सपने कभी सच नहीं हो सकते, -हेमलता गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

कहीं नहीं जाऊंगी.. मैंने भी फैसला कर लिया है जब तक जिऊंगी इस घर में रहूंगी और तुम सब की छाती पर मूंग दलूंगी, देख लेना आज तक तुमने जो मेरे साथ किया है उन सबका गिन कर बदला लूंगी, आखिर तिरस्कार कब तक सहू, क्या मेरे तिरस्कार सहने की कुछ सीमा है? 15 साल हो गए शादी को, क्या किसी ने मुझे इस घर की बहू पत्नी या भाभी का दर्जा दिया है, मेरा नाम लेना तो शायद  ही किसी को याद हो, बस हर समय एक नौकरानी की तरह व्यवहार करते आए हैं!

संध्या की बात सुनकर उसकी सास बोली.. हां हां तो सुना किसको रही है इतना सुनने के बाद भी तेरी जैसी गिरी हुई औरत है जो घर छोड़कर नहीं जाना चाहती, ठीक है तो पड़ी रह  इस घर में एक जगह लेकिन हमारे मामले में दखल देने की जरूरत नहीं है और ना ही हमसे कोई भी रिश्ता रखने की जरूरत है, अपनी रसोई अलग कर और दफा हो यहां से! क्यों दफा हो जाऊं… यह घर आपका नहीं है, न हीं आप दहेज में लाई है जितना आपके पति का है

उतना मेरे पति का भी है मैं तो इसी  रसोई में खाना बनाऊंगी आप देखना, अगले दिन संध्या ने उसी  रसोई में खाना बनाना शुरू कर दिया वैसे तो वह 15 साल से इसी रसोई में खाना बना रही है पर आज की बात कुछ और है ,15 साल से ससुराल वाले प्रताड़ित करते आ रहे हैं और वह चुपचाप गाय की तरह सहन भी करती आ रही है लेकिन कुछ दिनों से वह महसूस कर रही है कि यह सब गलत है आखिरकार यह तिरस्कार कब तक! सास ने उसको नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी

किंतु कल तो हद हो गई जब उसके 8 साल के बेटे ने अपने दादाजी से कहा…. दादा जी मुझे बहुत सारे पटाखे चाहिए जैसे मेरे सभी दोस्त ला रहे हैं परसों दिवाली है ना तब दादा जी जो हमेशा अपने पोते को प्यार करते आए थे उन्होंने उसे जवाब दिया क्यों मैं क्यों लाऊं तेरे बाप से जाकर कह दे वह ले आएगा और यही बात संध्या ने सुन ली,, अपना अपमान तो वह सह लेती  किंतु उसके बेटे के साथ ऐसा सलूक होता है यह तो उसे पता ही नहीं था, उसी दिन शाम को संध्या के बेटे ने अपनी बुआ से कहा

बुआ मुझे भी आइसक्रीम दो  ना.. तब बुआ अपने लाडले भतीजे से बोली हां हां तेरी मां ने रख रखी है ना फ्रीज में आइसक्रीम, जा अपनी मां से मांग और इसी प्रकार उसकी दादी ने भी उसे उल्टा सीधा जवाब देकर भगा दिया! अब  सर  से पानी ऊपर जा चुका था और संध्या ने यह सोच लिया अब चुप नहीं रहेगी! दरअसल इस घर से निकलने वाली बात कुछ दिनों पहले हुई थी, संध्या के चाचा के लड़के ने संध्या की ननद के साथ रिश्ते से मना कर दिया और संध्या के ससुराल वालों ने इल्जाम संध्या के ऊपर लगा दिया और कहा..

अगर तू चाहती तो तेरा भाई इस रिश्ते के लिए हां कह सकता था किंतु तू चाहती ही नहीं थी, तू तो इस घर की दुश्मन है तुझे घर में रहने का इसलिए कोई अधिकार नहीं है, अगले दिन संध्या ने अपने लिए  अपने पति और बेटे  के लिए दाल बाटी चूरमा बनाया यह देखकर सास तमतमाई  और बोली ओ महारानी इतना घी में तरबतर खाना खायेगी तो भैंस हो जाएगी! जी तेरे बाप के यहां से नहीं आया! तो संध्या बोली

कोई बात नहीं आज तक गाय  थी अब भैंस भी बन जाने दो आपके लिए तो मैं कोई ना कोई जानवर ही रहूंगी! तब सास ने सोचा हमारे लिए भी खाना बनाया ही होगा, संध्या उसके पति और बच्चे ने खाना खत्म कर दिया! जैसे ही सास रसोई में गई सारे बर्तन खाली पड़े थे और सिंक झूठ बर्तनों से भरा पड़ा था सास का पारा चढ़ गया और चिल्लाई.. तूने खाना सबके लिए क्यों नहीं बनाया? क्यों..मैं क्यों बनाऊं.. आप तो हमेशा कहती हो तेरे हाथ का खाना इतना घटिया होता है की कोई जानवर भी ना खाए, तुझे खाना बनाना नहीं आता, 10 लोगों के सामने मेरी बेइज्जती कर  देती हो तो अपना इंसानी खाना खुद बनाओ और खाओ मैं तो जैसा खाना बनाना आता है मैं खा लूंगी!

सास ने जैसे तैसे करके खाना बनाया, शाम को ससुर जी अपने बेटे से बोले बेटा जरा घूमने जाए तो पान ले आना, तब बेटे के बोलने से पहले ही संध्या बोली क्यों आपके हाथ पैरों में जंग लग गया जाइए पान क्या शराब भी पीकर आओ, ससुर अपनी बहू का ऐसा  रौद्र रूप देखकर घबरा गए और उसके बाद कुछ नहीं बोले! अगले दिन संध्या की ननद  कॉलेज जाने लगी ,बोली भाभी टिफिन तैयार कर दिया क्या तो संध्या बोली

नहीं जी मैं तो इस घर की नौकरानी हूं और नौकरानी के हाथ का खाना खाकर तो आप बीमार पड़ जाएंगे आपकी मां और आपके पापा उनसे कहिए वह आपको अच्छा-अच्छा खाना बना कर देंगे! पूरे घर में हाय तौबा मची हुई थी यह सब क्या ड्रामा चल रहे हैं, कल तक गाय की तरह गूंगी बहरी बहू आज शेरनी की तरह कैसे हो गई, सभी को आश्चर्य हो रहा था, यहां तक की अब तो बेटा भी कुछ नहीं बोल रहा! संध्या जब इस घर में बहू बनकर आई थी सभी की चहेती थी किंतु धीरे-धीरे उसने अपनी दुर्दशा खुद ही कर ली,  घर में कोई भी काम करता उससे पहले बोल पड़ती

आप रहने दो मैं कर लूंगी और सारे काम की जिम्मेदारी उसने स्वयं ले ली, घरवाले तो चाहते ही यही थे ऊपर से संध्या दहेज में भी कुछ खास नहीं लाई थी तो सास तो वैसे ही चिड़ि  हुई रहती थी, जब भी घर में कोई मेहमान आते सास सबके सामने  कहती हमने तो हाथ ही  हाथों में रखा है अपनी बहू को, एक गिलास पानी तक लेकर नहीं पीती हम तो बेटी बना कर लाए हैं,  मेरे लिए तो जैसी नूपुर ऐसी संध्या !किंतु बाद में हर समय किसी न किसी बात पर जलील करने लगी,

सास को लगता गरीब घर की लड़की है तो कैसे बोलेगी ऊपर से संध्या कोई नौकरी भी नहीं करती थी उसका पति भी अपने पिता  के व्यापार में ही हाथ बटांता था, संध्या अपने पति से कभी कहती तो उसके पति का जवाब होता यार मैं अभी  दुकान से  थककर आया हूं और तुम अपना सास बहू का पुराण लेकर बैठ गई!

अरे तुम अपने आपस की लड़ाई आपस में निपट लो ना मुझे इन सब में मत घसीटा करो! अब संध्या किस से कहती, वह तो अलग भी नहीं हो सकती थी क्योंकि उसके पति की नौकरी नहीं थी बेचारी क्या करती धीरे-धीरे उसे सब सहने की आदत पड़ गई, बात बात पर ताने उलाहना गालियां  सब उसे हजम होता गया किंतु एक दिन उसका बेटा  बोला.. मम्मी, दादी भूआ दादाजी सब आपको इतना गंदा गंदा बोलते हैं

आप उनको कहते क्यों नहीं कुछ भी, मम्मी कल जब मेरी शादी हो जाएगी तो आप भी मेरी बहू से ऐसे ही बोलोगे! एक दिन बेटे ने  अपनी दादी भूआ दादाजी से बोल दिया आप सब गंदे हो बहुत गंदे जो आप मेरी मम्मी को परेशान करते हो मैं आप सबसे नफरत करता हूं और बस तभी से वह सब उसके बेटे से भी चिढ़ गए, संध्या ने अपना तिरस्कार तो जैसे तैसे सह लिया किंतु अपने बेटे को वह जलील होते नहीं देख सकती थी और आज उसने इसीलिए यही फैसला लिया कि वह इसी घर में रहेगी और जो उसके साथ हुआ है

वह इनके साथ करेगी, हालांकि संध्या ज्यादा तो कुछ नहीं कर पाती थी किंतु जितना भी करती अपनी मर्जी से करती और उसमें उसको सुकून मिलता, अब संध्या ने सोच लिया पूरी दुनिया भाड़ में जाए अब वह अपने बेटे के लिए उसकी खुशी के लिए जिंदगी जीएगी अपना भी आत्मसम्मान बचाएगी और  बेटे का भी, उसके पति पहले भी चुप रहते थे और आज भी चुप रहते हैं! अचानक संध्या को लगा उसके ऊपर कहीं से पानी आया है देखा तो सामने सास खड़ी थी और चिल्ला रही थी

.. कुंभकरण की मौसी नींद पूरी हो गई हो तो उठ जा रसोई में झूठे बर्तनों का ढेर पड़ा है और खाने की तैयारी भी करनी है ऐसे ही सपने देखती रहेगी क्या? अब  संध्या को समझ में आया उसने जो सुखद बदलाव अपनी जिंदगी में देखा  वह महज सपना  था और वह उसी क्षण खड़ी हो गई और बोली माफ करना मम्मी जी, बस अभी आधे घंटे में सारा काम करती हूं, काश यह सपना सच हो पाता, किंतु नहीं.. संध्या का सपना कभी सच नहीं हो सकता!

    हेमलता गुप्ता स्वरचित

.   कहानी प्रतियोगिता (तिरस्कार कब तक)

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