाई पर उसने भी  अलसाई आवाज में  सोने दो ना  कहकर करवट बदल कर सो गई..प्यास और दर्द से मैं बेहाल हो रही थी ठंड से बुरा हाल था लग रहा था जैसे उठूंगी तो गिर जाऊंगी.. मैने किसी तरह शुभ और शुभांगी को आवाज दी और हिलाया भी पर उन्होंने अलसायी हुई आवाज में कहा मम्मा सोने दो प्लीज..

          आंखों  से आसूं निकलने लगे.. राजेश होते तो क्या मुझे इस स्थिति में देखकर सो पाते.. पिछली बार बुखार लगा था तो सारी रात बैठे रहे, कभी ठंडे पानी की पट्टी देते कभी सर दबाते.. ओह मैने कभी बच्चों के सामने उनको महत्व हीं नहीं दिया.. बच्चों की फरमाइश पूरी करने के लिए दिनभर किचन में लगी रहती पर राजेश कुछ बनाने के लिए बोलते तो झल्ला उठती , थक गई हूं.. बच्चे तो कभी कभी आते हैं आप को तो हमेशा घर में हीं रहना है..

      और वही बच्चे जो छोटे थे तो मेरा आंचल पकड़े रहते थे आज उनका अपना सर्किल,फ्रेंड्स और अपनी दुनिया है.. पर राजेश के लिए तो मैं वही हूं जो पहले थी बल्कि अब और ज्यादा ध्यान देने लगे हैं..

        घुटने का दर्द और सर्वाइकल जब से मुझे परेशान करने लगा है राजेश मेरा ध्यान और ज्यादा रखने लगे हैं.. ज्यादा देर खड़े नही होना है, मोबाइल कम देखो सिर के नीचे तकिया मत रखो और भी बहुत सी हिदायतें.. मैं दलिया बना देता हूं तुम रेस्ट करो संजना..

          कभी रात में नींद नहीं आती तो सर तब तक दबाते जब तक की मैं सो नहीं जाती.. घुटने में दर्द होता तो मूव या दर्दनाशक तेल का मालिश करने से भी नही हिचकते मैं लाख मना करती पाप लगेगा पर..

                     एक बार बहुत तबियत खराब हो गई थी मेरी तब राजेश ने दस दिन की ऑफिस से छुट्टी लेकर बिस्तर ठीक करने से लेकर मुंह में खिलाने तक सब कुछ किया, मैं कैसे भुल गई ये सब.. ओह.. बच्चों के मोह में मैने राजेश की कद्र और कीमत नही समझ पाई, पर आज भगवान ने मेरी गलतियों को अहसास कराने के लिए ये वक्त दिखाया है.. भगवान मुझे एक मौका दो की मैं अपनी गलती सुधार सकूं और प्रायश्चित कर सकूं.. बच्चे आते तो राजेश को ड्राइंग रूम में रहना सोना पड़ता है.. बच्चे बेड रूम में अपना साम्राज्य स्थापित कर लेते हैं और मैं भी उनके साथ रहने का लोभ से खुद को रोक नहीं पाती..

                   बुखार थोड़ा कम हुआ है गला सुख रहा है जैसे तैसे गिरती पड़ती पानी पीने के लिए उठती हूं..

                  आज समझ पाई हूं जो अधिकार पति पर होता है वो अधिकार बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तब नही रह जाता.. राजेश तुम्हारी संजना तुम्हारा इंतजार कर रही है जल्दी से आ जाओ. वही संजना जो बच्चों के आने पर तुमसे कहती थी एक महीने के टूर पर कहीं चले जाओ हम तीनों एंजॉय करेंगे…

                       मेरी दवाइयों को तुम गिन कर रखते थे और जिस दिन मै खाना भूल जाती तुम कितने अधिकार से डांट कर ग्लास में पानी और दवा लाकर मुझे देते थे..

                       सच हीं तो बड़े बुजुर्ग कहते थे शादी के पहले माता पति पर और शादी के बाद पति पर जो अधिकार होता है वैसा अधिकार किसी पर नहीं होता.. आज सारी बातें मुझे याद आ रही है.. पति पत्नी सच में एक दूसरे के पूरक होते हैं पत्नी का अधिकार पति पर असीमित होता है ये आज मैं संजना अच्छी तरह से समझ गई हूं..

 #स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

        वीणा सिंह

     मौलिक रचना

#अधिकार 

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