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संयुक्त परिवार की बहू – विनिता मोहता

रजनी की शादी में कुछ ही दिन बचे थे. शादी की शॉपिंग से लेकर पार्लर तक सब कुछ बुक हो चुका था.

मगर उसके मन में अजीब सी बेचैनी और घबराहट घर कर गई थी, जिसके कारण वह हर वक्त उदास रहने लगी.

उसकी मां ने जब उसका उतरा हुआ चेहरा देखा तो उसे अपने करीब बैठा कर बोला- क्या बात है बेटा तुम तो नई दुल्हन बनने वाली हो, दुल्हन के चेहरे पर तो निखार अच्छा लगता है मगर तुम्हारा चेहरा तो एकदम उदास लग रहा है कोई परेशानी है ,क्या ?रवि के साथ तुम खुश तो हो ना? मां के मन में अपने नए दामाद को लेकर संदेह था.

रजनी ने आह भरी और कहां- नहीं मां, रवि तो बहुत अच्छे हैं मगर मुझे चिंता किसी और बात की है.

मां -किसी और बात की चिंता! क्या परेशानी है तुझे? कोई शॉपिंग बाकी रह गई या फिर कोई और बात?

रजनी बुझे मन से बोली -मां मैंने अपनी सहेलियों से अक्सर सुना है कि ससुराल में रहना बहुत ही मुश्किल काम होता है .ऊपर से मेरा तो संयुक्त परिवार है .कहां हम चार जनों का परिवार और वहां पर पूरे 25 लोग एक ही छत के नीचे रहते हैं .मैं उन लोगों के बीच कैसे गुजारा कर पाऊंगी. कभी तो मैंने इतने लोगों के लिए एक साथ चाय भी नहीं बनाई ,कैसे सब कुछ मैनेज करूंगी कुछ समझ नहीं आ रहा.


रजनी की बात सुनकर मां मुस्कुरा कर बोली -बस इतनी सी बात। रवि का संयुक्त परिवार जरूर है, मगर हमारे समाज में उनके परिवार की बहुत ही तारीफ है. सभी लोग मिलजुलकर बड़े प्यार से रहते हैं. तुझे वहां कोई तकलीफ नहीं होगी.

मां के समझाने के बावजूद भी रजनी के मन में अपने ससुराल को लेकर उथल-पुथल चल रही थी। शादी होने तक रजनी का मन बड़ा बेचैन रहा .

शादी के बाद 2 दिन तो रस्मो रिवाज में ही बीत गए रजनी को कुछ भी नहीं करना पड़ा .तीसरे दिन सासू मां उसके पास आई और बोली -“बहू तुम्हारे हाथ से रसोई का नेग करना है. जल्दी से खीर, पूरी ,मटर- पनीर ,रायता,पुलाव और एक भरवा सब्जी बना लेना.

खाने का मेनू सुनकर ही रजनी को चक्कर आ गया. क्योंकि उसने इतना सारा खाना एक साथ कभी नहीं बनाया था. और यहां पर इतने लोगों के लिए उसे यह सारी चीजें बनानी थी. ऊपर से लोकल में रहने वाली बुआ सास और चाची सास भी   सपरिवार आने वाली थी. कुल मिलाकर 50 लोगों का खाना था.

रजनी को चुप देखकर सासु मां बोली- “बेटा कर लोगी ना कोई परेशानी तो नहीं.”

रजनी ने धीरे से गर्दन हिला दी. बाहर खड़ी उसकी जेठानी और ननंद दोनों मुस्कुरा रही थी.

उन्हें मुस्कुराते देख रजनी को और डर लगने लगा था। जैसे तैसे हिम्मत कर कर वह किचन में पहुंची तो, उसकी ताई सास वहां पर पहले से ही मौजूद थी. वह खड़ी खड़ी सलाद सुधार रही थी. रजनी को देख उन्होंने बोला- “दुल्हन देखो खीर बन चुकी है, मटर पनीर की ग्रेवी  तैयार हैं, पुलाव अभी आकर तुम्हारी जेठानी छोक देगी, सब्जी रायता भी तैयार है बस तुम पूरी बेलो पूड़ी सेकने में तुम्हारी ननंद मिस्ठी तुम्हारी मदद करेगी.”

सारी तैयारी देख कर एक बार तो रजनी को हैरानी हुई फिर धीरे से बोली- बड़ी मां यह सब कुछ तो मुझे करना था फिर आप लोगों ने सारी तैयारी कर दी. अब मैं क्या करूंगी लोग क्या सोचेंगे?


तभी उसकी जेठानी किचन में आई और बोली- “रजनी हम लोग लोगों के बारे में नहीं सोचते. लोगों का काम तो है कहना. हम लोग एक दूसरे का ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा .हमें पता है तुम्हारा छोटा सा परिवार था संयुक्त परिवार की तुम्हें आदत नहीं है .धीरे-धीरे हो जाएगी तब तक हम लोग हमेशा तुम्हारी मदद करने के लिए है ना .और तुम क्या कह रही थी तुम्हें क्या करना है तुम्हें जरा अपनी शक्ल पर 12:00 बजानी है. ताकि लोगों को लगे नई बहू काम कर कर थक गई है .”रजनी की जेठानी की बात सुनकर सभी लोग मुस्कुरा दिए.

तभी बुआ जी किचन में आई और बोली- हंसी मजाक ही चलता रहेगा या कुछ काम भी होगा. बड़ी भाभी अब तो आपके हाथ के नीचे चार चार बहुए आ गई है. अभी भी किचन में खड़े खड़े सब्जियां ही सुधारती रहोगी. वैसे नहीं दुल्हन खाने में क्या बनाया है.”

रजनी के साथ अपनी ननद को अपने साथ किचन से बाहर ले जाते हुए बोली- दीदी सब कुछ तैयार है बस आप बैठिए सब लोगों का खाना लगा देते हैं.

जैसे ही पुलाव बनकर तैयार हुआ .रजनी पूरियां बोलने लगी, मगर ढेर सारा आटा देख कर जल्दी जल्दी बनाने के चक्कर में पुड़िया आड़ी तिरछी  हो रही थी, उसकी नंंनद उसे कहा- भाभी आराम से कोई जल्दी नही है.सब लोग पुरी का इन्तजार करेंगें.

ननंद की बातें सुनकर उसे कुछ अच्छा लगा सभी लोगों ने खाना खा कर खाने की बहुत ही तारीफ करी और उसे तोहफे दिए जब सब मेहमान चले गए .तब दादी सास ने उसे अपने कमरे में बुलाया और उसके हाथों में कंगन देते हुए बोली- बहू तूने खाना बहुत ही अच्छा बनाया था ये ले तेरा रसोई का नेग .

अपनी दादी सास के हाथ से संग लेते हुए ऋजणि की आखे नाम थी.

दादी सास- कुछ हुआ क्या बहू? तेरी आंखें क्यों नम है?

रजनी -दादी जी मैंने खाना बनाया ही नहीं .मगर फिर भी आप मुझे उसका नेग दे रहे हो . सुबह तो मैं सोच कर डर रही थी कि कैसे सब कुछ होगा. मगर सभी लोगों ने खाना बनाने में मेरी बहुत मदद की मैं इतना अच्छा परिवार पाकर धन्य हो गई .

दादी सास मुस्कुरा कर उसके सर पर हाथ रख कर बोली -रवि की दुल्हन मैंने अपनी जिंदगी इस पूरे परिवार को सजा कर रखा है. तेरी दोनों सांसों ने इसमें मेरा पूरा सहयोग किया .आज पूरे शहर में हमारा परिवार एक मिसाल की तरह है. बस तुझ से गुजारिश है हमेशा ही परिवार रूपी माला का धागा बांधे रखना कभी बिखरने मत देना.

रजनी- हमारा परिवार इतना खूबसूरत  है की इसे हमेशा प्यार के धागे मे बाँध लोगो की बुरी नजरो से बचा कर रखूंगी.”

विनिता मोहता

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