सम्मान की सूखी रोटी – सुनीता माथुर : Moral Stories in Hindi

   आयुष मां को पड़कर कमरे में लाता है और जोर-जोर से रोने लगता है—– मां आपको नौकरों की तरह काम करता देखकर मेरा मन दुखी हो जाता है——- पूरे दिन आप काम करती रहती हो! कोई भी आपका खाने-पीने का ध्यान नहीं रखता!——- आज मैं इंजीनियर हो गया हूं अब मैं अपने लिए सोचूंगा?—- और आपके लिए भी। 

पापा को गए 5 साल हो गए अपन कितने अच्छे से रहते थे। बेटे की बात सुनकर———सलोनी बेटे का सर अपनी गोद में रखकर अपने ख्यालों में खो जाती है—–! कितना अच्छा समय था! जब मैं शादी होकर आई थी! तो मेरी जेठानी और हमारी—– दोनों की बहुत पटती थी!बड़े भैया आरब एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थे और अच्छी सैलरी थी,

और मेरे पति आकाश इंजीनियर थे, लेकिन वह भी प्राइवेट कंपनी में थे और अच्छा कमाते थे, घर की व्यवस्था अच्छी चल रही थी बस घर में हमारे ससुर थे सास नहीं थीं! शामलात परिवार था जेठानी रश्मि के दो बेटे थे और उन्हें अपने बेटों पर बहुत गर्व था विशाल बड़ा बेटा था और 5 साल का था छोटा बेटा विकास 2 साल का था। 

शादी के 1 साल बाद जब मेरा बेटा  आयुष हुआ तब सभी ने बहुत खुशियां मनाईं और आयुष के दादाजी ने तो सारे मोहल्ले में मिठाई बंटवा दी देखते-देखते आयुष भी इंजीनियरिंग में आ गया— आयुष के पापा आकाश कभी भी पैसों की चिंता नहीं करते थे और पूरे घर का ध्यान—- बहुत रखते थे——– जबकि वह छोटे बेटे थे, बड़े भैया थोड़े-थोड़े कंजूस थे! पर पैसे से कोई उन्हें दिक्कत नहीं थी,

संस्कार – सुधा शर्मा 

पैसा बहुत था उनके पास अपने बेटों के भी जन्मदिन मनाने में कंजूसी करते थे! तब आकाश ही आगे आते थे कि मैं अपने भतीजे का अच्छे से जन्मदिन मनाऊंगा! और खूब पैसा खर्च करके पार्टी देते थे—

सलोनी हमेशा कहती अपने लिए भी पैसा बचाओ—— अरे अपना तो संयुक्त परिवार है! सब एक साथ रहते हैं, सब एक दूसरे का साथ देंगे, यह कहकर मेरे पति आकाश हंसकर सब टाल देते!——– और अपने लिए—- कुछ नहीं बचाते!

 देखते-देखते मेरा बेटा आयुष भी इंजीनियरिंग में आ गया लेकिन एक हादसे मे मेरे पति चल बसे—— बस फिर तो हमारा पतन का समय आ गया?

जो घर में मुझे इज्जत मिलती थी और मेरे बच्चे को सब प्यार करते थे!—— वही सब हमसे नौकरों की तरह से व्यवहार करने लगे— यह देखकर हमारे ससुर आयुष के दादाजी को बहुत दुख होता!– वह बोलते बड़ी बहू रश्मि तुमने घर में काम वाली झाड़ू पोछा वाली मेड को क्यों छुड़ा दिया? सलोनी कितना काम करेगी तुम पूरे दिन बैठी रहती हो!

और कभी किटी पार्टी में चली जाती हो, कभी अपने पति के संग घूमने चली जाती हो, तुम्हारे बच्चों का ध्यान भी सलोनी ही रखती है! और साथ में अपने बच्चे को भी पढ़ा रही है!—घर के कामों में उसका हाथ बटाया करो! अब तो मैं देख रहा हूं तुम खाना भी नहीं—- बनाती हो? पूरे टाइम सलोनी को ऑर्डर देती रहती हो ?

यह सुनकर रश्मि भाभी हमेशा कहतीं—— अरे पापा जी आप हमारे बीच में मत पड़ो आपको खाना मिल रहा है ना आप अपना खाना खाओ और आराम किया करो! यह अपने घर का मामला है हम देख लेंगे? वैसे भी हमसे जो बनता है हम कर लेते हैं—- हमारा सर्किल है हमें मिलना जुलना पड़ता है यह कहकर पापा जी की बातों का सुना- अनसुन कर देतीं!——

खुशी की किरण –   रीता खरे

और तैयार होकर बाहर निकल जातीं, छुट्टी के दिन दोनों भैया- भाभी पिक्चर चले जाते! और बच्चों को भी मेरे पास छोड़ जाते— अब तो बच्चे विशाल और विकास भी बड़े हो गए थे, दोनों नौकरी में आ गए थे, पर बच्चे मुझसे बहुत प्यार करते थे, और हमेशा मां से कहते चाची को इतने काम क्यों बताती हो? बचपन से तो उन्होंने हमारा ध्यान रखा रश्मि चिढ़ जाती!———- और अपने बच्चों को ही डांट देती थी! 

सलोनी सोचती है आज मेरा बेटा आयुष इंजीनियर हो गया है और साथ में उसे नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर भी मिल गया है क्योंकि वह पढ़ते-पढ़ते अपनी नौकरी के लिए इंटरव्यू भी देता रहता था—- बड़ी खुशी की बात थी! आयुष बोला मां क्या सोच रही हो——- मां की एकदम तंद्रा टूट जाती है सलोनी आयुष के सिर पर हाथ फैर कर बोलती है—

बेटा आज मुझे तेरे पापा की बहुत याद आ रही है—–तेरे पापा कितने बड़े इंजीनियर थे!—— और हमेशा सब पर पैसे खर्च करते थे, उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं बचाया बस जो उनका पैसा मिला था—- मैंने तेरी पढ़ाई लिखाई में खर्च कर दिया! बेटा तुम इंजीनियर बन गए बस यही मेरे को सबसे बड़ी खुशी है अब तो तुम्हें ही कमाना है? कोई बात नहीं मां—- मैं कमाऊंगा भी और आपको आराम से रखूंगा लेकिन अब आप इस घर में रहकर नौकरानी की तरह नहीं रहोगी! 

आयुष बोलता चला जाता है—मां मेरे साथ रहना जहां मेरी नौकरी लगी है! उसी शहर में ले जाऊंगा अपने साथ और वहां आपको आराम से रखूंगा!—– मां कहती है बेटा—- भैया- भाभी बुरा मानेंगे! तुम्हारे दादाजी उन्हें भी बुरा लगेगा! नहीं-नहीं  मां अब मैं आपकी नहीं सुनूंगा? आपको क्या नौकरानी बनके रहना है! दादाजी की तो कोई सुनता नहीं है!

 रूबरू – पुष्पा कुमारी “पुष्प”

और ताई जी तो आपके संग ऐसा ही व्यवहार करेंगी—– फ्री में जो नौकरानी मिल गई है, मैं इतने सालों से आपको देखता रहा हूं? पापा के जाने के बाद आपकी क्या हालत हो गई है!— आप अपने ऊपर ध्यान ही नहीं दे पा रही हो, मैं आपको सम्मान से रखना चाहता हूं——– भले ही अपन कम पैसों में गुजारा करेंगे लेकिन—–अपन “सम्मान की रोटी” खाएंगे!

 एकदम आयुष उठकर सबको बुलाता है और बोलता है आज मेरी नौकरी लग गई सब लोग मिठाई खाएं सब बहुत खुश हो जाते हैं पर साथ ही—– सबको आश्चर्य होता है! जब आयुष अपना फैसला सुनाया है, कि अब मैं अपनी मां को लेकर बेंगलौर जा रहा हूं?— क्योंकि मेरी नौकरी वहीं पर लगी है! अरे— सलोनी—

क्या करेगी! भैया- भाभी दोनों एक साथ बोले तुम जाओ तुम्हारे रहने की बेंगलौर में व्यवस्था करवा देते हैं? सलोनी यहीं घर में रहकर घर संभालेगी——– एकदम से आयुष गुस्से में बोला—क्या? नहीं- नहीं मेरी मां कोई नौकरानी नहीं हैं! मैंने देखा जब से मेरे पापा गए हैं आप सब लोगों ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया! ताई जी तो उन्हें  नौकरानी ही समझती हैं!

खुद घूमती रहती हैं मेरी मां दिन भर घर में काम करती हैं, दादाजी भी आयुष की बात से सहमत हो गए—– वह बोलते हैं मेरा पोता आयुष बिल्कुल सही कह रहा है— क्योंकि मेरी भी तुम लोगों ने कभी नहीं सुनी और जब भी मैंने कहा सलोनी भी इसी घर की छोटी बहू है उसका ध्यान रखो तो तुम लोगों ने मुझे भी डांट दिया!—– जबकि तुम सब भी मेरे बनाए हुए घर में ही रह रहे हो

इसमें एक हिस्सा मेरे छोटे पोते आयुष का भी है?—समझे तुम लोग!——अब उस हिस्से को किराए पर उठाकर मैं आयुष और सलोनी की मदद करूंगा? और मेरी जो पेंशन आती है—- उसमें से घर खर्च के लिए तो में तुम लोगों को देता ही हूं! साथ में जो मेरा घर है उसमें भी दोनों का ही बराबर का हिस्सा है! इसलिए अब मैं अपनी छोटी बहू सलोनी को आयुष के साथ जाने के लिए नहीं रोकूंगा—-! यह सुनकर आरव और रश्मि चुप रह जाते हैं! 

उसका अपराध आत्महत्या थी । – अनिल कान्त

अरब को भी अपनी गलती महसूस होती है कि मेरे छोटे भाई की बहू इतने कष्ट उठाती रही और उसका बेटा इतने अभाव में पलता रहा—– जबकि मेरे छोटे भाई ने बड़े भाई की तरह फर्ज निभाया! और मेरे बच्चों को अपने बच्चों से भी ज्यादा समझा, उनके जन्मदिन की पार्टी मनाता था! और अपने बच्चे और मेरे बच्चों में कभी भी उसने फर्क नहीं किया—–

अपने बेटे के लिए जब भी कपड़े लाता मेरे भी दोनों बेटों के लिए कपड़े लाता था! जबकि मैं बहुत ज्यादा कमा रहा था मैंने कभी नहीं सोचा आज उन्हें अपनी गलती महसूस होती है—- और अपनी पत्नी से भी कहते हैं आज मेरी आंखें खुल गईं तुमने भी छोटी बहू के साथ अच्छा नहीं किया! 

आयुष अपने फैसले पर अडिग था? उसने कहा मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा! आप लोग अच्छा बोलें—— चाहे अपनी गलती महसूस करें—– लेकिन मैं अपनी मां को लेकर अपने साथ जा रहा हूं! और हम दोनों सम्मान से जिएंगे और कम में गुजारा करके “सम्मान की रोटी” खाएंगे।

        दोस्तों मेरी कहानी कैसी लगी कमेंट जरुर दीजिएगा मेरा तो कहना यही है कि हमेशा अपने पैरों पर खड़े रहो, अपने हक़ के लिए लड़ो, और अपने सम्मान से जियो जहां पर इज्जत ना हो वहां से हट जाना चाहिए। 

  सुनीता माथुर 

 मौलिक अप्रकाशित रचना 

  पुणे महाराष्ट्र

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