समय – दर्शना जैन

अगले साल होना था मनोज का रिटायरमेंट परंतु उसने सालभर पहले ही रिटायरमेंट ले लिया, यह सोचकर कि बहुत हो गया काम, अब परिवार के साथ समय गुजारूँगा। छ: महीने में ही वह उकता गया, पत्नी बबीता घर के कामों में उलझी रहती, बेटों को अपने अपने काम से फुर्सत नहीं थी।

       उस रोज दोपहर में बबीता चाय बनाकर लायी, निराश मनोज ने कहा,” सोचा था कि रिटायरमेंट के बाद बच्चों के साथ समय व्यतीत करूँगा लेकिन उनके पास तो मेरे लिये समय ही नहीं है। कभी तो मेरे पास बैठ वे मुझसे सुख-दु:ख की बातें करें, मन करता है कि उनके साथ भोजन करूँ लेकिन वे तो रात को नौ बजे आते हैं, तब तक मैं भूखा नहीं रह सकता।

कभी कभार बच्चों के साथ मौज-मस्ती करने की इच्छा होती है पर कब करूँ। पहले पता होता कि ऐसा होगा तो मैं रिटायरमेंट न लेता, कंपनी वाले तो दो-तीन साल और कंपनी को अपनी सेवा देने का बोल रहे थे, मैंने ही मना कर दिया, अब लगता है


कि गलत किया।” पति को पूरा ध्यान से सुन बबीता ने कहा,” बुरा मत मानना, आपको शिकायत करने की जगह बच्चों को शाबासी देना चाहिये क्योंकि वे आपके ही नक्शेकदम पर चल रहे हैं,

जो सीखा वही कर रहे हैं।” इतनी साफगोई से सही बात कहना हिम्मत माँगती है, पत्नी की हिम्मत मनोज को उसकी व्यस्तता की ओर ले गयी।

       नौकरी लगी ही थी, मल्टीनेशनल कंपनी थी, काम थोड़ा ज्यादा था लेकिन युवा जोश को कार्य की अधिकता से कहाँ फर्क पड़ता है? काम के प्रति उसकी लगन कंपनी में चपरासी से लेकर बॉस तक को प्रभावित करती।

अपने काम को कैसे और निखारा जाये इसी उधेड़बुन में रहकर इसके लिये नित नये प्रयोग करना मनोज की कार्यशैली का हिस्सा था। यही कारण था कि वह आगे बढ़ता चला गया और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

         मनोज की बेटी मीशा के स्कूल में डांस प्रतियोगिता थी, उसने पापा से आने को कहा तो वे बोले,” आज तो मुश्किल है, बॉस ने मीटिग रखी है, उसमें मेरा रहना जरूरी है। बच्चों की दिली तमन्ना रहती है कि उसके प्रोग्राम में मम्मी पापा आयें, इसी आशा से मीशा ने कहा कि सब बच्चों के मम्मी पापा आयेंगे।

मनोज ने दिलासा दिया,” मम्मी तो आयेगी ना, मेरी मीटिंग खत्म हो गयी तो मैं भी पक्का आ जाऊँगा।” प्रतियोगिता हो गयी, मीशा प्रथम आयी, हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, मीशा की नजर पापा के इंतजार में थी लेकिन पापा नहीं आये।

       गुरूवार को मनोज के बेटे पलाश की छुट्टी थी, मनोज की भी छुट्टी होने से वह घर पर ही था। पलाश ने कहा,” पापा, चलिये आज कहीं बाहर चलते हैं।” मनोज ने कहा,” मुझे कल तक बॉस को यह फाइल पूरी करके देना है, मम्मी के साथ चले जाओ, हम फिर कभी चलेगे।” पलाश ने कहा,” क्या पापा कुछ भी कहो तो आपको कोई न कोई काम ही रहता है,


ऐसा भी क्या काम?” बेटे की बात पर मनोज गुस्साए हुए बोला,” यह काम मैं अपने लिये नहीं तुम लोगों के लिये करता हूँ, काम करता हूँ तभी घर चलता है और तुम्हारी जरूरतें पूरी होती हैं।” सही मायने में बच्चों की जरूरतें क्या थीं यह ना मनोज समझ पाया और न बच्चे कभी समझा पाये। ऐसे व्यस्तता भरे अनेक पल मनोज को याद आने लगे।

        पत्नी आयी और मनोज से बोली,” कहाँ खो गये, चाय भी नहीं पी, ठंडी हो गयी, मैं गरम करके लाती हूँ।” यादों से बाहर आ मनोज बोला,” खोया मैं नहीं था बबीता, मेरे रिश्ते मेरी ही गलती से कहीं खो गये, उन्हें ही ढूंढ रहा था।

चाय तो तुम दुबारा गरम कर दोगी पर बच्चों के साथ अपने रिश्ते में आ चुके ठंडेपन में गर्माहट कैसे लाऊँ?” यह कहते हुए मनोज का चेहरा उसके हाथों के पीछे चले गया।

         बबीता ने पति के कंधे पर हाथ रख कहा,” मनु रिश्ते कहीं नहीं खोते, वे तो अपनी जगह पर ही होते हैं, बस हम अपनी धुन में कई दफा उनसे आगे निकल जाते हैं।” मनोज ने बड़ी मासूमियत के साथ पत्नी से पूछा कि अब पीछे कैसे आऊँ? पत्नी ने कहा,”

रिश्तों में पीछे लौटना बहुत ही आसान होता है। आपके पास तो अब समय ही समय है तो बच्चों के पास आपके लिये समय नहीं है यह शिकायत छोड़ उन्हें अपना समय देना शुरू कर दो। मैं जानती हूँ कि उन्हें आज भी आपके समय की उतनी ही जरूरत है जितनी बचपन में थी।”

     बच्चे आये, खाना खाने बैठे, मनोज भी आया और पत्नी से बोला,” बबीता मेरी भी थाली लगा देना।” पलाश चकित था, पहले कभी ऐसा हुआ जो नहीं था,

उसने कहा,” पापा आपने अभी तक खाना क्यों नहीं खाया, खाने में देर हो जाने से आपको दिक्कत हो जाती है ना।” बेटे की इस फिक्र से मनोज की आँखें नम हो गयी, उसने कहा,” कोई खास दिक्कत नहीं होती है, फिर साथ खाने की बड़ी खुशी के सामने छोटी-मोटी दिक्कत कोई मायने नहीं रखती है।



” बच्चों ने माँ को देखा, मानो पूछ रहे हों कि यह गजब कैसे हुआ? माँ ने इशारा कर कहा कि मुझे नहीं पाया का चेहरा देखो, जवाब मिल जायेगा।

दर्शना जैन

खंडवा मप्र

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