यार रति तेरे यहां कितना अच्छा है न तेरी तीन तीन भाभियां है ,इतने सारे भतीजे भतीजियां है कितनी चहल-पहल रहती है न तेरे घर में ।मैं जब भी तुझसे मिलने आती हूं तेरी कोई न कोई भाभी चाय नाश्ता लेकर आ जाती है तुझे तो उठकर जाना भी नहीं पड़ता।और जब मैं तेरे घर आती हूं न बाहर बैठक में बैठे तेरे दादा दादी खूब भर भरके आशीर्वाद देते हैं मेरे नमस्ते कहने पर बड़े प्यार से मेरा हाल चाल पूछते है ।और तेरी मम्मी भी आकर मेरे पास बैठती है ,
मेरी मम्मी का और कालेज का हाल चाल पूछती है।और हर बार सचेत भी करती है कि बेटा पढ़ने जाती है कालेज तो बस पढ़ाई पर ध्यान देना। वहां लड़के भी पड़ते हैं साथ में तो किसी लड़के के चक्कर में न पड़ना आजकल जमाना बड़ा खराब है जी आंटी जी। हां री निशा बहुत बड़ा संयुक्त परिवार है हम लोगों का तीन पीढ़ी साथ रहती है।
कभी कभी तो बहुत भीड़ भाड़ लगती है घर में लेकिन मजा भी खूब आता है।घर में तीन भाभियां है कभी किसी की डिलीवरी हो रही है तो किसी भाभी के बच्चे का अन्नप्राशन हो रहा है तो किसी का मुंडन हो रहा है तो किसी बच्चे का एडमिशन कराना है स्कूल में यही सब होता रहता है बहुत व्यस्त रहते हैं हमलोग। उत्सव का माहौल बना रहता है हर वक्त ।
अब देखो न कल ही तीज का व्रत था भाभी और मां का तो हम दोनों बहनों ने रसोई संभाल ली थी कि हमलोग खाना बना लेंगे आप लोगों को रसोई में आने की जरूरत नहीं है । खाना देखकर भूख भी लग जाती है ।आप लोग मेहंदी वगैरह लगाए और खूब अच्छे से तैयार हो और पूजा की तैयारी करें ।और सुनो निशा मेरे चाचा भी यही रहते हैं उनकी भी दोनों बहुएं पूजा करने यही आ जाती है ।दादा जी का हुक्म है कि जब तक मैं जिंदा हूं घर की सारी बहूएं एक जगह पूजा पाठ करेगी
और एक साथ त्योहार मनाएगी। बड़ा मज़ा आता है।अब राखी हो या भैया दूज हम लोग अपने भाइयों को तो राखी बांधते ही है चाचा के लड़कों को भी राखी बांधते हैं खूब सारे गिफ्ट मिलते हैं । चाचा के कोई बेटी नहीं है न तो वो भी हम दोनों बहनों को खूब मान देते हैं । त्योहारों पर एक दिन हमारे यहां सबका खाना होता है तो एक दिन चाचा के घर सबका खाना होता है ।इस तरह दोनों सहेलियां रति और निशा आपस में वार्तालाप कर रही थी ।
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रति के घर से जाकर निशा अपने घर मां राधिका से बोली मम्मी रति के घर देखो संयुक्त परिवार है मुझे वहां बहुत अच्छा लगता है । मम्मी अपने भी तो चाचा है अपने घर में आना जाना क्यों नहीं है।वो बेटा पुरानी बात है जमीन जायदाद को लेकर तुम्हारे पापा और चाचा में कुछ झगड़ा हो गया था इस लिए बोलचाल बंद है ।तो क्या संबंध अगर एक भ
बार खराब हो जाए तो उनको सुधारा नहीं जा सकता क्या।पर बेटा जब दोनों भाई चाहेंगे तभी तो सुधरेंगे न संबंध राधिका जी बोली । हां वो तो है ।
इधर निशा कालेज की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और उसके शादी की बात चल रही थी। निशा के मामा के दूर के रिश्ते में बहन लगती थी उनके बेटे का रिश्ता आया था। लड़का बैंक में नौकरी करता था।निशा की फोटो पसंद आ गई थी वो लोग सामने से निशा को देखना चाहते हैं ।यह बात जब निशा की मम्मी राधिका ने निशा के पापा संजीव को बताया तो वो मना करने लगें कि नहीं नहीं वहां हम निशा का रिश्ता नहीं कर सकते ।पर क्यों,अरे पता नहीं है तुमको कितना बड़ा परिवार है
संजीव जी बोले।तो क्या हो गया बड़ा परिवार है तो सहुलियते भी तो रहती है बड़े परिवार में।अरे ंनहीं यहां हम बस चार लोग हैं निशा इतने बड़े परिवार में कैसे समझौता कर पाएगी। राधिका जी बोली एक बार दिखा तो देते हैं लेकिन जब करना नहीं है तो दिखाने से क्या फायदा। अच्छा एक बार निशा से पूछ लेते हैं राधिका जी बोली।जब निशा से राधिका ने पूछा कि उनका संयुक्त परिवार है तो निशा झट से तैयार हो गई। उसने अपनी दोस्त रति का संयुक्त परिवार को देखा था निशा मम्मी से बोली कोई प्राब्लम नही है मुझे मम्मी।
निशा के कहने पर राधिका ने संजीव को मना लिया और लड़के वाले निशा को देखने आ गए । लड़का लड़की और उनके परिवार को दोनों बच्चे पसंद आ गए ।अब निशा से लड़का अभय अकेले में कुछ बात करना चाहता था , कोई प्राब्लम नही है कर लो बात ।
देखो निशा हमारा संयुक्त परिवार है सब लोग मिलकर साथ रहते हैं तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं है। लेकिन निशा रति का परिवार देख चुकी थी वो बहुत खुश थी संयुक्त परिवार मिलने से । निशा ने अभय से कह दिया नहीं मुझे कोई प्राब्लम नही है। फिर इस तरह निशा का रिश्ता पक्का हो गया। निशा के पापा ने कई बार निशा को समझाया देखो बेटा सोच समझ लो परिवार बड़ा है रोज ही कुछ न कुछ लगा रहेगा उतनी आजादी नहीं मिलेगी जितनी एक छोटे परिवार में होती है लेकिन निशा ने कहा कोई बात नहीं पापा और तैयार हो गई शादी के लिए।
निशा की शादी हो गई और अपने परिवार में वो बहुत खुश थी।सब मिलकर काम कर लेते थे किसी एक पर काम का बोझ नहीं था। मायके आना हो निशा को तो आराम से आकर पंद्रह दिन रह लेती थी कोई दिक्कत नहीं थी कि मेरे चलें जाने पर खाना कौन बनाएगा सास को कौन देखेगा।बस ऐसे ही खुशी खुशी निशा के दिन कट रहे थे।आठ महीने हो गए थे शादी के निशा अब प्रेगनेंट थी ।उसको घर में पूरा आराम दिया जाता था निशा के ससुर ने खास हिदायत दे रखी थी की निशा छोटे से परिवार से आई है
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इतने बड़े परिवार में उसकी रहने की आदत नहीं है ज्यादा काम का बोझ उसपर न डाला जाए और फिर इस समय तो उसको आराम की जरूरत है ।और पत्नी से बोले देखो बड़ी बहू को कह दो निशा का विशेष ख्याल रखें । हां हां कह दूंगी ,रख लूंगी उसका ख्याल आप चिंता न करें निशा की सांस बोली।
नौ महीने बाद निशा ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। सबने मिलकर निशा का और नन्ही परी का खूब ख्याल रखा ।दो दो ननदें थी निशा की और उसकी सास परी की मालिश करना कपड़े बदलना नहलाना धुलाना सब करती थी । बच्ची जब भूखी होती तभी निशा के पास आती नहीं तो वो हाथों हाथ रहती पता नहीं चलता समय का ।रात में भी यदि परी रो रही है तो सास उसको अपने पास सुला लेती और निशा से कहती तुम सो जाओ आराम से । ऐसे ही सबके हाथों हाथ रहती परी कब बड़ी हो गई पता ही न चला ।
छै महीने की हो गई परी पता ही न चला ।इस बीच वो दो चार दिन को मम्मी के पास भी हो आई ।जब कभी राधिका का फोन बेटी के पास जाता कि परी ज्यादा परेशान तो नहीं करती तो निशा कहती नहीं मम्मी यहां सब मिलकर संभाल लेती है मुझे ज्यादा परेशानी नहीं होती।बस बेटा ऐसे ही खुश रहो यही तो फायदा होता है संयुक्त इसका ।
इधर निशा की दोस्त रति का विवाह एक एकल परिवार में हो गया। इतने बड़े घर से गई थी रति तो उसका ससुराल में मन ही न लगता था।घर में एक बूढ़ी सास थी बस पति काम पर चले जाते तो उसको बहुत बोरियत होती।अब रति को भी एक बेटी है गई थी लेकिन दिनभर अकेले संभालते संभालते रति परेशान हो जाती थी रति की सांस से कुछ न हो पाता था।अब दोनों सहेलियां अपने अपने मायके आई हुई थी जब दोनों ने मुलाकात की तो एक दूसरे से उलट दोनों को ससुराल मिल गया था ।
जहां परिवार में खुश रहने वाली रति अकेले पन से दुखी थी तो वहीं निशा अपने बड़े परिवार में जाकर खुशी से चहक रही थी । निशा बोली पहले कितना अच्छा था यार सब लोग संयुक्त परिवार में रहते थे ये जब से एकल परिवार हुआ है इंसान बहुत अकेला हो गया है । बहुत सी समस्याएं सामने आ गई है । इसमें सबसे ज्यादा बुजुर्ग माता-पिता अकेले हो गए हैं ।एक दो बच्चे होते हैं उच्च शिक्षा ग्रहण करके शहर से बाहर या विदेश चले जाते हैं और यहां बुजुर्ग माता-पिता अकेले रह जाते हैं । पहले ऐसा नहीं था संयुक्त परिवार होने से घर के बड़ों को अकेलापन नहीं लगता था अपनापन था ।लोग आपस में मिल कर दुख दर्द बांट लेते थे । परिवार टूटने से सबसे ज्यादा बुजुर्ग अकेले हो गए हैं । कोई बोलने बात करने वाला नहीं है ।
अब संयुक्त परिवार का सपना बस सपना बनकर रह गया है एक बार विघटन के बाद परिवार को फिर से जोड़ना मुश्किल हो गया है । लोगों को संयुक्त परिवार के महत्व को जानने की जरूरत है। लेकिन फिर से संयुक्त परिवार बन जाए ये संभव नहीं है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
3 मई